रॉबर्ट गिल की पारो - 17

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भाग 17 आज सभी दस बजे अजंता गुफाओं की ओर चले गए। रॉबर्ट तेज़ रफ्तार से घोड़े पर बैठकर दौड़ने लगा। उसने सोचा मैं हमेशा यात्रा पर ही रहता हूँ। मेरी यात्रा अंतहीन है, मुझे जाना कहां है कुछ पता नहीं। लेकिन उद्देश्यहीन भी मैं नहीं भटका हूँ। लगता है ज़िंदगी का अंतिम पड़ाव यह अजंता ग्राम ही है। बीच-बीच में भयानक उदासी उसे घेर लेती है। हॉर्स शू पॉइन्ट पर वह घोड़े से उतर गया। चारों तरफ नज़र दौड़ाई। शायद पारो कहीं नज़र आ जाए। लेकिन दूर-दूर तक कोई नहीं था। घोड़ा जाने-पहचाने रास्ते पर अकेला ही उतरता गया।