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Mai bhi fouji by Pooja Singh | Read Hindi Best Novels and Download PDF

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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) by Pooja Singh in Hindi
Novels

मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - Novels

by Pooja Singh Matrubharti Verified in Hindi Motivational Stories

  • 6.1k

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कभी सोचा नहीं था ...मैं सेना में भर्ती हो पाऊंगा बस मन में उमंग और दिल में जज्बा था कुछ कर दिखाने का ... मैं भी भारत माता के लिए कुछ कर दिखााना चाहता हूं... ..... दु:ख होता है ..?अपने बीते ...Read Moreउन दिनोंं को सोचकर क्यूं होते है देश में गद्दार...... *******कहानी शुरू होती है मेरे गांव मीरपूर से ****** मैं अपने परिवार के साथ रहता था... मैं.. मेरे पापा ..मां और मेरी प्यारी छोटी बहन सोना ...हम बहुत खुश रहते थे आखिर क्यूं न रहे ...सब कुछ था हमारे पास ...शांति , सुकून और सबसे फक्र की बात थी , अपने फौजी भाई को देखना ,जो दिन रात हमारी सुरक्षा के लिए अपना घर बार छोड़कर सरहद पर निर्डरता के साथ डटे हुऐ हैं ...... मेरा तो बस यही काम था, जब भी मैं स्कूल जाया करता ..अपने फौजी भाईयों को देखकर सेल्युट कर देता था... ये ही मेरा रोज काम था, और मां उन्हें जितना संभव हो सकता था गर्म पेय पिला आती थी... उनके दिल को भी सुकून जब ही मिलता था जब वो अपना ये नियम पूरा कर लेती थी......

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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - Novels

मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 1
कभी सोचा नहीं था ...मैं सेना में भर्ती हो पाऊंगा बस मन में उमंग और दिल में जज्बा था कुछ कर दिखाने का ...मैं भी भारत माता के लिए कुछ कर दिखााना चाहता हूं........ दु:ख होता है ..अपने बीते ...Read Moreउन दिनोंं को सोचकर क्यूं होते है देश में गद्दार......*******कहानी शुरू होती है मेरे गांव मीरपूर से ******मैं अपने परिवार के साथ रहता था... मैं.. मेरे पापा ..मां और मेरी प्यारी छोटी बहन सोना ...हम बहुत खुश रहते थे आखिर क्यूं न रहे ...सब कुछ था हमारे पास ...शांति , सुकून और सबसे फक्र की बात थी , अपने फौजी
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 2
मैं रूस्तम सेठ के साथ चला गया .....वहां मैं अपना काम पूरी लग्न और ईमानदारी से करता था ,यही बात रुस्तम सेठ को पसंद आती थी ,इसलिए मेरे भरोसे अपना काम छोड़कर कही भी चला जाता था ....----समय बितता ...Read More,मैं भी उस काम में रम सा गया था तभी मुझे बहुत आवाजें सुनाई देने लगी , मानो किसी बड़े उत्सव की तैयारी हो रही हो .....ऐसा ही था जब मैने किसी से पूछा तो पता चला 26जनवरी के परेड की तैयारी हो रही हैं ....फौजी बहुत मेहनत कर रहे हैं अपना साहस दिखाने के लिए ....तभी ...मेरी अंतरात्मा से
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 3
रुस्तम सेठ की बात सुनकर गुस्सा तो बहुत आ रही थी पर बेबस अपने गांव से दूर उस विरान से कारखाने में कैद हो चुका था ...कितने साल हो गये थे बाहर की दुनिया न देखे मन ...Read Moreथा बस भाग जाऊं पर ऐसा संभव नहीं हो पाया ...!....बहुत दिन बीत गये थे यहां काम करते करते ...एक दिन अचानक कारखाने के सभी दरवाज़े , खिड़कियों पर परदे डाले जा रहे थे , जब मैने पूछा ऐसा क्यूं हो रहा हैं तब किसी ने बताया की कुछ खास मेहमान आ रहे हैं इसलिए रुस्तम सेठ ने यहां सबकुछ बंद करने
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 4
उनकी ये योजना मुझे दिन रात बैचेन कर रही थी , आखिर मुझे भागने का मौका मिल ही गया ..उस दिन मैं यहां से भागने में कामयाब हो गया , जिस दिन उस कारखाने की मालगाड़ी आई थी …....अब ...Read Moreसीधे अपने घर न जाकर कैप्टन मान सिंह के पास पहुंचा , कैप्टन मान सिंह जोकि अब मेजर जनरल बन चुके थे मुझे देखकर बहुत खुश हुए...... पहले तो वो मुझे पहचान नहीं पाये लेकिन जब मैंने उन्हें बचपन का किस्सा सुनाया तब वो तुरंत बोले " तुम धरा के बेटे हो "....." हां "" अरे तुम कहां चले गए
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 5
तब मेजर अंकल ने एक स्टूडेंट को बुलाकर कर पूछा...तुम कैसे बच गए..?....वो स्टूडेंट उन्हें बताता है..." सर हम तो उसको थैंक्स कहना चाहते हैं जिसने पूरे नोटिस बोर्ड पर लिखा था...आज बम ब्लास्ट होगा और ये बात सच ...Read Moreअगर जान बचाना चाहते हो तो भाग जाओ यहां से....हम सब तभी बाहर भाग आए थे..."मेजर अंकल को शायद मेरी बात तब चिंताजनक लगी , उन्होंने तुरंत मुझे अपने कैंप पर बुलाया और मुझसे सवालों की झड़ी लगा दी......!" नोटिस बोर्ड पर तुम लिखकर आये थे...?..."मैंने हां कहा..." तुम्हें कैसे पता था कि कल आडिटोरियम में ब्लास्ट होगा....?.."" यही तो
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - 6
मैं हैरान था क्योंकि वो मेजर अंकल नहीं थे..... मैंने उनसे पूछा मेजर अंकल कहां है तब उन्होंने दिवार पर टंगी तस्वीर को दिखाया और कहा " अब ये यही कैद है .."मैंने उनसे पूछा " आखिर क्या हुआ ...Read Moreसाथ " तब उन्होंने कहा " क्या तुम सूरज हो धरा के बेटे.."" हां मैं ही सूरज हूं.." उन्होंने मुझे एक चिठ्ठी पकड़ाई और कहा " ये मेजर जनरल के जरिए लिखी आखिरी चिट्ठी है ..." जैसे ही मैंने चिठ्ठी पढ़ी ... मैं कह नहीं सकता उस समय मेरा पूरा शरीर निष्क्रिय हो गया पास खड़े कुछ साथियों ने मुझे
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मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - आखिरी भाग
मैं उस कारखाने में पहुंचा जहां में काम किया करता था...अपना भेष बदलकर उसी रात मैं उस सुरंग के रास्ते दुश्मन देश में दाखिल हुआ .....दिल में आग और आंखों में नफ़रत की ज्वाला लिए मैं वहां पहुंच गया....काफी ...Read Moreमैं वहां भेष बदलकर आम लोगों की तरह रहामुझे रुस्तम सेठ तक पहुंचने के लिए आखिर रास्ता मिल गया ...जब मैं उसके बेटे से मिला .....तब मैंने उससे दोस्ती का नाटक शुरू किया.... उसकी दोस्ती का भरोसा आखिर मैंने जीत लिया....अब बस सही समय का इंतजार करता रहा और वो मौका जल्द ही मुझे मिल गया .... वो समय बहुत
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