औरत - Novels
by Neelam Kulshreshtha
in
Hindi Women Focused
नीलम कुलश्रेष्ठ मेरी सरहदों पर बिंदी, बिछुए, सिन्दूर -------अधिक कहूं तो पायल का पहरा है. ये सब तो तुम्हारे पास भी हैं फिर कैसे तुम उस पार की औरत बन गईं ?तुम अचानक मिल गई थीं बाज़ार में एक ...Read Moreपर कोई साबुन खरीदती स्कूल में तुम मुझसे एक साल तो आगे थीं किन्तु स्पोर्ट्स में रूचि होने के कारण अक्सर हम लोग अपना नाश्ता बॉक्स खोलकर गपियाते थे, साथ साथ खाते जाते थे. तुमने आश्चर्य से कहा था, "त----त ---तू ?" "तुम ----?" मैं जबरन तुम्हें घर ले आई थी अपना आलीशान ड्राइंग रूम तुम्हें दिखाना चाहती थी. अपनी
वो दूसरी औरत ...Read More [नीलम कुलश्रेष्ठ ] बरसों से कहूं या युगों से किसी ने उसकी सुध नहीं ली .वह आज तक गुमनामी के अँधेरे में हैं. .जन्म देने वाली माँ तो शब्दों ,कलाओं की कूचियों ,भाषणों के फूलहार पहनती रही ह बस उसे ही कोई यायाद क्यों नहीं करता ? उसके जन्मदात्री स्वरुप को किसी ने देखने की कोशिश नहीं की. .डॉक्टर ,नर्स या आया इनमें से कोई भी नहीं सभी तो पैसे
नीलम कुलश्रेष्ठ मेरी सरहदों पर बिंदी, बिछुए, सिन्दूर -------अधिक कहूं तो पायल का पहरा है. ये सब तो तुम्हारे पास भी हैं फिर कैसे तुम उस पार की औरत बन गईं ?तुम अचानक मिल गई थीं बाज़ार में एक ...Read Moreपर कोई साबुन खरीदती स्कूल में तुम मुझसे एक साल तो आगे थीं किन्तु स्पोर्ट्स में रूचि होने के कारण अक्सर हम लोग अपना नाश्ता बॉक्स खोलकर गपियाते थे, साथ साथ खाते जाते थे. तुमने आश्चर्य से कहा था, "त----त ---तू ?" "तुम ----?" मैं जबरन तुम्हें घर ले आई थी अपना आलीशान ड्राइंग रूम तुम्हें दिखाना चाहती थी. अपनी
नीलम कुलश्रेष्ठ " हूँ-------हूँ ----हूँम ----हूँम ----हूँ---. " वह बाल बिखराये सफ़ेद धोती में झूम रही थी, उसके मुँह से अजीब अजीब आवाज़े निकल रहीं थी. उसके घुँघराले बाल हवा में लहरा रहे थे. उसके माथे पर लगे चंदन ...Read Moreटीके के बीच सिंदूर की लाल बिन्दी में लगी सुन्हरी बिंदी देवी के आगे रक्खे देशी घी की ज्योत में चमक रही थी. अगरबत्ती व धूपबत्ती के धुंये से गमकते कमरे में चौड़ा काजल लगी उसकी बड़ी बड़ी आँखें और भी रहस्यमय हो उठती थी जब वह घर के बाहर कमरे में माता की चौकी बिठती थी. कमरे के बीचों
नीलम कुलश्रेष्ठ वो एक सरकारी सुहावनी कॉलोनी है --------एक कतार में बने बंगले, जिनके अहातो में पेड़ पौधे, बीच के रास्ते पर गमलों की लम्बी कतारें हैं. किसी किसी द्वार पर बैठा वर्दी वाला वाच मैं न है. दूर ...Read Moreजाती दोनों ओर पेड़ों से घिरी सड़क पर आगे बहुमंजली इमारते हैं. सुबह ऑफ़िस को जाते, शाम को ऑफ़िस से लौटते रास्ते पर जाते एक दूसरे को कुछ कुछ पह्चानते, एक दूसरे को स्माइल पास करते लोग होते हैं. ऎसे ही पढ़ने जाने वाले सायकल या दुपहियो पर हर उम्र के बच्चे, युवा होते हैं. दोपहर को गृहणियाँ घर का
[ नीलम कुलश्रेष्ठ ] [ अब तक आपने लेखिका की चार कहानियां 'औरत सीरीज़ 'की पढ़ीं हैं -'वो दूसरी औरत', 'कटी हुई औरत ', उस पार की औरत ', 'मोहरा बनाम औरत '. अब पढ़िये कहानी -"पथराई हुई औरत'] ...Read Moreने उसके दोनों कंधे पकड़ कर झिंझोड़ा, " दिया ! होश में आओ. " दिया इतना झिझोड़े जाने पर भी अचल रही. अपनी भावशून्य बड़ी बड़ी आँखों से उन्हें देखती रही निशा हैरान हो गई कि उस पर कुछ असर नहीं हो रहा. वह वैसी ही प्रतिक्रियाविहीन है. निशा घबरा गई, "इसकी हालत तो बहुत गम्भीर है. " दिया की
औरत - 6 रेगिस्तान में ओएसिस सी औरत [ एक युवा विकलांग औरत अपने रेगिस्तानी जीवन में कोई ओएसिस अर्थात एक छोटा सा पानी का गढ्ढा, जो जीवन का प्रतीक है, खोज लेती है व स्वयं जीवन का स्पंदन ...Read Moreओएसिस बन जाती है। नीलम कुलश्रेष्ठ के जीवन की प्रथम कहानी कैक्टस ! प्यासे नहीं रहो’ पढ़िए ] नीलम कुलश्रेष्ठ मैं व्हील चेयर ढकेलते हुए खिड़की पर आती हूँ, डूबते हुए सूरज को देखने.... तीन साल से मेरा यही क्रम बन गया है । डूबते हुए सूरज को देखकर राहत मिलती है । मैं अकेली नहीं हूँ, और भी हैं,
औरत - 7 प्यार का आसिब [भूत] ज़िद तो उसी की थी कि वह कोतवाल साहब की मजार देखेगा । एक खुले मैदान में थी ये मजार । मैदान के एक तरफ फूलवाले, धूपबत्ती वाले व अगरबत्ती वाले ज़मीन ...Read Moreदुकान सजाये बैठे थे । अगर कोई मजार पर चादर चढ़ाना चाहे तो वह भी एक दुकान पर बिक रही थी । कुछ लोग मजार के पास चादर बिछाये बैठे थे । बीच के कव्वाल ने हारमोनियम पर कुछ स्वरलहरियां हवा में बिखेरी, ढोलक वाले ने ढोलक पर थाप मारी तो मैदान में बिखरी भीड़ उधर भी खिंचने लगी ।
नीलम कुलश्रेष्ठ “आज तुझे बरसों बाद पकड़ा है ।” बाज़ार में सहसा किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा । मैं चौंक कर मुड़ी, एक भरे बदन वाली गोरे रंग की युवती मेरे मुड़ते ही मुस्करा उठी । “लेकिन ...Read Moreमैं संकोच में यह नहीं कह पा रही थी कि मुझे उस की सूरत दूर दूर तक भी जानी पहचानी नहीं लग रही । “अब क्यों पहचानेगी ? अख़बार में पढ़ा था कि तेरे शोध कार्य को पुरस्कृत किया गया है ।” “हाँ, लेकिन...” “यार !पढ़पढ़ कर तेरी याददाश्त बेहद कमज़ोर हो गई । अब तू मुझे ही नहीं पहचान
नीलम कुलश्रेष्ठ “पढ़ाई के तो हम शुरू से चोर हैं ।” कहते हुए कानपुर की बीजू ने जाड़े के कारण लाल पड़ गयी नाक को ओवरकोट की बाँह में छुपा लिया । उसके कटे हुए बालों में से उसका ...Read Moreउजला आधा चेहरा दिखाई दे रहा है । उसका दिल हुआ अभी इसकी ठौड़ी पकड़कर पूरा चेहरा सामने से आये और आँखों में आँखें डालकर पूछे, “मैडम, आप पढ़ाई की चोर है तो इस लोक सेवा आयोग की इमारत में क्या खाक छानने आयी है !” इतिहास का दूसरा प्रश्न पत्र अभी बाकी है । लड़के-लड़कियाँ इधर-उधर टोली बनाकर बिखरे
[ नीलम कुलश्रेष्ठ ] मैं क्या बदल गई हूँ ? ऊँह, अभी तो नहीं । अभी तो सिर्फ़ पहले जैसे आदर्श विचार ही धसकती हुई मिट्टी की तरह फिसल गये हैं । इन क्षणों में मैं बहुत अस्त-व्यस्त सा ...Read Moreकरती हूँ, जब मैं स्वयं को ढूँढ़ना चाहती हूँ, टटोलना चाहती हूँ । अपने को पहचानने की कोशिश के समय भी हम केवल अपनी इच्छाओं का 'सलेक्टिव ऑब्ज़र्वेशन' कर पाते हैं, अपनी कमियों के आगे सबसे अधिक हमारा ही सिर झुकता है, यही भय उन्हें मन में यत्न से पर्दों में छिपा कर रखता है । मुझे शुरू से ही
नीलम कुलश्रेष्ठ आज पल पल न जाने कितनी बार शलभ के साथ जिया है, उसके ऑफ़िस होने पर भी । अब कुछ क्षण ही रह गये हैं, उसक वापिस घर आने में । वह सुन कर बहुत चौंकेगा, उसने ...Read Moreभी था, “मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के इस पहलू को इसी क्षण संपूर्ण मानूँगा ।” हो सकता है अत्याधिक ख़ुशी में अपनी आदत के मुताबिक बाँहों में उठा कर एक चक्कर भी लगवा दे । तब मैं चारों तरफ गोल घूमती हुई वस्तुओं को देख कर चीखती हुई कहूँगी, “रुको, रुको शलभ, वर्ना मैं मर जाऊँगी ।” वह मुझे धम् से
नीलम कुलश्रेष्ठ “हाऊ स्वीट, मैडम !” “मैडम! आज आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं ।” “मैडम! आपकी साड़ी का कलर आप पर बहुत ‘सूट’ कर रहा है।” “अरे! बाबा ! बस भी करो, तुम लोगों ने मेरी इतनी तारीफ़ ...Read Moreदी है कि मुझे लग रहा है कि मैं और फूलकर बर्स्ट न हो जाऊँ ।” अमि ने झेंपते हुए कहा । तभी बस के ड्राइवर ने हॉर्न बजा दिया । सब लड़कियाँ भागती हुई बस में जा बैठीं । वह भी उनके पीछे जाकर बस के एक कोने में बैठ गयी । आज वह हॉस्टल की लड़कियों के साथ
नीलम कुलश्रेष्ठ यह दृश्य देखकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया या कहिये कि कलेजा मुँह को आना क्या होता है- मैंने पहली बार जाना, वर्ना जोशी जी लेटे हुए हैं छत को खाली आँखों से टुकुर-टुकुर निहारते । ...Read Moreएक हाथ में ड्रिप लगी हुई है । अस्पताल के प्राइवेट वॉर्ड में पलंग के पास ही स्टूल पर श्रीमती जोशी बैठी हुई हैं । पास के सोफ़े पर उनकी ख़ैर ख़बर लेने आये पटेल दंपत्ति बैठे हैं । शन्नो पलंग के पायताने दीवार की तरफ मुँह किये बैठी है । उसका सिर इस बुरी तरह झुका है जैसे गर्दन
नीलम कुलश्रेष्ठ कमरे में पैर रखते ही पता नहीं क्यों दिल धक से रह जाता है । मम्मी के घर के मेरे कमरे में इतनी जल्दी सब कुछ बदल सकता है मैं सोच भी नहीं सकती थी ? कमरे ...Read Moreमेरी पसंद के क्रीम रंग की जगह हलका आसमानी रंग हो गया है ।पर्दे भी हरे रंग की जगह नीले रंग के लगा दिये गये हैं, जिन पर बड़े बड़े गुलाबी फूल बने हुए हैं । मैं अपना पलंग दरवाज़े के सामने वाली दीवार की तरफ़ रखना पसंद करती थी । अब भैया भाभी का दोहरा पलंग कुछ इस तरह