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जनजीवन - Novels
by Rajesh Maheshwari
in
Hindi Poems
इतनी कृपा दिखना राघव, कभी न हो अभिमान,
मस्तक ऊँचा रहे मान से, ऐसे हों सब काम।
रहें समर्पित, करें लोक हित, देना यह आशीष,
विनत भाव से प्रभु चरणों में, झुका रहे यह शीष।
करें दुख में सुख का अहसास,
रहे तन-मन में यह आभास।
धर्म से कर्म, कर्म से सृजन, सृजन में हो समाज उत्थान,
चलूं जब दुनिया से हे राम! ध्यान में रहे तुम्हारा नाम।
हे राम! इतनी कृपा दिखना राघव, कभी न हो अभिमान, मस्तक ऊँचा रहे मान से, ऐसे हों सब काम। रहें समर्पित, करें लोक हित, देना यह आशीष, विनत भाव से प्रभु चरणों में, झुका रहे यह शीष। ...Read Moreदुख में सुख का अहसास, रहे तन-मन में यह आभास। धर्म से कर्म, कर्म से सृजन, सृजन में हो समाज उत्थान, चलूं जब दुनिया से हे राम! ध्यान में रहे तुम्हारा नाम। प्रभु दर्शन मन प्रभु दरशन को तरसे विरह वियोग श्याम सुन्दर के, झर-झर आँसू बरसे। इन अँसुवन से चरण तुम्हारे, धोने को मन तरसे।
दूध और पानी प्रभु ने पूछा- नारद! भारत की संस्कारधानी जबलपुर की ओर क्या देख रहे हो? नारद बोले- प्रभु ! देख रहा हूँ गौ माता को नसीब नहीं है चारा, भूसा या सानी, बेखौफ मिलाया जा ...Read Moreहै दूध में पानी। स्वर्ग में नहीं मिलता देखने ऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण हुनर, मैं भी इसे सीखने जा रहा हूँ धरती पर। प्रभु बोले- पहले अपना बीमा करवा लो अपने हाथ और पैर मजबूत बना लो। ग्वाला तो गाय लेकर भाग जाएगा, अनियंत्रित यातायात में कोई कार या डम्पर वाला तुम्हें टक्कर मारकर यमलोक पहुँचाएगा। दूध को छोड़ो और अपनी सोचो यहाँ
दस्तक मेरे स्मृति पटल पर देंगी दस्तक तुम्हारे साथ बीते हुए लम्हों की मधुर यादें, ये हैं धरोहर मेरे अन्तरमन की इनसे मिलेगा कभी खुशी कभी गम का अहसास जो बनेगा ...Read Moreयही बनेंगी सम्बल दिखलाएंगी सही राह मेरे मीत मेरी प्रीत भी रहेगी हमेशा तुम्हारे साथ तुम्हारे हर सृजन में बनकर मेरा अंश यही रहेगी मेरी और तुम्हारी सफलता का आधार जीवन में करेगी मार्गदर्शन और देगी दिशा का ज्ञान। ये न कभी खत्म हुई है न कभी खत्म होगी। आजीवन देती रहेंगी तुम्हारे साथ सागर से भी गहरी है तुम्हारी गंभीरता और आकाश से भी ऊँची हो
अंत से प्रारंभ। माँ का स्नेह देता था स्वर्ग की अनुभूति, उसका आशीष भरता था जीवन में स्फूर्ति। एक दिन उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त हम थे स्तब्ध और विवके शून्य देख रहे थे जीवन ...Read Moreयथार्थ हम थे बेबस और लाचार उसे रोक सकने में असमर्थ और वह चली गई अनन्त की ओर। मुझे याद है जब मैं रोता था वह हो जाती थी परेशान, जब मैं हंसता था वह खुशी से फूल जाती थी, वह सदैव सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म पीड़ित मानवता की सेवा, राष्ट्र के प्रति समर्पण और सेवा व त्याग की देती थी
चिन्ता, चिता और चैतन्य चिन्ता, चिता और चैतन्य जीवन के तीन रंग। चिन्ता जब होगी खत्म तब होगा जीवन में आनन्द का शुभारम्भ। चिन्ता देती है विषाद, दुख और परेशानियां और देती ...Read Moreसकारात्मकता मे अवरोध का अहसास इससे हममें जागता है चिन्तन। चिन्ता के कारण पर धैर्य, साहस और निडरता से करो प्रहार जिससे होगा इसका संहार। ऐसा न होने पर चिन्ता तुम्हें ले जाएगी चिता की ओर तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त कर देगी। चिन्ताओं से मुक्ति देगी कलयुग में सतयुग का आभास सूर्योदय से सूर्यास्त तक चैतन्य में जीवन जीने का हो प्रयास परम पिता परमेश्वर से