निर्वाण--भाग(१)

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निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या होगा? ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या आत्मसक्षात्कार से मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है, इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु