एक स्त्री का बेजुबा दर्द

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एक स्त्री जिसे त्याग की मूर्ति समझा जाता है, लोग सोचते है कि एक स्त्री का जीवन सिर्फ त्याग करने के लिए ही होता है चाहे वो त्याग मां पापा के लिए हो या पति के लिए या फिर बच्चो के लिए , स्त्री बस त्याग ही करती रहे उसका खुद का कोई वजूद नही होता है। वह बस इन सब में पिस के रह जाती हैं। उसकी खुद की कोई जिंदगी नही होती ,खुद की कोई पहचान नही होती खुद की कोई खुशी नही होती बस होती है तो बस दूसरो के लिए त्याग की इच्छा। लोग यह सोचते