निरंजन नें जैसे तैसे ट्राफिक के बीच से फलांगते हुए मेन रोड पार की और उस तरफ पहुँच कर फुर्ती से एक बाई लेन में मुड़ गया. उसके कदम तेज़ी से उठ रहे थे. कंधे पर पडा बैग बार बार फिसल कर नीचे झूल आ रहा था, लेकिन निरंजन इस से परेशान नहीं लग रहा था. आगे जा कर वह बाई लेन एक पतली पक्की सड़क से मिल गई थी जो रेलवे लाइन के साथ साथ चल रही थी. सड़क पर कोई ख़ास ट्रैफिक नहीं था. दाहिनी तरफ रेलवे की रिहायशी कालोनी थी इसीलिए बीच बीच में गुमटीनुमा दुकानों ने अपनी जगह बना ली थी.