अभिव्यक्ति.. - 13

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फिर वापस चली आना..   मेरी सारी नादानियाँ तेरे मुस्कुराने की वजह होती थी   आंखोसे बहते अश्कोसे, तेरी हर कमीज़ भिगोती थी     गलतियों के नाम पर तुम मेरी शरारत को पकड़ते थे  और जिंदगी के खेल को तुम कुछ लम्हो में बयां करते थे    में सूरज की किरणों से रोज़ झग़डा करती थी  पलभरमे बज़्म (बांहे) खोलकर तूम मेरी छांव बना करते थे      जिस्म की बजाये तूम मेरी ज़ुल्फ़ो में उलझा करते थे  मै बेख़ौफ़ बचपना करती थी, तूम चूपचाप मुझको सुनते थे     में कपड़ों की बजाए मेरे हर राज़ बेपर्दा करती थी  तुम किसी डॉक्टर