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Mai bharat bol raa hun.-kavy sanklan by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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  4. मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - Novels
मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" in Hindi
Novels

मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - Novels

by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" Matrubharti Verified in Hindi Poems

(53)
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(काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! झंकृत हो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की ...Read Moreविश्व मे कण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।।

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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - Novels

मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 1
मैं भारत बोल रहा हूं 1 (काव्य संकलन) वेदराम ...Read Moreमनमस्त’ 1. सरस्वती बंदना (मॉं शारदे) मॉं शारदे! मृदु सार दे!!, सबके मनोरथ सार दै!!! झंकृत हो, मृदु वीणा मधुर, मॉं शारदे, वह प्यार दे।। अज्ञान तिमिरा ध्वंस मॉं, ज्ञान की अधिष्ठात्री। विश्व मे कण-कण विराजे, दिव्य ज्योर्ति धात्री।। हम दीन-जन तेरी शरण, सब कष्ट से मॉं! तार दे।।1।। तुम्हीं, तुम हो भवानी अम्बिके, अगणित स्वरूपों धारणी। सुख और समृद्धि तुम्हीं, सब कष्ट जग के हारिणी।। कर-वद्ध विनती है यहीं, सु-मनों भरा उपहार दे।।2।।
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 2
मैं भारत बोल रहा हूं 2 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 4. मैं भारत बोल रहा हूं मानवता गमगीन, हृदय पट खोल रहा हूं। सुन सकते तो सुनो, मैं भारत बोल रहा हूं ।। पूर्ण मुक्तता-पंख पांखुरी नहीं खोलती। वे मनुहारी गीत कोयलें नहीं बोलती। पर्यावरण प्रदुषित, मौसम करैं किनारे। तपन भरी धरती भी आँखें नहीं खोलती। जो अमोल, पर आज शाक के मोल रहा हूं।।1।। गहन गरीबी धुंध, अंध वन सभी भटकते। भाई भाई के बीच,द्वेष के खड़ग खटकते विद्वेषित हो गया धरा का चप्पा
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 3
मैं भारत बोल रहा हूं 3 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 8.जागना होगा फिर घिरा, घर में अंधेरा, जागना होगा। नींद में डूबे चितेरे, जागना होगा।। और भी ऐसी घनी काली निशा आई- तब चुनौती बन गयी थी तूलिका तेरी। रंग दिया आकाश सारा सात रंगो से- रोशनी थी चेतना के द्वारा की चेरी। सो गया तूं, सौंप जिनको धूप दिनभर की- ले चुके बे सब बसेरे-जागना होगा।।1।। नींद में ................................................ दूर तक जलते मरूस्थल में विमल जल सा सहज-शीतल, गीत उसका नाम होता
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 4
मैं भारत बोल रहा हूं 4 ( काव्य संकलन ) ...Read Moreप्रजापति‘ मनमस्त’ 11.परिश्रम व्यर्थ होता है कभी क्या-यह परिश्रम, कर्म की गीता पसीना बोलता है। बिन्दु में वैभव, प्रगति प्रति बिम्ब बनते, श्वास में बहकर सभी कुछ खोलता है।। सृष्टि की सरगम, विभा विज्ञान की यह, क्रांन्ति का कलरव, कला की कल्पना है। विग्य वामन का विराटी विभव बपु है, गर्व गिरि, गोधाम जम की त्रास ना है। श्रवण करना है, श्रवण को खोल कर के, मुक्ति गंगा का विधाता बोलता
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 5
मैं भारत बोल रहा हूं 5 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 15.संकल्प करलो निराला न्याय की होंली जले जहॉं, सत्य का उपहास हो, संकल्प लो! उस राज-सी दरबार की दहरी चढ़ो ना।। जन हृदय की बीथियों की धूल को कुम-कुम बनाना, शुष्क मुकुलित पंखुडी को, शीश पर अपने बिठाना। अरू करो श्रंगार दिल से-धूल-धूषित मानवी का- सोचलो पर, दानवों की गोद में नहीं भूल जाना।।1।। फूंस की प्रिय झोंपडी में, सुख अनूठे मिले सकेंगे, दीपकों की रोशनी में, फूल दिल के खिल सकेंगे। सदां
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 6
मैं भारत बोल रहा हूं 6 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 19.गीतः- यतन येसे करो प्यारे यतन येसे करो प्यारे, सभी साक्षर जो हो जाये। धन्य जीवन तभी होगा, निरक्षरता मिटा पाये।। अनेकों पीढ़ियाँ वीती, जियत दासत्व का जीवन। बने साक्षर हमी में कुछ, गुलामी तब भगा पाये।। अभी आजाद हो कर भी, निरक्षरता गुलामी है। यहीं अफसोस हैं प्यारे, इसे कब दूर कर पायें।। प्रशिक्षण हैं इसी क्रम में, चलें हम कर कलम लेकर रहेगा नहिं अंधेरा अब, जो साक्षर रवि-
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मैं भारत बोल रहा हूं -काव्य संकलन - 7
मैं भारत बोल रहा हूं 7 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 24.कवि की महता बृहद सागर से भी गहरे, सोच लेना कवि हमारे। और ऊॅंचे आसमां से, देखना इनके नजारे।। परख लेते हवा का रूख, चाल बे-मानी सभी। बचकर निकल पाता नहीं, ऐक झोंखा भी कभी। तूफान, ऑंधी और झॉंझा-नर्तनों को जानते। हवा का रूकना, न चलना, उमस को पहिचानते। दोस्ती के हाथ इनसे, प्रकृति ने भी, है पसारे।।1।। सूर्य का उगना और छिपना, इन्हीं की जादूगरी है। रवि जहॉं पहुंचा नहीं
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 8
मैं भारत बोल रहा हूं 8 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 28.करार इक करार ने, कई करारें ढहा दईं। गहरी दरारें, मानवी में आ गई।। क्या कहैं इस देश के परिवेश को, भाव, भाषा, भावना अरू वेष को। हर कदम पर मजहवी पगडंडियाँ, हर दिशा में, ले खड़े सब झण्डियाँ।। धर्म के थोथे, घिनौने खेल की, चहु दिशा में घन-वदलियाँ छा गईं।।1।। अर्थ की खातिर मनुजता खो दयी, देख कर हर आँख कितनी रो दयी। करवट बदलते ही रहे सब हौंसले हौंसले समुझे, जो
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 9
मैं भारत बोल रहा हूं 9 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 33. शहीदों को........... अब-भी कुछ ऑंखों से अश्क बहालो साथी! पाषाणों का हृदय दरकता नजर आ रहा। वे-शहीद सीमा पर कैसे हुऐ हलाहल क्या कहता आबाम, नहिं कुछ नजर आ रहा?।। सोचो! फिर भी कैसे-कैसे जश्न हो रहे, तंदूरी का काण्ड, ताज को भूल गऐ क्या? कितने वर्ष बीत गऐ, ऐसी खिलबाड़ों में, चंद्र, भगत, आजाद का पानी उतर गया क्या? ऐसी गहरी नींद सो गऐ, इतनी जल्दी, अब तो जागो वीर! समर-सा नजर
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मैं भारत बोल रहा हूं -काव्य संकलन - 10
मैं भारत बोल रहा हूं (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 37. कवच कुण्डल विना व्याकरण ना पढ़ा, व्याख्या करते दिखा, शब्द-संसार को जिसने जाना नहीं। स्वर से व्यजंन बड़ा, या व्यजंन से स्वर, फिर भी हठखेलियाँ, बाज माना नहीं।। नहीं मौलिक बना, अनुकरण ही किया, ऐसे चिंतन-मनन का भिखारी रहा, आचरण में नहीं, भाव-भाषा कहीं, नीति-संघर्ष से दूर, हर क्षण रहा।। जिंदगी के समर, अन्याय पंथी बना, बात की घात में, उन संग जीवन जिया। अनुशरण ही किया, उद्वरण न बना, मृत्यु के द्वार नहीं कोई धरणा दिया।। कोई साधक बना, न कहीं उपकरण, विना कवच-कुण्डल
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 11
मैं भारत बोल रहा हूं 11 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 43. सविधान की दहरी आज तुम्हारे इस चिंतन से, सविंधान की दहरी कॅंपती। श्रम पूंजी के खॉंडव वन में, जयचंदो की ढपली बजती। कितना दव्वू सुबह हो गया, नहीं सोचा था कभी किसी ने- किरणो का आक्रोश मिट गया, शर्मी-शर्मी सुबह नाचती।। कलमों की नोंके क्या वन्दी? इन बम्बो की आवाजों में। त्याग-तपस्या का वो मंजर, लगा खो गया इन साजों में। पगडण्डी बण्डी-बण्डी है, गॉंव-गली की चौपालें-भी- लोकतंत्र में दूरी हो गई, प्रजातंत्र नकली-वाजों में।। तरूणाई झण्डों में भूली, डण्डों की बौछार हो रही। धर्मवाद के
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 12
मैं भारत बोल रहा हूं 12 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ ...Read More 47. तौंद का विस्तार तौंद की पैमाइस, किसने कब लई। जो मलाई देश की, सब चर गई।। आज जनता मै, यही तो रोश है। लोग कहते दृष्टि यह दोष है। फिर कहो? भंडार खाली क्यों हुऐ- अंतड़ी क्यों? यहाँ पर वेहोश है। यह अंधेरी रात, कहाँ से छा गई।।1।। तौंद का विस्तार, दिन-दिन बढ़ रहा। जो धरा से आसमां तक चढ़ रहा। ऐक दूजे की, न कहते, बात सच- बो बेचारा पेट खाली, दह रहा। ईंट, पत्थर, लोह, सरिया खा गई।।2।। यदि नहिं तो
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 13
मैं भारत बोल रहा हूं 13 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 51. खूब ...Read Moreखिली------ खूब कबड्डीं खिली कि,अब तो पाला बदलो। अंदर लग गई जंग कि,अब तो ताला बदलो। भुंसारो अब भयो, रात की करो न बातें। खूब दुलत्तीं चलीं, चलें नहीं अब वे लातें। उठ गई अब तो हाठ, अपऔं सामान बॉंध लो- सबें ऑंधरों करों, चलें नहीं अब वे घाते। गयीं चिरईयाँ बोल कि,करबट लाला बदलो।। खूब पुजापे दऐ, मिन्नते करी रात-दिन। सौ तक गिनती भयी, लौटके फिर से अब गिन। तुमने एक न
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 14
मैं भारत बोल रहा हूं 14 (काव्य संकलन) वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’ 56. ...Read Moreमें गदहे.......... राजनीति से दुखित हो, गदहे करत विचार। सुसाइड करते पुरूष, हमरो नहीं यह कार्य।। संघर्षी जीवन जिया, कर्मठता के साथ। हलकी सोच न सोचना, जिससे नव जाये माथ।। इनने तो हम सभी का, चेहरा किया म्लान। धरम-करम और चरित्र से, हमसे कहाँ मिलान।। जाति पंचायत जोरकर, निर्णय लीना ऐक। तीर्थांचल में सब चलो, छोड़ नीच परिवेश।। संत मिलन पावन धरा, हटै पाप का बोझ। चलो मित्र अब वहॉं सभी, जहॉं जीवन
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 15
मैं भारत बोल रहा हूँ - काव्‍य संकलन यातना पी जी रही हूँ - यातना पी जी रही हूँ। साधना में जी रही हूँ।। श्रान्ति को, विश्रान्ति को मन, कोषता रह-रह रूदन में। याद ...Read Moreही, जहर सा, चढ़ रहा मेरे बदन में। इस उदर की, तृप्ति के हित, निज हृदय को, आज गोया। हायरे। निष्‍ठुर जगत, तूँने न अपना मौन खोया। मौन हूँ पर, सिसकती अपने लिए ही रो रही हूँ।। निशि प्रया, बाहरी घटा बन घिर रही चहु ओर मेरे। रात आधी हो गई पर, वह सुधि, मुझको है टेरे। आंख फाड़े देखती हूँ, कांपते
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 16
-जिंदगी की राह- आज दिल की कह रहा हूँ, सुन सको तो, बात साही। जिंदगी की राह में, भटका हुआ है, आज राही।। बंध रहा भ्रमपाश में तूँ, कीर-सा उल्‍टा टंगा है। और खग हाडि़ल ...Read Moreभी, टेक हरू, रंग में रंगा है। यूँ रहा अपनी जगह, और शाज बजते, आज शाही।। तूँ अकेला कर्म पथ पर, और तो सोए सभी घर। कौन कर सकता मदद तब, पुज रहीं प्रतिमां यहां पर। हर कदम पर देखता, पाषाण दिल है, पात शाही।। न्‍याय के हर द्वार कीं, पुज रही हैं, आज दहरीं। है नहीं रक्षक यहां कोई,
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 17
--राह अपनी मोड़ दो-- शाह के दरबार कीं, खूब लिख दी है कहानी। शाज, वैभव को सजाने, विता दी सारी जवानी।। चमन की सोती कली को, राग दे, तुमने जगाया। अध खिली को प्रेम दे ...Read Moreरूप यौवन का दिखाया।। नायिका की, हर नटी पर, गीत गाकर, तुम लुभाऐ। दीन, पतझड़ की कहानी, के कभी क्‍या गीत गाए।। फूल पतझड़ के चुनो अब, छोड़कर, वैभव-खजाने। वीरान को, सुन्‍दर बनाने। गीत धरती के ही गाने।। और कब तक, यूँ चलोगे। अठखेलियां अब छोड़ दो। वीरान को, सुन्‍दर बनाने, राह अपनी, मोड़ –दो।। --वेदना की यामिनी--
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मैं भारत बोल रहा हूं-काव्य संकलन - 18
नींब के पत्‍थर-- सो रहे तुम, आज सुख से, दर्द उनको हो रहा है। शान्‍त क्रन्‍दन पर उन्‍हीं के, आसमां- भी रो रहा है।। यामिनी के मृदु प्रहर में, दर्द-सी, पीड़ा कहानी। सुन रहा है ...Read Moreनिर्जन, चीखतीं-सी, हो रवानी।। देख लेना एक दिन ही, किलों के, खण्‍डहर बनेंगे। शान-शौकत के ठिकाने, धूल में, आकर मिलेंगे।। हो रहे हैं सं‍गठित ये, जिगर में, बिल्‍कुल जमीं हैं। क्रान्ति का उद्घोष होगा, नींब के पत्‍थर, हमीं हैं।। है खड़ी बुनियाद हम पर, शीश पर, अपने धरैं हैं। संभलजा औ, आज मानव, आज भी, अपने घरैं है।।
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