Nirvaan book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Nirvaan is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
निर्वाण. - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या होगा? ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या आत्मसक्षात्कार से मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है,
इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु अन्ततः वो सोचती है कि वो निर्वाण क्यों लें? उसे तो उस दुःख देने वाले को निर्वाण देना चाहिए....
तो कहानी कुछ इस प्रकार है.....
गर्मियों के दिन और एक छोटे से कस्बे की रेलवे कालोनी.....
जहाँ माखनलाल अहिरवार अपने परिवार के साथ रहतें हैं,वें रेलवें में खलासी हैं,वें ज्यादा पढ़े लिखें नहीं है लेकिन वें चाहते हैं कि उनके दोनों बच्चे पढ़कर अच्छी नौकरी पाएं,माखनलाल जी रेलवें कालोनी में अपनी पत्नी सम्पदा,बेटी भामा और बेटे प्रबल के साथ रहते हैं,गाँव में उनका और परिवार भी रहता है,जिसमें उनकी माँ और दो छोटे भाई सहित उनका परिवार भी शामिल हैं,दोनों छोटे भाई ठीक से पढ़ लिख नहीं पाएं और अपनी पुस्तैनी थोड़ी सी जमीन पर ही खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करते हैं,
निर्वाण इसका अर्थ होता है मोक्ष,इस संसार में सभी मोक्ष पाना चाहते हैं किन्तु उसका जरिया कौन और क्या होगा? ये कह पाना मुश्किल है,मोक्ष परम अभीष्ट एवं परम पुरूषार्थ को कहा गया है,मोक्ष प्राप्ति का उपाय आत्मतत्व या ...Read Moreसे मिलता है,न्यायदर्शन के अनुसार दुःख का अत्यंतिक नाश ही मोक्ष कहलाता है,पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध होना ही निर्वाण कहलाता है,तात्पर्य यह है कि सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना ही निर्वाण कहलाता है, इस कहानी की नायिका भी दुःख से परेशान होकर निर्वाण चाहती है किन्तु
माँ! बाबूजी से बात करो ना! वो हम सबको गाँव ले चलेगें,प्रबल बोला।। कह दिया ना कि हम गाँव नहीं जाऐगे,सम्पदा बोली।। लेकिन माँ! हम हर साल तो गाँव जाते हैं तो इस बार क्यों नहीं! भामा ने पूछा।। ...Read Moreइसलिए कि मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी दादी तुम्हें हमेशा कोसती रहें,हमेशा यही जताती रहे कि तू एक लड़की है,तुझे पढ़ाकर मैं और तेरे बाबूजी गुनाह कर रहे हैं,सम्पदा गुस्से से बोली.... तो क्या दादी नहीं चाहती कि मैं आगें पढ़ू? भामा ने पूछा।। नहीं!वो तो कहतीं हैं मैं तुझे घर के काम सिखाऊँ,सम्पदा बोली।। तुम नहीं चाहती तो फिर
माखनलाल जी ने अपना खाना फौरन ही खतम किया और उसी कमरें के कोनें में बिछे अपने बिस्तर पर रजाई ओढ़कर चुपचाप लेट गए,सम्पदा ने उनकी झूठी थाली उठाकर आँगन में रखें जूठे बर्तनों के साथ रखी,अँगीठी में थोड़ा ...Read Moreगरमाया और बर्तन धोने बैठ गई,रात को बर्तन धोकर ना रखो तो और काम बढ़ जाता है सुबह के लिए,कुछ ही देर में वो बरतन धोकर आई और अँगीठी के सामने बैठकर स्वेटर बुनने लगी,क्योंकि भामा अभी भी पढ़ रही थी,जब तक वो जागती है तो सम्पदा भी उसके साथ जागती रहती है,प्रबल भी सो चुका था और सियाजानकी भी
देखते ही देखते समय पंख लगाकर उड़ गया,भामा ने बाहरवीं भी पास कर ली थी और वो काँलेज भी पहुँच गई थी,साथ साथ उसने उत्तर प्रदेश लेडी काँन्सटेबल के लिए आवेदन भी भरा और वो उसने क्वालीफाई भी कर ...Read Moreउसने अपनी आगें की पढ़ाई प्राइवेट करने की सोचीं..... भामा की नौकरी की खबर से माखनलाल जी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया और सम्पदा के अरमानों को तो जैसे पंख ही मिल गए थे,वो खुशी के मारें फूली ना समा रही थी,आखिरकार उसकी और उसकी बेटी की मेहनत सफल जो गई थी,दोनों पति पत्नी ने सारे मुहल्ले और
भामा ने जल्दी से वर्दी बदली और सादे से सलवार कमीज़ में गाँव की छोटी सी हाट से सामान लेने चल पड़ी,उसका मन बहुत ही खिन्न था,उसे अब थानेदार पुरूषोत्तम यादव पर बिल्कुल भरोसा नहीं रह गया था,वो तो ...Read Moreउससे अब अपनी जान छुड़ाना चाहती थी लेकिन उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था,उसे पुरूषोत्तम की आँखों में उसके लिए कुत्सित वासना नज़र आती थी,वो यही सब सोच ही रही थीं कि उसे हाट में किशना की पत्नी रामजानकी दिख गई,जो थाने में अपनी गुमशुदा बेटी की रिपोर्ट लिखवाने आई थी,वो उसके पास गई और पूछा..... तुम रामजानकी