प्रेम गली अति साँकरी - 132

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132=== =============== अगला दिन एक नई सुबह जैसा ही था | सूर्य देव अपनी छटा से संस्थान के प्रांगण से लेकर वहाँ के सभी लोगों के मन में ऊर्जा का स्रोत लेकर पधार चुके थे | हम बेशक उदास हों, छुट्टी कर लें, अपने बिस्तर में मुँह छिपाएँ, बहाने बनाकर पड़े रहें लेकिन संस्थान की दिनचर्या बरसों से जैसी थी, वैसा ही था दिन बस, चुप था, उदास था, उसके चेहरे पर कुछ जमने के निशान थे, कुछ आँसुओं के, कुछ बेचारगी के, कुछ नाराज़गी के! मुझे लगा मैं दीवारों में, अस्थिर चीज़ों में भी मानवीकरण कर रही हूँ |