कौन है ख़लनायक - भाग १४ 

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प्रियांशु की आवाज़ सुनते ही रुपाली के हाथ-पाँव कांपने लगे। "प्रियांशु तुम?" "हाँ मैं…" " तुमने ऐसा क्यों किया प्रियांशु? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? क्यों मेरी ज़िंदगी में तुमने ज़हर घोल दिया? क्यों मेरे जीवन को नरक बना दिया? मैंने तुम्हें जी जान से प्यार किया था। अपना सब कुछ तुम्हें दे दिया था। प्यार की ख़ातिर, विश्वास की ख़ातिर और तुमने विश्वासघात किया है मेरे साथ, आख़िर क्यों?" "अरे-अरे बोलती ही जाओगी या कुछ सुनोगी भी। सुनो रुपाली तुम जितनी जिज्ञासु हो जानने के लिए मैं भी उतना ही आतुर हूँ तुम्हें वह बात