मुरारी कहुं की शकील

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मुरारी कहूं कि शकील कंधे पर नीला झोला, पैरों में टूटी चप्पलें, एक काली कम्बल, लम्बी दाड़ी, मैले—कुचैले कपड़े और कान में टंगी कलम वाले बंदे को मैं ‘मुरारी' कहता हूं। वैसे तो उसका कोई नाम ही नहीं है। उसका मन किया, तो आप मोहन कहेंगे तब भी बोल जाएगा और रफीक कहेंगे तब भी। अगर नहीं मन किया तो महाराणा प्रताप कहने पर भी नहीं बोलेगा। लेकिन पहले दिन से मैं उसे मुरारी ही कहता हूं और वह बोल जाता है। उसे देश—विदेश से लेकर गली—मोहल्ले तक की सब खबरें याद है, हरदम अखबार ही पढ़ता रहता है। घर—बार