प्रेम और वासना

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प्रेम की सबसे बड़ी विशेषता, अगर कोई है, तो यह कि यह भावनाओं के सभी रंगों से परिपूर्ण रहकर भी सदा सफेद और स्वच्छ सत्य के अंदर ही अपना परमोत्कृष्ट ढूंढना है, पर ऐसा तत्व भक्ति स्वरुप के अलावा कहींऔर मिलना असंभव ही लगता है। प्रायः, यह ही दृष्टिगोचर होता है, कि मानव अपनी गलत आदतों की दास्तवता से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहता है, पर अति लगाव या असंयत वासना के कारण ऐसा नहीं कर पाता, इसे मन की कमजोरी भी कह सकते है। प्रेम का उपयोग हम संसार में तीन स्वरुपों के अंतर्गत दर्शाते हैं। 1. शारीरक प्रेम 2. मन का

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प्रेम और वासना - भाग 1

प्रेम की सबसे बड़ी विशेषता, अगर कोई है, तो यह कि यह भावनाओं के सभी रंगों से परिपूर्ण रहकर सदा सफेद और स्वच्छ सत्य के अंदर ही अपना परमोत्कृष्ट ढूंढना है, पर ऐसा तत्व भक्ति स्वरुप के अलावा कहींऔर मिलना असंभव ही लगता है। प्रायः, यह ही दृष्टिगोचर होता है, कि मानव अपनी गलत आदतों की दास्तवता से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहता है, पर अति लगाव या असंयत वासना के कारण ऐसा नहीं कर पाता, इसे मन की कमजोरी भी कह सकते है। प्रेम का उपयोग हम संसार में तीन स्वरुपों के अंतर्गत दर्शाते हैं। 1. शारीरक प्रेम2. मन का ...Read More

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प्रेम और वासना - भाग 2

वासना" शब्द कि विडम्बना यही है, एक जायज क्रिया के साथ नाजायज की तरह व्यवहार किया जाता है। अंदर सबका इससे आंतरिक रिश्ता होते हुए भी, इस के प्रति अवहेलना और तिरस्कार पूर्ण नजरिया रखते है। आखिर, वासना से इतनी घृणा क्यों ? क्या वासना प्रेम की एक जरूरत नहीं, क्या वासना आकांक्षाओं का सुंदर स्वरुप नहीं है ? ऐसे और भी सवाल है, जिनके उत्तर हम यहां तलाशने की कोशिश करते है, पर उससे पहले हमें वासना का सही परिचय प्राप्त करना होगा। वात्सायन ऋषि थे, उन्होंने वासना के एक स्वरूप कामवासना के बारे में बहुत कुछ ...Read More

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प्रेम और वासना - भाग 3

प्रेम और वासना इंसानी जीवन के वो दो पहलू है, जिनके बिना जिंदगी को लय मिलना मुश्किल होता है। को अगर वासना से अलग कर दिया जाय, तो प्रेम की परिभाषा को समझना, जरा मुश्किल ही होता है।जहां शुद्ध प्रेम का केंद्र बिंदु आत्मा को ही माना गया, वहां वासना युक्त प्रेम का केंद्र बिंदु, दिमाग और ह्रदय बताया जाता है। आत्मिक प्रेम निस्वार्थ और निराकार बताया गया, वहां वासना को कई आकार से पहचाना जा सकता है।शुरुआती जिंदगी में दोनों का ही समावेश होता हैं। कुछ विशिष्ट आदमी ही वासना की भूमिका को जीवन से अलग कर प ...Read More

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प्रेम और वासना - भाग 4

दोस्तों, हमने प्रेम के रिश्तों के सन्दर्भ में कुछ पारिवारिक-रिश्तों की चर्चा की, परन्तु कुछ रिश्तें जो आज के में काफी उभर कर, पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर भारी पड़ रहे है, उनमे कुछ को समझना बहुत जरुरी है। दोस्ती और प्रेयसी का सम्बन्ध आज के आधुनिक युग में काफी महत्वपूर्ण बनते जा रहे है। दोस्ती का रिश्ता आपसी सहमति से बनने के कारण जीवन को काफी प्रभावित करता है । कुछ इस तरह के रिश्तें जब दैहिक सीमा रेखा को पार करने लगते है, तो काफी संवेदनशील होने का डर रहता है। कहना न होगा, इनके लिये संयम, धैर्य ...Read More

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प्रेम और वासना - भाग 5 - प्रेम के रंग हजार, रिश्तों में

प्रेम" शब्द काफी मार्मक और भावुकता भरा होता है। नये, नये रुप में प्रयोग होने वाला शब्द इंसानी अहसास इंद्रधनुषी रंगों से सजाता है,। प्रेम, प्यार, लव, जैसे शब्दों के बिना कोई भी साहित्य अधूरा ही रहता है और हमारी जिंदगी भी इनके बिना अकेली और वीरानी सी लगती है। आखिर प्रेम या प्यार में ऐसा क्या जादू है ? हर मानवीय अहसास को नाम की जरुरत होती है, हाँ, भावुकता एक अलग सा अहसास है, जो प्रेम को कमजोर दर्शाता, जिसमें कमजोरी का आभास ज्यादा होता है। स्वस्थ प्रेम के अहसास में दृढ़ता, समपर्ण, सत्य, भक्ति, त्याग जैसे कई ...Read More