मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 14

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मैं भारत बोल रहा हूं 14 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 56. सोच में गदहे.......... राजनीति से दुखित हो, गदहे करत विचार। सुसाइड करते पुरूष, हमरो नहीं यह कार्य।। संघर्षी जीवन जिया, कर्मठता के साथ। हलकी सोच न सोचना, जिससे नव जाये माथ।। इनने तो हम सभी का, चेहरा किया म्लान। धरम-करम और चरित्र से, हमसे कहाँ मिलान।। जाति पंचायत जोरकर, निर्णय लीना ऐक। तीर्थांचल में सब चलो, छोड़ नीच परिवेश।। संत मिलन पावन धरा, हटै पाप का बोझ। चलो मित्र अब वहॉं सभी, जहॉं जीवन