कटी हुई औरत

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नीलम कुलश्रेष्ठ " हूँ-------हूँ ----हूँम ----हूँम ----हूँ---. " वह बाल बिखराये सफ़ेद धोती में झूम रही थी, उसके मुँह से अजीब अजीब आवाज़े निकल रहीं थी. उसके घुँघराले बाल हवा में लहरा रहे थे. उसके माथे पर लगे चंदन के टीके के बीच सिंदूर की लाल बिन्दी में लगी सुन्हरी बिंदी देवी के आगे रक्खे देशी घी की ज्योत में चमक रही थी. अगरबत्ती व धूपबत्ती के धुंये से गमकते कमरे में चौड़ा काजल लगी उसकी बड़ी बड़ी आँखें और भी रहस्यमय हो उठती थी जब वह घर के बाहर कमरे में माता की चौकी बिठती थी.  कमरे के बीचों