Mai bharat bol raa hun.-kavy sanklan book and story is written by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mai bharat bol raa hun.-kavy sanklan is also popular in Poems in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - Novels
by बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
in
Hindi Poems
(काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! झंकृत हो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की अधिष्ठात्री। विश्व मे कण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।।
मैं भारत बोल रहा हूं 1 (काव्य संकलन) वेदराम ...Read Moreमनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! झंकृत हो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की अधिष्ठात्री। विश्व मे कण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।।
मैं भारत बोल रहा हूं 2 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 4. मैं भारत बोल रहा हूं मानवता गमगीन, हृदय पट खोल रहा हूं। सुन सकते तो सुनो, मैं भारत बोल रहा हूं ।। पूर्ण मुक्तता-पंख पांखुरी नहीं खोलती। वे मनुहारी गीत कोयलें नहीं बोलती। पर्यावरण प्रदुषित, मौसम करैं किनारे। तपन भरी धरती भी आँखें नहीं खोलती। जो अमोल, पर आज शाक के मोल रहा हूं।।1।। गहन गरीबी धुंध, अंध वन सभी भटकते। भाई भाई के बीच,द्वेष के खड़ग खटकते विद्वेषित हो गया धरा का चप्पा
मैं भारत बोल रहा हूं 3 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 8.जागना होगा फिर घिरा, घर में अंधेरा, जागना होगा। नींद में डूबे चितेरे, जागना होगा।। और भी ऐसी घनी काली निशा आई- तब चुनौती बन गयी थी तूलिका तेरी। रंग दिया आकाश सारा सात रंगो से- रोशनी थी चेतना के द्वारा की चेरी। सो गया तूं, सौंप जिनको धूप दिनभर की- ले चुके बे सब बसेरे-जागना होगा।।1।। नींद में ................................................ दूर तक जलते मरूस्थल में विमल जल सा सहज-शीतल, गीत उसका नाम होता
मैं भारत बोल रहा हूं 4 ( काव्य संकलन ) ...Read Moreप्रजापति‘ मनमस्त’ 11.परिश्रम व्यर्थ होता है कभी क्या-यह परिश्रम, कर्म की गीता पसीना बोलता है। बिन्दु में वैभव, प्रगति प्रति बिम्ब बनते, श्वास में बहकर सभी कुछ खोलता है।। सृष्टि की सरगम, विभा विज्ञान की यह, क्रांन्ति का कलरव, कला की कल्पना है। विग्य वामन का विराटी विभव बपु है, गर्व गिरि, गोधाम जम की त्रास ना है। श्रवण करना है, श्रवण को खोल कर के, मुक्ति गंगा का विधाता बोलता
मैं भारत बोल रहा हूं 5 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 15.संकल्प करलो निराला न्याय की होंली जले जहॉं, सत्य का उपहास हो, संकल्प लो! उस राज-सी दरबार की दहरी चढ़ो ना।। जन हृदय की बीथियों की धूल को कुम-कुम बनाना, शुष्क मुकुलित पंखुडी को, शीश पर अपने बिठाना। अरू करो श्रंगार दिल से-धूल-धूषित मानवी का- सोचलो पर, दानवों की गोद में नहीं भूल जाना।।1।। फूंस की प्रिय झोंपडी में, सुख अनूठे मिले सकेंगे, दीपकों की रोशनी में, फूल दिल के खिल सकेंगे। सदां