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उदास इंद्रधनुष - 4

भीतर घुसते ही ब्रीफ़केस को सोफ़े पर रखा और बोले बस फ़्रेश होकर आता हूँ बहुत थक गया हूँ । नींद भी पूरी नहीं हुई है,इसीलिए मैं सोच रहा हूँ कि थोड़ा सो लूँ ।
अरे खाना तो खा लो, बोलते हुए कोमल किचन की ओर मुड़ी
नहीं कोमल मैं वाक़ई बहुत थका हूँ मुझे नींद आ जाए तो मुझे उठाना मत क्योंकि शाम को फिर एक ज़रूरी मीटिंग है। रास्ते में रूक कर मैंने थोड़ा बहुत खा पी भी लियाा है इसीलिए भूख नहीं है ।
अरे हाँ, मैं तो तुम्हें बताना भूल ही गयी शाम को चाचा जी आएंगे और तुमसे मिलना भी चाहते हैं।
हम्म् ! प्रभाकर चाचा जी ना ! अच्छा , पर शाम को तो मेरी ऑफिशियल मीटिंग है और आते-आते शायद मुझे देर हो जाये पर कोई बात नहीं कल तो मैं घर पर ही हूँ, तो मिल ही लूँगा ।
ओके , कह कर कोमल अपना काम निपटाने किचन की ओर चली गई।
शाम को एयरपोर्ट पहुँचते जैसे ही चाचा जी का कॉल आया तो कोमल इत्मीनान हो गई और इंतज़ार करने लगी ।एयरपोर्ट से बोरीवली तक पहुँचते पहुँचते चाचा जी को क़रीब सात बज गए।
कितना बदल गए थे चाचा जी , उनका हँसता हुआ चेहरा कैसा उदास और स्याह पड़ गया था, फिर भी मुस्कुरा रहे थे।
पैर छूते ही उन्होंने सिर पर हाथ रख कर ख़ुश रहो बेटा जब कहा तो मन भर आया।
झट से पानी का गिलास उनकी ओर बढ़ाते हुए कोमल ने पूछा – और बताइए चाचा जी ! कोई परेशानी तो नहीं हुई सफ़र में ?
नज़रें नीची रखते हुए उन्होंने बड़ी संजीदगी से कहा- कोमल बेटा अब कोई परेशानी मुझे परेशान नहीं करती , फिर बात बदलते हुए कहने लगे बड़ा आसान रास्ता है कैब वाले ने सीधे तुम्हारे घर तक पहुँचा दिया।
चाचा जी फ़्रेश होकर जब तक टेबल पर आए तब तक खाना लग चुका था।
डायनिंग टेबल के पास की कुर्सी खींचते हुए उन्होंने पूछा अमित तो आज ही आने वाले थे ना ?
जी चाचाजी, अमित तो दोपहर में ही आ गए ,पर अभी ज़रूरी मीटिंग के लिए गए हैं शायद रात को देर हो जाए पर कोई बात नहीं कल तो आप घर पर हैं न ! तो कल ही मिल लेंगे ।
देखता हूँ बेटा, यदि संभव हो तो सुबह पाँच बजे वाली बस से पुणे जाना चाहूंगा ।
खाना खाने के बाद सोफ़े पर बैठते हुए प्रभाकर चाचा बोले – बेटा , सोचता हूँ कि बाक़ी समय अपने ओल्ड एज होम वाले दोस्त के साथ ही बिताऊँ ।
पर चाचा जी आदि तो आपकी देखभाल के लिए है न !
उत्तर में चाचा का झुका सिर देख कर उसे मामला समझते देर ना लगी ।
उत्तेजित होकर कोमल ने पूछा —
ऐसा कैसे कर सकता है वह ?
बहुत कुरेदने पर चाचा जी जैसे अपने बीते पलों में गोते खाने लगे बोले — कोमल बेटा अब तो बाप- बेटे के बीच अबोला सा रहने लगा है।बहु- बेटे का अजनबी रूप देख कर आहत सा हो गया हूँ। जब बेटा ही ऐसी बेरुख़ी कर रहा हो तो बहू को क्या दोष दूँ ?
सोचा था चुपचाप सह लूँ किसी से ना कहूँ, पर हद तो तब हो गई जब एक दिन आदि ने कहा - कि पापा आप कुछ दिनों के लिए कहीं और क्यों नहीं चले जाते ? हम दोनों कुछ दिनों के लिए बाहर घूमने जा रहे हैं। विदेश घूम-घाम कर आते-आते दो तीन महीने लग ही जाएंगे ।
पापा आप तो इन दिनों बहुत भूलने लगे हैं, ऐसे में, आपके भरोसे पर घर छोड़कर जाना मुनासिब नहीं होगा तो क्यों न आप भी कुछ दिनों के लिए बाहर घूम आएँ ।
आदि की बातें मुझे भीतर ही भीतर तोड़ने लगी थीं, अक्सर वह कुछ ऐसी बातें कह जाता जिससे मुझे चोट पहुँचती और उससे परायेपन की बू आती।
बात बात में टोका-टोकी को नज़रअंदाज़ करते हुए एक दिन दोपहर को, मैंने अपनी छड़ी ली और चश्मा पहन कर घर से निकल गया कुछ देर सड़क पर चहलक़दमी करता रहा फिर सोचा शायद कल्लू के चाय की टपरी ख़ाली हो तो वहीं बैठ कर सुस्ता लूँ । यही सोच कर मोड़ की तरफ़ निकल गया पर कल्लू भी दोपहर के दो घंटे दुकान बंद रखता है, सो वहाँ सन्नाटा था ।
वापस मुड़कर, घर की ओर रुख़ किया मैंने, धीरे धीरे चला जा रहा था तभी पीछे से किसी के पुकारने की आवाज़ आयी, पलटकर देखा तो पास के मकान से गोवर्धन बाबू, अपने बरामदे से आवाज़ दे रहे थे – अरे प्रभाकर बाबू आइए, आइए ….. और बताइए कैसा चल रहा है सब ?
उनके बुलाने पर मैंने उनका गेट खोला और वहीं बरामदे में रखी बेंत की कुर्सी पर जा कर बैठ गया ।
आज कल तो आप सुबह के वॉक पर भी नहीं दीखते – गोवर्धन बाबू ने मुझसे पूछा।
अरे नहीं, गोवर्धन बाबू सर्द सुबह की ये मुई ठंड में घुटने जवाब दे देते हैं।
जोड़ों के दर्द से परेशान रहता हूँ, अब तो ठंड कम होने पर ही वॉक किया जाएगा – मैंने कहा ।
तभी उनकी पत्नी भी आ गईं, और आते ही उन्होंने अपनी बाई से चाय बनाने को कहा । घर परिवार के बातें बतियाते-बतियाते कब एक- डेढ़ घंटा गुज़र गया मालूम ही नहीं हुआ, चाय की आख़िरी सिप लेकर कप प्लेट को टेबुल पर रख मैं उठ खड़ा हुआ । बड़े दिनों के बाद बात-चीत करने से जी हल्का हुआ । हाथ जोड़कर मैंने इजाज़त माँगी और अपने घर की ओर चल दिया ।
घर पहुँचते ही , आदि की कार पोर्टिको में खड़ी देखकर मेरी समझ में आ गया है कि आदि घर पर ही है ।बैठक में पहुंचकर सोफ़े पर बैठा ही था तभी आदि तमतमाता हुआ कमरे में घुसा और पूछने लगा – कहाँ रहते हैं पापा आप आज कल ? घर पर टिकते ही नहीं ।
मैं अवाक् , उसका मुँह ताकता रह गया ।
अब गली मोहल्ले वालों के घर बैठक करने लगे हैं ? थोड़ी हमारी इज़्ज़त का भी तो ख्याल किया कीजिए । आदि बिफर रहा था ।
मैंने पूछा – ऐसी कौन सी बात हो गई ?
बात कैसे नहीं है आप अगर हमारी इज़्ज़त का ख्याल करते तो छोटे लोगों के घर जाकर उनके बरामदे में बैठ कर चाय ना पीते। आदि ने कहा ।
ओह तो ये बात है ! पर मेरे वहाँ बैठने से तुम्हारी इज़्ज़त कैसे कम हो गयी ? मैंने भी उससे ज़ोर से पूछा
मुझे कोई बहस नहीं करनी है आपसे, पापा आपको हमारे साथ रहना अच्छा नहीं लगता तो कोई और इंतज़ाम कर लीजिए आदित्य ढिठाई से बोलते हुए कमरे से बाहर निकल गया ।
बस… इसके बाद मैंने सोचा अब बहुत हो गया और मन कड़ा करके ऊपर से अपना सूटकेस उतारा उसमें अपने कुछ ज़रूरी कपड़े रखे , तुम्हारी चाची की तस्वीर दीवार से उतारी ,अपने चेक बुक, अपने पासबुक, वो कुछ किताबें ,जूते और ज़रूरी काग़ज़ात सब सूटकेस में डाल कर अपना सामान पैक किया और
बिना किसी से कुछ कहे घर से निकल पड़ा ।
स्टेशन पहुंचकर मैंने निर्णय लिया कि कलकत्ता अपने चचेरे भाई के पास जाकर कुछ दिन तक रुकूँ ,फ़ोन से उसे इत्तला कर दिया कि मैं आ रहा हूँ, और मैंने किसी को कुछ बताया नहीं ।
अपने दोस्तों को भी क्या बताता, उनकी ख़ुद की परेशानियाँ हैं ।
इन सब बातों से बचने के लिए मुझे एक उपाय सूझा कि क्यों न मैं एक ओल्ड एज होम में अपनी सेवा दूँ , जहाँ मुझे अपनी उम्र के साथी भी मिल जाएँगे और उनकी सेवा कर मैं अपना दुख भी कम कर सकूंगा ।
चाचा जी अपनी बातें ख़त्म कर चुपचाप कमरे का मुआयना करने लगे ।
कोमल को लगा जैसे अचानक उसे किसी ने गहरे अंधेरे कुएँ धकेल दिया हो। वह सर्द, ख़ामोश थी , बर्फ़ की सिल्ली सी जमी, एकटक चाचा जी को देख रही थी …. नज़रें झुकाये याद करने लगी छत से गिरे उस आदि को जिसके स्वस्थ होने की दुआएँ करते चाचा- चाची जी कई-कई रात सो नहीं पाए थे , जिसकी पढ़ाई और बिज़नेस के लिए चाचा जी ने अपने रिटायरमेंट की सारी कमाई झोंक दी थी …. जिसके लिए आज भी चाचा जी के मन में कोई कड़वाहट नहीं थी ….. जो चाचा जी के जीवन का एकमात्र सहारा था ….. उसी ने सारी आत्मीयता भस्म कर दी थी …. कितना निष्ठुर हो गया है आदि !
सुबह हो गयी थी , चाचा जी नहा- धोकर तैयार हो कर बाहर निकले तो एकदम फ्रेश लग रहे थे , अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए ।चाय पी कर जाने के लिए सूटकेस उठाने ही वाले थे कि अमित बेड रूम से तैयार होकर बाहर निकले और चाचाजी के पैरों को छूने के लिए झुकते हुए बोले- इतनी जल्दी निर्णय न लें चाचा जी । कोमल ने मुझे रात में सारी बातें बताई , हमलोग अभी हैं न … और आपको अपने मित्र से मिलने जाना है तो मैं भी साथ चलता हूँ आपके ।
बाहर कैब इंतज़ार कर रहा था , चाचा जी के साथ उनका सूटकेस उठा कर अमित बाहर निकल गए ।
अमित की बातें सुनकर कोमल की आँखों लबालब भर आईं , बिना कहे अमित ने उसका मन जान लिया था ।

आँसू छिपाती हुई कोमल ज़रा दरवाज़े के ओट हुई ही थी की कैब के स्टार्ट होने की आवाज़ आई ।तभी उसने अपनी आँखों के कोर को पोंछते हुए झट से पलट कर देखा तो कैब जा चुकी थी ।

——- अमृता सिन्हा