संगम--भाग (८)

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अब आलोक दुकान और घर ठीक से सम्भाल रहा था, कभी-कभी गांव भी चला जाता, खेती-बाड़ी देखने, मास्टर जी को ये देखकर बहुत संतोष होता कि चलो अब बेटा अपनी जिम्मेदारी समझने लगा है,इन पांच साल में वो दो बच्चों का पिता भी बन गया था,अब मास्टर जी का घर-गृहस्थी में मन भी नहीं लगता था, प्रतिमा की वजह से उनका मन अब अशांत रहने लगा था,वो प्रतिमा को अपने पास भी नहीं बुला सकते थे क्योंकि प्रतिमा की उस घर को भी बहुत जरूरत थी। फिर एक दिन मास्टर जी, सियादुलारी से बोले___ अब यहां मन नहीं लगता, भाग्यवान!