थैंक यू मां लक्ष्मी

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क़ाज़ी वाजिद की कहानी -प्रेमकथा मेरे बेटे ने अपने पापा को देखा ही नहीं था, पर कार्निस पर रखी उनकी तस्वीर को दिल में उतार लिया था। वह 4 वर्ष का हो गया था, स्कूल जाने लगा था। पेरेंट्स मीटिंग में पंकज मुझ से पापा के बारे में पूछता, मैं उसे झूठी दिलासा देती और करण की याद में खो जाती। ...पहले दिन जब मैने करण को देखा तो मै उसे देखती ही रह गई थी। ज़ारा की पार्टी मे किसी ने उसे मिलवाया था। 'इनसे मिलो यह करण हैं।' करण मेरे लिए मुकम्मल अजनबी था, मगर उस अजनबीपन में