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कामवाली बाई - भाग(२२)

जब मेरा उस शहर में मन नहीं लगा तो मैं इस शहर में आ गया,सारंगी और छलिया का बिछड़ना मुझे खल रहा था अब साथ में जग्गू दादा भी मुझे छोड़कर जा चुका था,एक साथ इतने ग़म सहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था,इसलिए मैनें अपने ग़मों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लिया,जहाँ जो काम मिलता तो कर लेता और साथ में जो पैसें मिलते उनसे शराब पीता,ना कोई रहने का ठिकाना और ना ही खाने पीने की चिन्ता,बस यूँ ही फक्कड़ बना गलियों में घूमा करता था,
फिर एक दिन मैं सड़कों पर यूँ ही टहल रहा था ,मेरे पास कोई काम भी नहीं था,तभी एक साहब अपनी कार से अपने बच्चे के साथ उतरे,वें अपने बच्चे को आइसक्रीम दिलवाने के लिए कार से उतरे थे,वहीं पास में एक गुब्बारे वाला भी खड़ा था,तभी गुब्बारे वाले के हाथ से एक गुब्बारा छूटकर उड़ गया,उन साहब का ध्यान अपने बच्चे पर से हटकर आइसक्रीम खरीदने में था,उन्होंने सोचा बच्चा उनके पास ही खड़ा है,लेकिन बच्चे का ध्यान उस उड़ते हुए गुब्बारे पर था और वो उसके पीछे सड़क पर भागा,सामने से एक कार तेज रफ्तार में बच्चे की ओर आ रही थी और मैं वहीं पर था,मैनें देखा कि वो कार बच्चे के बिल्कुल नजदीक आने वाली है तो मैनें बिना वक्त गवाएँ बच्चे को सड़क पर से खीचकर दूर धकेल दिया,लेकिन वो कार मुझे नजदीक से छूकर निकल गई,जिसके कारण मुझे हल्की सी टक्कर लगी और मैं जमीन पर गिर पड़ा,मैं दो दिनों से भूखा था इसलिए गिरते ही बेहोश हो गया,
वहाँ मौजूद लोगों ने मुझे उठाया और वें साहब मुझे फौरन अपनी कार में लेकर अस्पताल पहुँचे,मेरे होश आने पर उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या करते हो,कहाँ रहते हो,मैं ने तब उनसे कहा कि दोनों ही नहीं हैं मेरे पास, ना नौकरी और ना रहने का ठिकाना, इस दुनिया में बिल्कुल अकेला हूँ कोई भी अपना नहीं है,वें और कोई नहीं अपनी इसी फैक्ट्री के मालिक थे,उन्हें जब मेरी हालत पता चली तो उन्होंने अपनी फैक्ट्री में मुझे काम दिया और रहने का ठिकाना भी दे दिया,इतने साल हो गए तब से यहीं पर हूँ,मेरे शराब पीने पर भी वें मुझे नौकरी से नहीं निकालते,वें कहते हैं तुम शराबी जरूर हो लेकिन बेईमान नहीं,काश तुम शराब पीना छोड़ पाते तो तुमसे अच्छे दिल वाला व्यक्ति इस दुनिया में नहीं है,अपनी बात कहते कहते राधे रूक गया तब गीता उससे बोली.....
वही तो मैं भी कहती हूँ कि अगर आप शराब छोड़ दें तो आपसे अच्छे दिल वाला व्यक्ति कहीं नहीं।।।
लेकिन ये नामुमकिन है गीता!शायद यही मेरी नियति है,राधेश्याम बोला।।
इन्सान चाहें तो नामुमकिन को भी मुमकिन कर सकता है,गीता बोली।।
मैं अब कुछ नहीं चाहता,मेरे भीतर जीने की आस खतम हो चुकी है,राधे बोला।।
आपकी सोच बिलकुल गलत है,जिन्दगी की नयी शुरुआत भी तो की जा सकती है,एक नए हमसफर के साथ,गीता बोली।।
जब मन में उमंगें ही ना हो तो नया हमसफर भी छोड़कर चला जाएगा,राधे बोला।।
लेकिन मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊँगी,वादा करती हूँ आपसे,गीता बोली।।
कहीं तुम्हें मुझसे मौहब्बत तो नहीं हो गई?राधे ने पूछा।।
हाँ!शायद!मैं आपको चाहने लगी हूँ,आपकी अच्छाई ने मेरा दिल जीत लिया है,गीता बोली।।
ऐसी भूल मत करो गीता!एक पत्थर से दिल मत लगाओ,सिवाय चोट के तुम्हें कुछ नहीं मिलने वाला,राधेश्याम बोला।।
दिल पर किसी का जोर नहीं राधे जी!किसी पर भी आ सकता है सो आप पर ही आ गया,गीता बोली।।
नादानी मत करो गीता!पछताओगी,राधे बोला।।
अब तो नादानी हो चुकी है मुझसे,गीता बोली।
समझदारी से काम लो,ऐसा कभी नहीं हो सकता,मेरे नसीब में में दोबारा मौहब्बत नहीं है,राधेश्याम बोला।।
समझदारी से काम लेती तो इतनी प्यारी सी नादानी ना कर पाती और मैनें तो नहीं कहा ना कि आप मुझसे मौहब्बत कीजिए,आप मुझे अपना लीजिए,मैं आपसे मौहब्बत करती हूँ मेरे लिए इतना ही काफी है,गीता बोली।।
तुम पागल हो गई हो,ये कैसी मौहब्बत है भला?एकतरफा मौहब्बत करके तुम्हारे लिए जीना आसान ना होगा,राधेश्याम बोला।।
मुझे ये भी मंजूर है,गीता बोली।।
मैं अब कुछ नहीं कह सकता इस बारें में,राधेश्याम बोला।।
आप कुछ कहिए भी मत,मुझे जो कहना था मैनें कह दिया,यही सोचकर मैं आपका इन्तजार हमेशा करूँगी कि कभी ना कभी तो आपके दिल में मुझे थोड़ी सी जगह मिल ही जाएगी,गीता बोली।।
ये कभी नहीं हो सकता,राधेश्याम बोला।।
कोई बात नहीं,मैं तब भी खुश हूँ,गीता बोली।।
तुम समझती क्यों नहीं,किसी के इन्तज़ार में वक्त गुजारना मुश्किल होता है गीता! राधेश्याम बोला।।
कोई बात नहीं,वो वक्त भी मेरा,इन्तज़ार भी मेरा और आप भी मेरे,मैं आपकी नहीं तो क्या हुआ?गीता बोली।।
तुमसे बहस करना बहुत ही मुश्किल है,तुमसे कोई नहीं जीत सकता,राधेश्याम बोला।।
लेकिन आपने तो जीत लिया मेरा दिल,गीता बोली।।
चलो अच्छा!कल मिलते हैं....अभी कुछ काम कर लें,राधे बोला।।
जी!ठीक है और आज मैं बहुत खुश हूँ,गीता बोली।।
खुश...वो क्यों भला?राधे ने पूछा।।
वो इसलिए कि आज मैनें अपने मन की बात आपसे कह दी तो बहुत अच्छा लग रहा है,गीता बोली।।
चलो...मेरी वज़ह से कोई खुश तो हुआ,राधे बोला।।
वैसें आप चाहें तो जिन्दगी भर के लिए ये ठेका ले सकते हैं,गीता हँसते हुए बोली।।
गीता!मुझे थोड़ा वक्त दो,शायद तुम्हारे साथ रहते रहते मुझे तुम्हारी आदत हो जाएं और मैं तुम्हें अपनी जिन्दगी में शामिल कर लूँ,राधे बोला।।
जितना वक्त चाहिए आप ले सकते हैं,आप नहीं भी शामिल करेगें मुझे अपनी जिन्दगी में तब भी मुझे आपसे कोई शिकायत ना होगी,प्यार मैनें किया है तो निभाऊँगी मैं भी,गीता बोली।।
अब तुम्हारा उपदेश खतम हो गया हो तों चलें,राधेश्याम बोला।।
हाँ...हाँ...चलिए ना!गीता बोली।।
और फिर दोनों मुस्कुराते हुए चल पड़े और इसी तरह दिन बीतते रहे दोनों की मुलाकातें होतीं रहीं,फैक्ट्री की सभी महिलाओं को भी उन दोनों का साथ रहना खलने लगा था,लेकिन तब भी दोनों ने अपनी दोस्ती नहीं तोड़ी,लेकिन गीता के लाख मना करने के बावजूद भी राधे शराब नहीं छोड़ पाया,वो गीता से कहता तुम कुछ भी करवा लो लेकिन मैं शराब नहीं छोड़ सकता,मुझे इसकी लत लग चुकी है ना पिऊँ तो ऐसा लगता है कि मेरे पाँव लड़खड़ाने लगें हैं मेरे भीतर जान ही नहीं रह गई है,मैं शराब के बिना नहीं रह सकता,राधे के ऐसा कहने पर फिर गीता उसे शराब पीने से ना रोकती.....
राधे कभी कभी गीता से कहता कि मैं कितना अभागा हूँ ना!मैं जिसे चाहता था वो मुझे ना मिली और जो मेरे ऊपर जान छिड़कती है उसे मैं नहीं चाहता,तब गीता कहती मुझे फरक नहीं पड़ता राधे जी,मैं तो मीरा हूँ जो केवल राधे के दर्शनों की अभिलाषी है,मेरा प्रेम अब मेरी भक्ति बन चुका है,प्रेम में पाना मायने नहीं रखता,जब मैं आपको देखने भर से तृप्त हो जाती हूँ तो आपकी काया पाकर मैं क्या करूँगीं?गीता की ऐसी बातें सुनकर राधे कहता....
देवी!कहांँ से लाती हो इतना ज्ञान?धन्य हो गया मैं तुम्हारी जैसी दोस्त पाकर,
और फिर दोनों हँसने लगते,ऐसे ही दोनों की दोस्ती को दो साल होने को था,अब तो राधे कभी कभी गीता के घर भी आने लगा था,कावेरी को भी राधे अच्छा लगा था,उसने गीता से कहा भी कि अगर वो चाहें तो वो राधे से उसके रिश्ते की बात चलाएं लेकिन गीता ने कावेरी से कहा कि....
माँ!कोई फायदा नहीं ,वो शादी नहीं करना चाहता।।
और फिर एक दिन गीता को पता चला कि उसकी बड़ी बहन लक्ष्मी की बहुत तबियत खराब है और वो सरकारी अस्पताल में भरती है और उसने गीता को मिलने के लिए बुलवाया है....
पहले तो गीता ने ना जाने का सोचा क्योंकि लक्ष्मी की ज़हर भरी बातें उसका कलेजा छलनी कर देतीं थी,लक्ष्मी अब अपनी बेटी को कावेरी के पास नहीं रहने देती थीं,ना खुद उनसे मिलने आती थी और ना अपनी बेटी को भी आने देती थी क्योंकि कावेरी भी उसे कई बार मना कर चुकी थी कि गैर मर्दों के साथ नाजायज़ सम्बन्ध मत रख,तब लक्ष्मी उससे कहती कि तुमने ही तो ऐसा पति बाँधा है मेरे पल्ले तो मैं क्या करूँ और माँ तुम भी तो कोई दूध की धुली नहीं हो, इतनी सब बातों के बावजूद भी गीता अपना मन मारकर लक्ष्मी से मिलने गई,
अस्पताल जाकर गीता को पता चला कि लक्ष्मी को एड्स हो गया है और अब उस बच पाना नामुमकिन है,उसके पति ने भी अब अस्पताल आना छोड़ दिया है,वो उसे देखने भी नहीं आता और एक दूसरी औरत को उसने घर में रख लिया है जो विधवा थी,वो उसकी बेटी को बहुत मारती पीटती है इसलिए लक्ष्मी ने गीता से विनती की कि वो उसकी बेटी को अपने साथ रख लें,नहीं तो वो चैन से मर नहीं पाएगी,उसके जाने के बाद ना जाने वो औरत और उसका पति उसकी बेटी का क्या हाल करें?और फिर लक्ष्मी ने गीता से रोते हुए माँफी माँगी और कहा कि.....
मुझे माँफ कर दे मेरी बहन,मैनें हमेशा तेरे साथ बुरा सुलूक किया,वो इसलिए कि मैं तुझसे जलती थी,तू मुझसे सुन्दर थी और माँ हमेशा तेरा ख्याल ज्यादा रखती थी,लेकिन अब मेरा अन्त समय आ गया है इसलिए सोचा तुझसे माँफी माँग लूँ,मैनें जो कर्म किए हैं ये उन्ही की सज़ा है,इसलिए शायद मुझे भगवान तिल तिल करके तड़पा तड़पा के मार रहा है,स्वर्ग नर्क सब यहीं हैं इन्सान जैसे कर्म करता है वैसी ही सज़ा उसे मिलती है लेकिन इन्सान ये समझता ही नहीं बस अपने मद में मगन रहता है और यही मेरे साथ भी हुआ,मैं ये बात भूल गई थी इसलिए बुरे कर्म किए जा रही थी,जिनके साथ मैं हमबिस्तर हुई उन्हीं में से कोई मुझे ये रोग दे गया,जब मुझे पता चला कि मुझे एड़्स है तो मैनें अपनी बेटी का भी टेस्ट करवाया लेकिन भगवान का शुकर है कि वो सही सलामत है,इसलिए मैं चाहती हूँ कि वो तेरे पास रहें,मुझे तेरे सिवाय अब किसी पर भी भरोसा नहीं है,तू रखेगी ना मेरी बेटी का ध्यान....बोल रखेगी ना....!
और ये कहते कहते लक्ष्मी फूट फूटकर रोने लगी,तब गीता ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा...
हाँ...मैं रखूँगी उसका ध्यान....
तब लक्ष्मी बोली....
मुझे छू मत,तुझे पता है ना कि मुझे एड्स है।।
लेकिन ये छूत की बिमारी नहीं होती,छूने से नहीं फैलती,गीता बोली।।
और फिर सालों बाद दोनों बहनों ने उस दिन जी खोलकर बातें कीं,हँसीं खिलखिलाईं,गीता कावेरी के हाथों का बना खाना लक्ष्मी के लिए लेकर गई थीं,जिसे खाकर लक्ष्मी की आत्मा तृप्त ह़ो गई,फिर गीता लक्ष्मी की बेटी जानकी को अपने साथ ले आई और उसे अपनी बेटी की तरह पालने लगी...
और कुछ महीनों बाद लक्ष्मी चल बसी,अब गीता ही जानकी की माँ और बाप दोनों थीं,वो उसका बहुत ख्याल रखती,उसने उसका अच्छे से स्कूल में एडमिशन भी करवा दिया,जानकी भी मन लगाकर पढ़ती थी,वो डाँक्टर बनना चाहती थी,गीता उसकी हर ख्वाहिशें पूरी करती,अब कावेरी चाहती थी कि गीता का घर भी बस जाएं लेकिन गीता शादी करने से इनकार कर देती,वो अपनी माँ से कहती कि वो राधे को चाहती है,इसलिए वो किसी से भी शादी कर लें उसे अपने दिल में जगह नहीं दे पाएगी,इस बात को लेकर माँ बेटी में रोज़ बहस होती,लेकिन गीता शादी के लिए ना मानती,कावेरी ने मुरारी और उसकी पत्नी से भी गीता को मनाने के लिए कहा लेकिन तब भी गीता ना मानी....
तब मुरारी ही कावेरी से बोला....
माँ!रहने दो ना!क्यों परेशान करती हो उसे।।
लेकिन बेटा!बड़ा मुश्किल होता है इस दुनिया में किसी औरत के लिए मर्द के सहारे के बिना जीना।।
लेकिन माँ!अब वो जमाना नहीं रहा कि औरत अकेले ना जी सकें,फिर मैं तो हूँ ना!इसके साथ हमेशा रहूँगा,कोई परेशानी होगी तो मैं इसकी मदद करूँगा,तू चिन्ता मत कर,मुरारी बोला।।
और फिर कावेरी ने मुरारी की बात मान और फिर गीता से कभी शादी करने को नहीं कहा.....
इधर राधे और गीता अकसर मिलते,दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश नज़र आते,राधे गीता को पसन्द तो करता था लेकिन प्यार नहीं करता था,बस उसे उसका साथ अच्छा लगता था और गीता तो इसमें भी राज़ी थी,गीता ने लाख कोशिश की ...लाख कहा राधे से कि वो शराब छोड़ दे लेकिन राधे कहता कि शराब अब उसकी जिन्दगी बन चुकी है.....
फिर एक दिन अखबार में खबर आई कि जहरीली शराब पीने से चालिस लोगों की मौत हो गई है और उसमें गीता का राधे भी शामिल था,गीता को भरोसा नहीं हुआ और वो थाने पहुँची ,उन मृत लोगों में सचमुच उसका राधे शामिल था और गीता वहीं चक्कर खाकर गिर पड़ी......

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....