गुलदस्ता - 6    

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      ३१ साँझ की बेला में रात की रानी का सुगंध आया आँगन के कोने में महकती उसकी छाया सुगंध से जुडी यादों का सिलसिला भी छलछलाता गया तू आकर चला गया था हमेशा के लिये कर दिया पराया उस दिन सुगंध में दोनो खो गये थे एक दुसरे से बिछडने का गम झेल रहे थे न खता थी तुम्हारी, ना मेरी फिर भी दुनिया के मेले में अब हम खोने चले थे हमे कभी याद करना, ऐसे शब्द हम दोनो ने भी नही कहे थे क्यों की याद करने के लिये कभी एक दुसरे को हम भूल