अन्धायुग और नारी - भाग(३९)

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रात को जब मैं खाना खाने पहुँचा तो मुझे उनसे बात करने का दिल नहीं कर रहा था,मेरे ज़ेहन में कई सवाल चल रहे थे,मेरा कश्मकश से भरा चेहरा देखकर चाचीज़ान समझ गईं कि मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा है,उस समय त्रिलोक बाबू मेरे साथ थे इसलिए उन्होंने ना कुछ पूछा और ना ही कुछ कहा,बस उन्होंने शान्त मन से हम दोनों को खाना खिलाया,उन्होंने उस दिन मूँग की दाल,आलू का भरता,लौकी की सब्जी और रोटियाँ बनाई थीं,वो हम दोनों को खाना परोस रहीं थीं और हम दोनों खाना खा रहे थे,मैं तो यूँ ही गैर मन से खाए