उजाले की ओर –संस्मरण

  • 3.2k
  • 1
  • 1.2k

स्नेही मित्रो नमस्कार आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ मूल्यों में इतना भयंकर बदलाव आ गया है कि राजनीति शब्द से ही नकारात्मकता का आभास होने लगता है | जैसे राजनीति न हो गई कोई इतनी गंदी चीज़ हो गई कि उधर आँख उठाकर देखना भी जैसे कीचड़ में पड़ने की बात हो | इतने गंदे तरीके से दूरदर्शन के भिन्न भिन्न चैनलों पर ऐसे चीख़ने चिल्लाने वाले कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि एक सीधा-सादा आम आदमी सचमुच बाध्य हो जाता है सोचने के लिए कि भई राजनीति जैसा खराब विषय कोई हो ही नहीं सकता