प्रेम गली अति साँकरी - 8

  • 3.8k
  • 2.1k

खासा लंबा समय लगा उन काँटों की चुभन को छुड़ा पाने में समय के काँटे सबके दिलों में चिपक गए थे लेकिन ज़िंदगी जब तक होती है, उसका मोह कहाँ छूटता है? उसके कर्तव्य कहाँ छूटते हैं ? उसकी रोजाना की तकलीफ़ें कहाँ छूटती हैं ? वे तो चंदन वृक्ष पर सर्प सी लिपटी रहती हैं सर्प अपना काम करते हैं, चंदन अपनी महक फैलाने का ! दिव्य बार-बार अपने पिता जगन से पूछता कि वह पढ़ाई के साथ अगर संगीत की शिक्षा भी ले लेता तो उसका भविष्य सुधर जाता मुझे भी हमेशा ऐसा ही लगा