रुपये, पद और बलि - 3

  • 7.1k
  • 3.1k

अध्याय 3 बात मालूम होने पर पुलिस की खाकी यूनिफॉर्म स्टेशन के प्लेटफार्म के चारों ओर जमा हो गई। गुलाब की पंखुड़ियां चारों तरफ बिखरी हुई थी माणिकराज के चारों तरफ मक्खियां भिन्न-भीना रही थी। उनके स्वागत करने आए अनुयायी कुछ दूर पर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता चार-पांच लोग सिर्फ फिक्र के साथ खड़े हुए थे | इंस्पेक्टर उनके पास आए। "किस ने चाकू मारा पता चला...?" "पता नहीं चला इंस्पेक्टर। भीड़ का फायदा उठाकर उसने ऐसा किया। "पास में कौन-कौन खड़े थे ?" "मालूम नहीं।" "तुम लोग कौन हो ?" "हम इस पार्टी