मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 3

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रुस्तम सेठ की बात सुनकर गुस्सा तो बहुत आ रही थी पर बेबस अपने गांव से दूर उस विरान से कारखाने में कैद हो चुका था ...कितने साल हो गये थे बाहर की दुनिया न देखे मन तो था बस भाग जाऊं पर ऐसा संभव नहीं हो पाया ...!....बहुत दिन बीत गये थे यहां काम करते करते ...एक दिन अचानक कारखाने के सभी दरवाज़े , खिड़कियों पर परदे डाले जा रहे थे , जब मैने पूछा ऐसा क्यूं हो रहा हैं तब किसी ने बताया की कुछ खास मेहमान आ रहे हैं इसलिए रुस्तम सेठ ने यहां सबकुछ बंद करने