Ek tha Thunthuniya book and story is written by Prakash Manu in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ek tha Thunthuniya is also popular in Children Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एक था ठुनठुनिया - Novels
by Prakash Manu
in
Hindi Children Stories
एक था ठुनठुनिया। बड़ा ही नटखट, बड़ा ही हँसोड़। हर वक्त हँसता-खिलखिलाता रहता। इस कारण माँ का तो वह लाड़ला था ही, गाँव गुलजारपुर में भी सभी उसे प्यार करते थे।
गाँव में सभी आकर ठुनठुनिया की माँ गोमती से उसकी बड़ाई करते, तो पुलककर गोमती हँस पड़ती। उस हँसी में अंदर की खुशी छलछला रही होती। वह झट ठुनठुनिया को प्यार से गोदी में लेकर चूम लेती और कहती, “बस, यही तो मेरा सहारा है। नहीं तो भला किसके लिए जी रही हूँ मैं!”
गोमती के पति दिलावर को गुजरे चार बरस हो गए थे। तब से एक भी दिन ऐसा न गया होगा, जब उसने मन ही मन दिलावर को याद न किया हो। वह धीरे से होंठों में बुदबुदाकर कहा करती थी, “देखा, हमारा बेटा ठुनठुनिया अब बड़ा हो गया है! यह तुम्हारा और मेरा नाम ऊँचा करेगा।...”
ठुनठुनिया अभी केवल पाँच बरस का हुआ था, पर गाँव में हर जगह उसकी चर्चा थी। जाने कहाँ-कहाँ वह पहुँच जाता और अपनी गोल-मटोल शक्ल और भोली-भाली बातों से सबको लुभा लेता। सब गोमती के पास आकर ठुनठुनिया की तारीफ करते तो उसे लगता, अब जरूर मेरे कष्ट भरे दिन कट जाएँगे!
प्रकाश मनु 1 सच...पगला, बिल्कुल पगला है तू! ........................ एक था ठुनठुनिया। बड़ा ही नटखट, बड़ा ही हँसोड़। हर वक्त हँसता-खिलखिलाता रहता। इस कारण माँ का तो वह लाड़ला था ही, गाँव गुलजारपुर में भी सभी उसे प्यार करते ...Read Moreगाँव में सभी आकर ठुनठुनिया की माँ गोमती से उसकी बड़ाई करते, तो पुलककर गोमती हँस पड़ती। उस हँसी में अंदर की खुशी छलछला रही होती। वह झट ठुनठुनिया को प्यार से गोदी में लेकर चूम लेती और कहती, “बस, यही तो मेरा सहारा है। नहीं तो भला किसके लिए जी रही हूँ मैं!” गोमती के पति दिलावर को गुजरे
2 मेले में हाथी ................. ठुनठुनिया अभी छोटा ही था कि एक दिन माँ के साथ होली का मेला देखने गया। गुलजारपुर में होली के अगले दिन खूब बड़ा मेला लगता था, जिसमें आसपास के कई गाँवों के लोग ...Read Moreथे। पास के शहर रायगढ़ के लोग भी आ जाते थे। सब बड़े प्रेम से एक-दूसरे से गले मिलते। साल भर जिनसे मिलने को तरस जाते थे, वे सब इस मेले में मिल जाते थे। इसलिए सब उमंग से भरकर इस मेले में आते थे। ठुनठुनिया अपनी माँ के साथ मेले में घूम रहा था कि तभी शोर मचा, “गजराज
3 आहा रे, मालपूए! एक बार ठुनठुनिया पड़ोस के गाँव केकापुर में अपने दोस्त गंगू से मिलने गया। गंगू ठुनठुनिया को देखकर उछल पड़ा। माँ से बोला, “माँ-माँ, देखो तो, ठुनठुनिया आया है, ठुनठुनिया!” गंगू की माँ भी ठुनठुनिया ...Read Moreदेखकर बहुत खुश हुई। वह मालपूए बना रही थी। बोली, “दोनों दोस्त मिलकर खाओ।...अभी गरमागरम हैं, झटपट खा लो, देर न करो।” ठुनठुनिया ने पहले कभी मालपूए न खाए थे। उसने घी में तर मीठे-मीठे मालपूए खाए, तो उसे इतने अच्छे लगे कि एक-एक कर पाँच मालपूए खा गया। गंगू बोला, “तू कहे तो अंदर अम्माँ से और लेकर आऊँ?”
4 जंगल में बाँसुरी ठुनठुनिया के घर के आगे से एक बाँसुरी बजाने वाला निकला। बाँसुरी पर इतनी प्यारी-प्यारी मीठी धुनें वह निकाल रहा था कि ठुनठुनिया तो पूरी तरह उसमें खो गया। वह सुनता रहा, सुनता रहा और ...Read Moreजैसे ही बाँसुरी वाला चलने को हुआ, ठुनठुनिया माँ के पास जाकर बोला, “माँ, ओ माँ, मुझे एक बाँसुरी तो खरीद दे!” माँ से पैसे लेकर ठुनठुनिया ने बाँसुरी वाले से चार आने की बाँसुरी खरीदी और बड़ी अधीरता से बजाने की कोशिश करने लगा। उसने बाँसुरी को होंठों के पास रखा। फिर उसमें जोर से फूँक मारकर बार-बार उँगलियाँ
5 आया...आया एक भालू! एक दिन ठुनठुनिया जंगल में घूम रहा था कि उसे एक अनोखी चीज दिखाई दी। पास जाकर देखा, वह काले रंग का एक मुखौटा था जिस पर काले-काले डरावने बाल थे। ठुनठुनिया को बड़ी हैरानी ...Read Moreजंगल में भला यह मुखौटा कौन छोड़ गया? क्या किसी नाटक-कंपनी के लोग यहाँ से गुजरे थे और गलती से इसे यहाँ छोड़ गए। या फिर जंगल का कोई जानवर इसे शहर से उठा लाया और यहाँ छोड़कर चला गया? जो भी हो, चीज तो बड़ी मजेदार है! ठुनठुनिया ने उस मुखौटे को उठाया और अपने चेहरे पर पहनकर देखा।