एक था ठुनठुनिया - 18

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18 नए दोस्तों के साथ नौका-यात्रा अगले दिन मनमोहन शाम के समय छिद्दूमल की बगिया में सुबोध से मिला, तो वह वाकई एक बदला हुआ मनमोहन था। उसने मन ही मन कुछ गुन-सुन करते हुए सुबोध से कहा, “वाकई ठुनठुनिया में है कुछ-न-कुछ बात!” “कैसी बात, कौन-सी बात?...मैं भी तो सुनूँ।” सुबोध को हैरानी हुई। वह पहली बार मनमोहन से ठुनठुनिया की तारीफ सुन रहा था। “बस, जादू ही समझो...!” अब के मनमोहन ने जरा और खुलकर कहा। “अरे! कुछ बता न, पूरी बात क्या है?” सुबोध थेड़ा चिढ़ गया। तब मनमोहन ने कल की पूरी घटना बता दी। फिर