तुम्हारे दिल में मैं हूं? - 8

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अध्याय 8 आकाश फटने को हुआ चांदनी भी फटनी की सोचने लगी इधर-उधर आई मछलियां तमाशा देख रहीं थीं। चल रही हवा भी फटने की सोचने लगी। सब कुछ असामान्य। भयंकर चित्कार किया गीता ने। बहुत दर्द हो रहा है मौसी... रितिका के हाथ में जो बांस की लकड़ी थी उससे गीता के पीठ पर जोर-जोर से मार रही थी। मत मारो मौसी.... मत मारो... मौसी.... काम खत्म होते ही मिनी बस पर चढ़कर, जसवंतपुरा में उतर, अभी गीता घर आई थी। आते ही उसे मारना शुरू कर दिया। लात मारने लगी। मौसी मैंने क्या गलती की ? इसके अलावा