सुहाग, सिन्दूर और प्रेम - भाग(२)

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सरगम अपने माँ के मामाजी रघुवरदयाल जी के साथ उनके घर पहुँची तो उसको देखते उनकी पत्नी संतोषी का मुँह बन गया और वो रघुवरदयाल जी से बोलीं..... बड़ी मुश्किलों से तो अनाथ माँ से पीछा छूटा था,अब उसकी अनाथ बेटी को भी उठा लाए,तुमने क्या अनाथों को पालने का ठेका ले रखा है... चुप रहो!कुछ तो सोच समझकर बोला करो,किसके भरोसे अनाथ लड़की को छोड़ देता,कुछ भी हो चाहे दूर की ही सही,है तो अपने रिश्तेदार ही की बेटी,ऊपर से कन्या और फिर इन्सानियत के नाते ही कुछ सोच लिया करो,भगवान को क्या मुँह दिखाओगी अगर इतना