Andhayug aur Naari book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Andhayug aur Naari is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अन्धायुग और नारी - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है ,हमारे पौराणिक ग्रन्थों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है , हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ पर समस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है,नारी सृष्टि का आधार है, वह समाज को जीवनदान देती है,जिस प्रकार तार के बिना वीणा तथा धुरी के बिना रथ का पहिया बेकार है,ठीक उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन बेकार है,नारी पुरुष की संगिनी है वह पुरुष की सहभागिनी है,नारी के बिना मनुष्य के सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, नारी बेटी है, पत्नी है,मित्र है , प्रेयसी और माँ है,इस प्रकार अनेकों गुणों से नारी को विभूषित व सुसज्जित बताया जाता है, कहते हैं कि....
प्राचीन युग से ही हमारे समाज में नारी का विशेष स्थान रहा है ,हमारे पौराणिक ग्रन्थों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है , हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियाँ वहीं पर निवास करती हैं जहाँ ...Read Moreसमस्त नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है,नारी सृष्टि का आधार है, वह समाज को जीवनदान देती है,जिस प्रकार तार के बिना वीणा तथा धुरी के बिना रथ का पहिया बेकार है,ठीक उसी प्रकार नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन बेकार है,नारी पुरुष की संगिनी है वह पुरुष की सहभागिनी है,नारी के बिना मनुष्य
वो अपनी सखियों संग नृत्य करने मंदिर के मंच पर आई और मैं उसकी खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया,फिर उसने जब नृत्य करना प्रारम्भ किया तो वहाँ उसे देखने वाले जितने भी पुरूष थे वें अपनी पलकें ना ...Read Moreसकें,चूँकि उस जमाने में घर की स्त्रियाँ को इन सब समारोह में शामिल नहीं किया जाता था, स्त्रियों के लिए ऐसी जगहें ठीक नहीं मानी जातीं थीं,ऐसी जगह केवल पुरूषों की अय्याशियों का ही अड्डा होतीं थीं,क्योंकि पुरुष यहाँ आकर अपनी मनमानियांँ कर सकते थे और जब कोई रोकने टोकने वाला ना हो तो पुरूष स्वतन्त्र होकर अपने भावों का
अब तुलसीलता तो मेरे चाचा सुजानसिंह के साथ हवेली चली गई फिर मेरे चाचा सुजान सिंह को ये सुध भी ना रही कि उनका भतीजा उनके साथ आया था और अब वो कहाँ हैं,उन्होंने ना मुझे ढूढ़ने की कोशिश ...Read Moreना ही एक बार मेरा नाम लेकर पुकारा ,वो तो उस देवदासी तुलसीलता को देखकर बौराय गए थे और उसे अपने साथ हवेली ले जाकर ही माने,मैं यहाँ रातभर कुएँ की चारदीवारी की ओट में बैठा रहा और जब बैठे बैठे थक गया तो वहीं सो गया.... सुबह भोर हुई और चिड़ियाँ चहकने लगी तब मेरी आँख खुली और उसी
मैं नहाकर जैसे ही रसोई के भीतर पहुँचा तो मैने देखा कि चाची मिट्टी के चूल्हे पर गरमागरम रोटियाँ सेंक रहीं है,मुझे देखते ही उन्होंने लकड़ी का पटला डाला और उसके सामने पीतल की थाली रखते हुए बोली... "यहाँ ...Read Moreजा! मैं खाना परोसती हूँ", और उनके कहने पर मैं लकड़ी के पटले पर बैठ गया फिर उन्होंने मेरी थाली में खाना परोसना शुरु किया,कटोरी में दाल,आलू बैंगन की भुजिया,आम का अचार और गरमागरम घी में चुपड़ी रोटियाँ,मैने खाना खाना शुरू किया तो उन्होंने मुझसे पूछा.... "कल रात तेरे चाचा और तू कहाँ गए थे"? "देवदासियों का नृत्य देखने",मैने कहा...
दोनों की बातें सुनने के बाद मैं सोच रहा था कि मैं वहाँ रूकूँ या वहाँ से चला जाऊँ,फिर सोचा रूक जाता हूँ और तुलसीलता से ये पूछकर ही जाऊँगा कि मैं यहाँ क्यों ना आया करूँ और यही ...Read Moreमैं तुलसीलता की कोठरी के पास खड़ा होकर कोठरी के दरवाजे खुलने का इन्तजार करने लगा.... कुछ देर बाद कोठरी के किवाड़ खुले,लेकिन मुझे वहाँ देखकर उसने फौरन ही किवाड़ बंद कर लिए और भीतर से ही बोली.... "तू अभी तक यहाँ खड़ा है,गया क्यों नहीं" "मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी",मैंने कहा... "लेकिन मैं तुमसे कोई बात नहीं करना