जब मेरा उस शहर में मन नहीं लगा तो मैं इस शहर में आ गया,सारंगी और छलिया का बिछड़ना मुझे खल रहा था अब साथ में जग्गू दादा भी मुझे छोड़कर जा चुका था,एक साथ इतने ग़म सहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था,इसलिए मैनें अपने ग़मों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लिया,जहाँ जो काम मिलता तो कर लेता और साथ में जो पैसें मिलते उनसे शराब पीता,ना कोई रहने का ठिकाना और ना ही खाने पीने की चिन्ता,बस यूँ ही फक्कड़ बना गलियों में घूमा करता था, फिर एक दिन मैं सड़कों पर यूँ ही टहल रहा था