जनजीवन - 7

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भक्त और भगवान उसका जीवन प्रभु को अर्पित था वह अपनी सम्पूर्ण श्रृद्धा और समर्पण के साथ तल्लीन रहता था प्रभु की भक्ति में। एक दिन उसके दरवाजे पर आयी उसकी मृत्यु करने लगी उसे अपने साथ ले जाने का प्रयास, लेकिन वह हृदय और मस्तिष्क में प्रभु को धारण किए आराधना में लीन था मृत्यु करती रही प्रतीक्षा उसके अपने आप में आने का वह नहीं आया और मृत्यु का समय बीत गया उसे जाना पड़ा खाली हाथ कुछ समय बाद जब उसकी आँख खुली उसे ज्ञात हुआ सारा हाल वह हुआ लज्जित हाथ जोड़कर नम आँखों से