एक अधुरी प्रेम कहानी

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दौलत नगर में एक साहूकार रहता था। उसका नाम मनोहर पंत था। किसी ज़माने में उसके पुरखे जागीरदार थे इसलिए पुरखों की संपत्ति उसे विरासत में मिली थी और वह खानदानी अमीर था। जागीरदारी प्रथा तो कब की खत्म हो चुकी थी पर उसकी रगों में अब भी वो रुतबा कायम था। वो कहावत है ना ‘रस्सी तो जल गई पर ऐंठन नहीं गई।’ उसका दबदबा पूरे जिले में था। वह लोगों को सूद पर रुपए उधार देता था और समय पर कर्ज न लौटाने पर गरीबों का खून चूसता था। उनकी ज़मीनें हड़प लेता, घर नीलाम कर देता था।