कोयला भई ना राख--भाग(२)

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डाँक्टर शैलजा के जाने के बाद अम्बिका ने बाक़ी के रूपये उठाएं और उन्हें गौर से देखते हुए बोली.... तेरे लिए मैं क्या से क्या बन गई?काश तू इस दुनिया में ना होता तो लोंग इतना नीचें कभी ना गिरते,तूने तो ईश्वर का दर्जा ले लिया है,तू ईश्वर तो नहीं लेकिन ईश्वर से कम भी नहीं,क्या क्या नाच नचवाता है तू लोगों को,ख़ैर अब खिलखिला मत मेरे पर्स में जाकर आराम कर और अम्बिका ने उन रूपयों को अपने पर्स में आराम करने के लिए छोड़ दिया और फिर मन में सोचने लगी... स्त्री का घर नहीं होता, वो तो