उदास इंद्रधनुष

(7)
  • 21k
  • 2
  • 6.4k

उदास इंद्रधनुष ************ रात के दस बजने वाले थे। कोमल सोने की तैयारी में लगी थी । सिरहाने पानी की बोतल रख, कमरे की बत्ती ऑफ़ करने ही वाली थीकि मोबाइल बज उठा ।तेज़ गाने वाला कॉलर ट्यून कमरे की शान्ति भंग कर रहा था।ओह! ये मोबाइल भी ना…. कोमल के माथे पर बल पड़ गए, हल्के से बुदबुदा कर उसने कहा- अब इस समय किसका कॉल हो सकता है ? सारे ज़रूरी कॉल तो आचुके हैं।पटना से माँ ने शाम को ही कॉल किया था । अमित नासिक में ऑफ़िस के काम से ज़रूरी मीटिंग में गए हैं और इस समय तोउनका कॉल आने से रहा । शोभना बिटिया से बात हो चुकी है।तो अब कौन ? कहीं कोई रांग नम्बर तो नहीं ? सोचते हुए कोमल ने साइट टेबल पर रखे चश्मे को उठाकर पहना और नाक से ऊपर सरकाते हुए पलंग के किनारे रखे मोबाइल कोअपनी ओर खींचा। चार्जर से मुक्त होकर मोबाइल अब भी लगातार घनघना रहा था। मोबाइल को सामने लाकर देखा तो स्क्रीन पर एक नाम फ़्लैश हो रहा था —— प्रभाकर चाचा ओह ! इस समय चाचा जी का कॉल?सब ख़ैरियत तो है ! मन ही मन सोचते हुए उसने कॉल रिसीव तो किया पर उधर से कोई आवाज़ नहीं आयी। हलो ,हलो करती कोमल तेज़ी से कमरे से निकलकर बॉलकनी की ओर लपकी ताकि बात हो सके पर, नेटवर्क के व्यवधान के कारणफ़ोन डिसक्नेक्ट् हो गया। कोमल ने फिर से फ़ोन लगाया तो इस बार चाचाजी की आवाज साफ़ सुनाई दी। हेलो, चाचा जी कैसे है ?कोमल ने पूछा ।ठीक हूँ कोमल बेटा, तुम लोग अच्छे तो हो ? प्रभाकर चाचा की आवाज़ थोड़ी भारी थी । और कहिए चाचा जी,कैसा चल रहा है ? इन दिनों तो बहुत ठण्ड होगी मुज़फ़्फ़रपुर में ?उधर से सिर्फ़ हाँ-हूँ की आवाज़ सुनकर कोमल ने अपनी बात जारी रखते हुए पूछा—चाचा जी , आदित्य और बहू तो वहीं मुज़फ़्फ़रपुर में ही होंगे ? हाँ बेटा , यहाँ सब ठीक है।आदि और बहु भी सानंद है ।चाचा जी ने गला खँखारते हुए कहा । यहाँ मुज़फ़्फ़रपुर में तो नवंबर के आते ही हल्की ठंड शुरू हो ही जाती है और बेटा , बुढ़ापे में ठण्ड तो कुछ ज़्यादा ही सताती है । चाचाजी ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा —बेटा कोमल, मैंने तुम्हें फ़ोन इसलिए किया था कि दरअसल, अचानक मुंबई में मेरा कुछ काम आ पड़ा है सो मैं कल मुंबई पहुँच रहा हूँ ।अब आ ही रहा हूँ तो सोचा तुम लोगों से मिल लूँ ।अमित तो हैं न वहाँ ? और बिटिया शोभना , वो कहाँ है इन दिनों ? आप ज़रूर आइए चाचा जी । हालाँकि, अमित तो ऑफिशियल टूर पर नासिक गए हैं पर कल तक निश्चय ही वापस आ जायेंगे। शोभना तो यू एस में अपनी पढ़ाई कर रही है, चाचा जी । ओह ! बहुत अच्छी बात है..फिर ज़रा रुक कर बोले की बेटा कोमल दरअसल बात ये है कि मेरा एक दोस्त पुणे के ओल्ड एज होम में है और मुझे उससे मिलने कीबहुत इच्छा है । जी, चाचाजी।कोमल के लिए प्रभाकर चाचा का मन पढ़ना बहुत मुश्किल न था , हालाँकि उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह संयत कर रखा था फिर भी उनकीपीड़ा वायु में तरंगित होकर उसके कानों को झनझना रही थीं।—- क्रमशः

Full Novel

1

उदास इंद्रधनुष - 1

उदास इंद्रधनुष ************ रात के दस बजने वाले थे। कोमल सोने की तैयारी में लगी थी । सिरहाने पानी की बोतल रख, कमरे की बत्ती ऑफ़ करने ही वाली थीकि मोबाइल बज उठा ।तेज़ गाने वाला कॉलर ट्यून कमरे की शान्ति भंग कर रहा था।ओह! ये मोबाइल भी ना…. कोमल के माथे पर बल पड़ गए, हल्के से बुदबुदा कर उसने कहा- अब इस समय किसका कॉल हो सकता है ? सारे ज़रूरी कॉल तो आचुके हैं।पटना से माँ ने शाम को ही कॉल किया था । अमित नासिक में ऑफ़िस के काम से ज़रूरी मीटिंग में गए हैं और इस समय तोउनका कॉल आने से रहा । शोभना बिटिया से बात हो चुकी है।तो अब कौन ? कहीं कोई रांग नम्बर तो नहीं ? सोचते हुए कोमल ने साइट टेबल पर रखे चश्मे को उठाकर पहना और नाक से ऊपर सरकाते हुए पलंग के किनारे रखे मोबाइल कोअपनी ओर खींचा। चार्जर से मुक्त होकर मोबाइल अब भी लगातार घनघना रहा था। मोबाइल को सामने लाकर देखा तो स्क्रीन पर एक नाम फ़्लैश हो रहा था —— प्रभाकर चाचा ओह ! इस समय चाचा जी का कॉल?सब ख़ैरियत तो है ! मन ही मन सोचते हुए उसने कॉल रिसीव तो किया पर उधर से कोई आवाज़ नहीं आयी। हलो ,हलो करती कोमल तेज़ी से कमरे से निकलकर बॉलकनी की ओर लपकी ताकि बात हो सके पर, नेटवर्क के व्यवधान के कारणफ़ोन डिसक्नेक्ट् हो गया। कोमल ने फिर से फ़ोन लगाया तो इस बार चाचाजी की आवाज साफ़ सुनाई दी। हेलो, चाचा जी कैसे है ?कोमल ने पूछा ।ठीक हूँ कोमल बेटा, तुम लोग अच्छे तो हो ? प्रभाकर चाचा की आवाज़ थोड़ी भारी थी । और कहिए चाचा जी,कैसा चल रहा है ? इन दिनों तो बहुत ठण्ड होगी मुज़फ़्फ़रपुर में ?उधर से सिर्फ़ हाँ-हूँ की आवाज़ सुनकर कोमल ने अपनी बात जारी रखते हुए पूछा—चाचा जी , आदित्य और बहू तो वहीं मुज़फ़्फ़रपुर में ही होंगे ? हाँ बेटा , यहाँ सब ठीक है।आदि और बहु भी सानंद है ।चाचा जी ने गला खँखारते हुए कहा । यहाँ मुज़फ़्फ़रपुर में तो नवंबर के आते ही हल्की ठंड शुरू हो ही जाती है और बेटा , बुढ़ापे में ठण्ड तो कुछ ज़्यादा ही सताती है । चाचाजी ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा —बेटा कोमल, मैंने तुम्हें फ़ोन इसलिए किया था कि दरअसल, अचानक मुंबई में मेरा कुछ काम आ पड़ा है सो मैं कल मुंबई पहुँच रहा हूँ ।अब आ ही रहा हूँ तो सोचा तुम लोगों से मिल लूँ ।अमित तो हैं न वहाँ ? और बिटिया शोभना , वो कहाँ है इन दिनों ? आप ज़रूर आइए चाचा जी । हालाँकि, अमित तो ऑफिशियल टूर पर नासिक गए हैं पर कल तक निश्चय ही वापस आ जायेंगे। शोभना तो यू एस में अपनी पढ़ाई कर रही है, चाचा जी । ओह ! बहुत अच्छी बात है..फिर ज़रा रुक कर बोले की बेटा कोमल दरअसल बात ये है कि मेरा एक दोस्त पुणे के ओल्ड एज होम में है और मुझे उससे मिलने कीबहुत इच्छा है । जी, चाचाजी।कोमल के लिए प्रभाकर चाचा का मन पढ़ना बहुत मुश्किल न था , हालाँकि उन्होंने ख़ुद को पूरी तरह संयत कर रखा था फिर भी उनकीपीड़ा वायु में तरंगित होकर उसके कानों को झनझना रही थीं।—- क्रमशः ...Read More

2

उदास इंद्रधनुष - 2

फ़ोन डिसकनेक्ट हो चुका था।कोमल चुपचाप अपने कमरे में लौट आई और बिस्तर पर निढाल लेट गई । बत्ती करने का उसका मनन हुआ, रात गहराने लगी थी पर उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। सीलिंग फ़ैन के चलने की आवाज़ कमरे के खालीपन को भर रही थीऔर कोमल की यादों के फाहों को अपनी हवा में उड़ा उड़ाकर पूरे कमरे में बिखेर रही थी। प्रभाकर चाचा का हँसमुख चेहरा बार -बार उभरकर कर उसकी आँखों के सामने आ रहा था। अभी हाल में ही माँ ने फ़ोन पर उसे बतायाथा कि प्रभाकर बाबू आजकल बेहद परेशान और उदास रहते हैं। कोमल याद करने लगी तीस-पैंतीस साल पहले की बातों को, जब मौज़ मस्ती के दिन हुआ करते थे , उन दिनों प्रभाकर चाचा का परिवारऔर हमारा परिवार आस-पास एक मकान छोड़कर रहता था । उन दिनों पापा के दोस्तों में सबसे क़रीब थे प्रभाकर चाचा । माँ बताती हैं कि कॉलेज में साथ-साथ पढ़ने के बाद पापा राँची यूनिवर्सिटी सेएम एस सी करने चले गए थे और चाचा जी पटना यूनिवर्सिटी से एम एड करने के बाद भागलपुर जिला स्कूल में अंग्रेज़ी के अध्यापक केपद पर नियुक्त हुए। इत्तफ़ाक से पापा भी अपनी पढ़ाई पूरी कर उसी विद्यालय में बायोलॉजी के अध्यापक बने ।नौकरी करने के बाद दोनों दोस्तों ने शादीकी। चाचा जी ने पहले शादी की फिर पापा ने ।चाची और माँ दोनों क़रीब-क़रीब एक ही उम्र की थीं और दोनों की आपस में ख़ूब अच्छीबनती। आदित्य, उनका इकलौता बेटा था जिसे प्यार से आदि कहते थे, और इधर माँ पापा के साथ हम दोनों भाई बहन। आदि हम दोनों भाई-बहनों का बालसखा भी था। हम साथ-साथ खेलते और पढ़ते भी थे ।चाची बड़ी ख़ुश मिज़ाज और गुणी थीं ।पर, उनकी सबसे बड़ी कमी थी कि वे आदित्य को इतना लाड़ करतीं कि उनका सारा दिन उसी केपीछे बीतता ।उनके इसी लाड़ प्यार और आसक्ति ने आदि को थोड़ा ज़िद्दी और बिगड़ैल भी बना दिया था। चाचा जी ने उन्हीं की ज़िद पर आदि का एडमिशन अंग्रेज़ी स्कूल में कराया था जबकि कॉलोनी के ज़्यादातर बच्चे ज़िला स्कूल में ही पढ़तेथे। आदि के मन में इस बात की भी ठसक थी कि वह अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ता है , यही कारण था कि वह सभी बच्चों पर अपना ख़ूबरूआब झाड़ता जबकि चाचाजी उसे इस बात के लिए अक्सर टोका करते तब वह उनसे नाराज़ हो कर हमारे घर चला आता ।तब हमघंटों कैरम खेला करते या फिर गप्पें हाँका करते । माँ और चाची की दोपहर की बैठक कभी ख़ारिज नहीं होती । जाड़े के दिनों में दोनों बरामदे में बैठकर के धूप सेंका करतीं औरसाथ-साथ स्वेटर भी बुना करतीं, वहीं दो-चार औरतें और आ जातीं और स्वेटर के पैटर्न सीखतीं और इसी बीच हो जातीं दुनिया जहान कीबातें।चाची के बनाए हुए स्वेटर में ढेर सारे नए डिज़ाइन के होते हैं और सामने बेंत की छोटी सी डोलची में ढेर सारे रंग बिरंगे ऊन के गोलेहोते हैं और उसमें रखी होतीं अलग अलग नंबर की सलाईयाँ । जाड़े के हर तीन दिनों में साइकिल पर रंग बिरंगी इन्द्रधनुषी ऊन के गोले और लच्छियों को लादकर ऊन वाला आता तो सबसे पहलेचाची के बरामदे में रुकता और उसके बाद मोहल्ले के दूसरे घरो में जाया करता। चाची माँ को भी वहीं बुला लेतीं और दोनों सहेलियाँसलाह कर कई लच्छियाँ ख़रीद लेतीं।फिर ऊन की लच्छियों को नमक पानी में डालकर रंग पक्का किया जाता , उसके बाद उन्हें धो कर अलगनी पर डाला जाता । हम सब जब स्कूल से लौटते तो अलगनी पर टंगे इन्द्रधनुष को देखकर ख़ूब ख़ुश होते, कभी कभी तो माँ और चाची जी के साथ बैठकरअपने दोनों घुटनों में लच्छियों को फँसाकर गोले बनाते , जाड़े भर ये अभियान चलता । उस दिन भी माँ और चाची जी अपने गप्प में मशग़ूल थीं साथ ही स्वेटर बुनने में।मैंने भीतर जाकर देखा तो डाइनिंग टेबल पर दाल चावलके साथ सिर्फ़ भिंडी की सब्ज़ी पड़ी थी ये देखते ही मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया पैर पटक हुए मैं बाहर बरामदे में आ गईऔर कुर्सी पर मुँह फुलाकर बैठ गई । तो मुझे देखते ही माँ समझ गयीं पर फिर भी चुपचाप अपना स्वेटर बुनती रहीं क्योंकि उनका कहनाथा कि घर में नख़रे नहीं चलेंगे,जो बना है वही खाना है ।पर, चाची से रहा नहीं गया तो उन्होंने पूछ ही लिया बेटा कोमल खाना खाया क्योंनहीं? पर, मैं तो मुँह फुलाए बैठी रही ।मुझे चुप देखकर माँ ने ही कहा कि इसे भिंडी की सब्ज़ी पसंद नहीं, इसलिए नाराज़ है। ये सुनते हीचाची फ़ौरन अपने घर गयीं और डोंगे में बेसन की कढ़ी लाकर टेबल पर रख दिया और जाते जाते कह गईं -अरे अब तो मुस्कुरा दे कोमलबेटा , मुझे मालूम है तुम्हें कढ़ी चावल बहुत पसंद है । जा, जाकर खाना खा ले और फिर आ जाना मेरे पास, स्वेटर का नाप लेना हैतुम्हारा। दूसरे दिन ही मकर संक्रान्ति का दिन था । सारी तैयारियां हो चुकी थीं, माँ ने क़तरनी चूड़ा, तिलकुट, तिलवा, तिल की रबड़ी , गुड़, गायके दूध का दही तक , सारा इंतज़ाम कर लिया था । भैया के साथ मैं भी लगी थी पतंगों को जमा करने, उन पर धागा बाँधने और लटई में धागा लपेटने में, मोहल्ले के सारे बच्चे व्यस्त थेअपनी-अपनी पतंगों के साथ। सुबह-सुबह ही पूजा हो गयी , और माँ ने जैसे ही पूजा की घंटी बजायी कि सभी चेत गए कि नहाने का समय हो गया है। झटपट नहा धोकर हम सब तैयार हो गए और और रसोई में दान के लिए रखे गए तिल और बाक़ी सामग्रियों को छू लिया और जीमने लगे दही-चूड़ा औरआलू मटर की तीखी रसेदार सब्ज़ी, जिसकी गमक दूर दूर तक फैल रही थी।भूने मसालों की सौंधी ख़ुशबू और पूजा घर में जलतेअगरूधूम से पूरा घर सुवासित हो रहा था,धुले-धुले घर-आँगन मन को भा रहे थे । ...Read More

3

उदास इंद्रधनुष - 3

खा- पीकर जब तक हम लोग तो मैदान में गुड्डी (पतंग) उड़ाने पहुँचे तब तक मोहल्ले के कई बच्चे पतंगों को आसमान में लहरा रहे थे। जनवरी की हल्की गुनगुनी धूप ,देह को गरमी और साफ़ नीले आसमान में कलाबाज़ियाँ खाती रंग बिरंगी पतंगें आँखों को ठंडक पहुँचा रही थीं। अब तक आदित्य भी पहुँच गया था मैदान में और भैया के साथ मिलकर पतंग उड़ाने की तैयारी करने लगा था ।मुझे उन लोगों ने लटई पकड़ने का काम सौंपा और कभी-कभी पतंग को ढील देने का।देखते ही देखते है हमारी पतंग दूर आसमान से बातें करने लगी। मेरी ...Read More

4

उदास इंद्रधनुष - 4

भीतर घुसते ही ब्रीफ़केस को सोफ़े पर रखा और बोले बस फ़्रेश होकर आता हूँ बहुत थक गया हूँ नींद भी पूरी नहीं हुई है,इसीलिए मैं सोच रहा हूँ कि थोड़ा सो लूँ । अरे खाना तो खा लो, बोलते हुए कोमल किचन की ओर मुड़ी नहीं कोमल मैं वाक़ई बहुत थका हूँ मुझे नींद आ जाए तो मुझे उठाना मत क्योंकि शाम को फिर एक ज़रूरी मीटिंग है। रास्ते में रूक कर मैंने थोड़ा बहुत खा पी भी लियाा है इसीलिए भूख नहीं है । अरे हाँ, मैं तो तुम्हें बताना भूल ही गयी शाम को चाचा जी आएंगे और तुमसे ...Read More