बंद खिड़कियाँ

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“बंद खिड़कियां" सदियों से चले आ रहे पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों के अहं और दंभ के कारण स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार और अत्याचार तथा स्त्री के विरोध की कहानी है । यह कहानी एक नवयुवती, पोती तथा उसकी वृद्ध दादी के बीच समानान्तर रूप से चलती है । पति के दुर्व्यवहार का जो दंश पचास वर्ष पूर्व अनपढ दादी ने झेला, वही अपमान और तिरस्कार आज उसकी उच्च शिक्षित पोती भी झेल रही है । फर्क केवल इतना है, जहां दादी के पास इसको झेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था वहीं पोती को माता-पिता की नाराजगी के बावजूद उस घर में आश्रय मिला है ।लेकिन दोनो ही परिस्थितियों में औरत, यानि दादी और पोती ने अत्याचार के विरुद्ध बगावत कर दी । दादी ने पति के घर में रहते हुए उसके अनैतिक कार्यों का विरोध किया, वहीं पोती अपने पति का घर इसी कारण छोड़ आई । चूंकि दादी पचास वर्ष पूर्व इस दौर से गुजर चुकी है इसलिये वह पोती की वेदना को समझती है, और उसे नैतिक रूप से संबल दे पति के साथ संबंध विच्छेद के फैसले पर कायम रहने की हिम्मत बंधाती है ।वह नहीं चाहती कि जो अपमान और तिरस्कार उसने झेला वह उसकी पोती को झेलना पड़ें।

Full Novel

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बंद खिड़कियाँ - 1

मूल तमिल लेखिका: वासंती अनुवादक: एस. भाग्यम शर्मा मूल तमिल लेखिका वासंती का परिचय 6.7.1941 में मैसूर में वासंती शादी हो कर पति के साथ भारत के विभिन्न राज्यों में रही हुई है। इनकी उपन्यास 'आकाश के मकान' पर यूनेस्को के सरकार ने पुरस्कृत किया है। इसके अलावा इस उपन्यास का अंग्रेजी, चेक, जर्मन, हिंदी, आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। पंजाब साहित्य अकादमी ने और उत्तर प्रदेश के साहित्य अकादमी ने इन्हें सम्मानित किया है। वे इंडिया टुडे (तमिल) का दस सालों तक संपादन किया। विभिन्न देशों में आपको भारत के प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 2

अध्याय 2 अरुणा की नज़र में एक आधारहीन बच्ची का वात्सल्य दिखाई दिया । 'ओह मेरे लिए यह बच्ची हुई' ऐसी बात सोच कर सरोजा को थोड़ा संकोच हुआ। "एक दिन आप अपनी कहानी को मुझे आदि से अंत तक बताना दादी!" सरोजिनी हंसी। "मेरी कहानी में क्या दिलचस्पी है? तुम बोली जैसे दूसरों को परेशान ना करके, मुंह से बात ना कहना ही तो मेरे जीवन की कहानी है?" अरुणा ने सरोजिनी के कंधे को प्रेम से दबाया। "दूसरों को पता न होने वाली आपकी कहानी होगी। उस कहानी को आपने अपने अंदर जब्त किया हुआ है!" सरोजिनी ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 3

अध्याय 3 ‘किसी ने जगाया हो ऐसे सरोजिनी की आंखें खुली। खिड़की के कांच के द्वारा सूर्य का प्रकाश आया। कितनी देर सो गई यह सोच कर उसे आश्चर्य हुआ। थोड़ी देर तो उसे समझ नहीं आया कि मैं कहां हूं। यह वर्तमान काल है या बीता काल? नीला वेलवेट वाला गद्दा नहीं था । ऊपर लटकने वाले झूमर वाली लाइटें भी नहीं थी । यह वर्तमान समय है। कई युगों के बाद मैंने दूसरा जन्म लिया है। उस समय की सरोजा में और इस जीवन के तरीके में कोई संबंध नहीं है। मन बदला नहीं?’ सरोजिनी अपने मन ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 4

अध्याय 4 नलिनी को तेजी से अंदर जाते सरोजिनी ने देखा। 'सब परेशानियों के लिए इस लड़के को जिम्मेदार नलिनी मानती है तो यह उसकी बेवकूफी है' ऐसा उसने सोचा। शंकर के चेहरे पर आज खुशी नहीं थी उसने इसे महसूस किया। "नमस्कार बड़ी अम्मा" कहकर एक हल्की मुस्कान के साथ नमस्कार किया। "नमस्कार। आओ बेटा" वह बोली। "हेलो" कहकर आगे आकर कार्तिकेय ने उससे हाथ मिलाया। "अमेरिका एंबेसी में अरुणा का एक अपॉइंटमेंट है। मैं काउंसलर को जानता हूं। उसे लेकर जाने के लिए आया हूं" शंकर बोला। "अरुणा अभी आ जाएगी, आप बैठिए। मुझे ऑफिस के लिए ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 5

अध्याय 5 पचास साल के बाद भी अंतर पता नहीं लग रहा है: सरोजा की आंखों में एक उत्सुकता साथ पुराने दृश्य दिखे। सरोजा हमेशा की तरह रसोई में थी। इडली के आटे को सांचों में डालकर चूल्हे पर रखा और नारियल की चटनी पत्थर पर पीसना शुरू किया । उस दिन शुक्रवार था। उस दिन सुबह जल्दी सिर में तेल लगाकर सिर धोकर घुंघराले बाल उसके कंधे पर फैले हुए थे। अगले आधे घंटे में सभी लोग सुबह के नाश्ते के लिए धड़ाधड़ आ जाएंगे। ननंद लक्ष्मी जिसकी उम्र शादी के लायक है, रसोई में मदद करने की ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 6

अध्याय 6 "क्यों मां आज नहाना, पूजा ऐसा कुछ भी नहीं है क्या?" दूसरी बार पास में आकर नलिनी पूछने आई सरोजिनी । सामने खड़ी नलिनी के चेहरे पर चिंताओं की रेखाएं दिखाई दे रही थी। "आपकी तबीयत ठीक नहीं है क्या?" उसने पूछा। सरोजिनी हल्के मुस्कुराते हुए उठी। "ऐसा कुछ नहीं है। तबीयत बिल्कुल ठीक है।" "रोज इस समय तक नहाकर आप पूजा पूरी कर लेते हो!" "उसके बाद रोज चुपचाप बैठी रहती। आज शुरू में ही बैठ गई: वही अंतर है ना कोई काम ना कुछ? कुछ नहीं। कुछ भी करो मेरे लिए एक जैसा ही है।" ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 7

अध्याय 7 सरोजिनी स्वयं तैयार होकर अपने कमरे में अरुणा का इंतजार कर रही थी। दोपहर का खाना खाकर सी नींद निकालने के बाद कॉफी पीने जब उठी तब अरुणा घर आ गई थी। उसका चेहरा थका हुआ होने पर भी वह उत्साहित थी। उसे देखते ही "हेलो दादी" हंसते हुए बोली। "मुझे अमेरिका की एंबेसी में नौकरी मिल गई।" अरुणा उससे गले मिलकर हंसी। "मैं भूली ही नहीं, टिकट लेकर आई हूं !" "शंकर आ रहा है क्या ?" "नहीं हम दोनों लोग ही हैं।" अरुणा ने झुक कर दादी को मजाक से देखा। "क्यों पूछ रही हो ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 8

अध्याय 8 अरुणा आराम से गाड़ी चला रही थी। सरोजिनी बाहर देखती हुई अपने विचारों में डूबी हुई बैठी "क्यों दादी, गहरी सोच में हो?" धीरे से मुस्कुराते हुए पूछा। "अरे अब मुझे क्या सोचना है!" साधारण ढंग से सरोजिनी बोली। "क्यों नहीं सोचना चाहिए? क्या काम है आपके पास?" "वो ठीक है!" कहकर सरोजिनी हंसी। "मेरी सभी यादों को सोच नहीं कह सकते। कुछ खास काम किए हुए लोगों को सोचना चाहिए। मेरी सारी सोच एक सपने जैसी है। जो बिना अर्थ, बेमतलब की ।" अरुणा हंसी। "वह बिना अर्थ बेमतलब की सोच क्या है वही बता दीजिए!" ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 9

अध्याय 9 मन में उबलता हुआ गुस्सा चावल को फटकारते समय हाथों की उंगलियों के किनारों में कंपन हुआ। के अंदर "ओ" ऐसा एक अहंकार आवाज देने लगी। थोड़ी दूर पर बैठकर चौपड़ खेल रही लक्ष्मी मुझे ही देख रही थी यह महसूस होते ही उसने अपने को संभाला। लक्ष्मी की शादी होकर वह पोंगल के लिए पीहर आई हुई थी। घर में बड़ा भाई और नई भाभी ने जो तूफान और अन्याय खड़ा किया हुआ था | उसे और लोगों के साथ वह भी प्रेम से देख रही थी । किसी एक को भी मुझ पर हमदर्दी नहीं ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 10

अध्याय 10 कार्तिकेय और नलिनी इसी बात पर वाद-विवाद कर रहे थे। उसमें मुझे शामिल नहीं होना है ऐसा सरोजिनी मौन रही। "अरुणा के बारे में हमेशा कुछ न कुछ बोलते रहना तुम्हें बंद करना पड़ेगा" कार्तिकेय ने कहां। "उसकी उम्र हो गई है। वह एक अलग औरत है इस बात को ही तुम भूल जाती हो।" "यह देखिए, इस भीड़ में रहते समय कोई अलग औरत या पुरुष नहीं हो सकता। भीड़ हमारे बारे में क्या सोचती है उसके बारे में डरते रहना चाहिए।" "अभी क्या करना है कह रही हो ?" नलिनी सिर झुका कर भुनभुनाने लगी। ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 11

अध्याय 11 एक क्षण धक से रह गई फिर सरोजिनी अपने आप को संभाल कर मुस्कुराई। "अंदर आओ बेटी" से बोली तो श्यामला संकोच से अंदर आई। बैठने को बोले तो बड़े संकोच से सोफे के किनारे पर बैठी। उसका संकोच उसका स्वभाव है ऐसा सरोजिनी ने सोचा। बड़े घर वालों से छोटे घर वालों को होने वाला संकोच उसने सोचा। खाने के हॉल से उसने रसोई की तरफ देखा। मुरुगन अपने रोज के काम में लगा हुआ था। उन्हें देखते ही तुरंत खड़ा हो गया। "क्या चाहिए बड़ी अम्मा?" पूछा। "एक के लिए थोड़ा कॉफी और नाश्ता लेकर ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 12

अध्याय 12 सहूलियत कम हो जाने वाली स्थिति में दिनकर का परिवार कितनी परेशानियों में रहा होगा सोचकर उसके में दया आई और दुख भी हुआ । उसके मन में इन सब के लिए स्वयं के दोषी होने का दुख भी महसूस हुआ। उनके आगे के इलाज के लिए रुपए की मदद हो सके तो देकर उनके उधार को चुकाने पर एक भार कम होगा जैसे उसे लगा । कार्तिक और नलिनी इसके लिए मानेंगे क्या? 40 साल तक कोई संपर्क ना रहने के बाद, जिसे देखा ही नहीं उसके लिए चिकित्सा का खर्चा क्यों वहन करेंगे ? क्या ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 13

अध्याय 13 अरुणा ने कुछ क्षण उसे घूर कर देखा। "कोई बहुत बड़ी सोच में डूबी हुई हो आप लग रहीहैं। ऐसे क्या सोचती हो दादी?" अरुणा की उत्सुकता में एक परिहास भी छिपा हुआ है उन्हें लगा। अरुणा धीरे से मुस्कुराई, "मुझे ऐसा लगता है आपकी यादें बहुत ही दिलचस्प होगी दादी । अम्मा को देखने से ऐसा नहीं लगता। "ऐसा क्यों ?" "अम्मा का सभी अनुभव साधारण ही लगता है। बड़ी सरलता से मिला आरामदायक जीवन है उनका। बहुत गहरा सोचने की मेरी अम्मा की आदत नहीं है।" "मुझे भी क्या, मैं बिना पढ़ी-लिखी, तुम्हारी अम्मा तो ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 14

अध्याय 14 सुबह उठते ही सरोजिनी को याद आया कि आज शनिवार है और कार्तिकेय की आज छुट्टी है कल रात सोने जाते समय उसने बोला था। "आपको जाना है बोला था ना, उस बुजुर्ग आदमी को देखने कल चलें ठीक है?" "आपके लिए ही चल रहा हूं"ऐसा कह रहा है उसे लगा। 'इसके अप्पा ने इससे जाने क्या-क्या बोला होगा'यह सोचकर उसे फिक्र लगी। दिनकर मेरा विरोधी है इतना कह कर छोड़ दिया होगा क्या? जंबूलिंगम की गुस्से वाली आंखें गुस्से से चौड़ी दिख रही थी। इस समय सोचने पर भी अजीब सा डर लगता है, सिनेमा के ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 15

अध्याय 15 "आप अच्छे हैं?" सरोजिनी ने धीमी आवाज में पूछा उसके मन में थोड़ी घबराहट हो रही थी। ! बहुत अच्छी तरह से हूँ कोई कमी नहीं, अभी मेरे दांत भी नकली नहीं है वही है" दिनकर के हंसी में 50 साल फिर से फिसल के चले गए। "रसोई में रहने पर भी लाल रंग की साड़ी अच्छी लगती है "उसके शब्द सुनाई दे रहे जैसे उसे भ्रम हुआ। दिनकर कार्तिकेय की तरफ इशारा कर "यही आपके बेटे हैं?"बोले तुरंत सरोजिनी अपने को संभाल कर मुस्कुरा दी। "हां, कार्तिकेय इसका नाम है। 'ये वे' ऐसा सम्मान देने की ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 16

अध्याय 16 उस दिन मन कैसे पंख लगाकर उड़ रहा था? किस कारण से उड़ रहा था? इन प्रश्नों कई बार अपने अंदर वह पूछती और भ्रमित होडर जाती। उसको जवाब नहीं मिला। उसका दिल धड़कने लगा। कपकपी सी लगी... नए संचारों के लिए निडर होकर खड़े हुए जैसे। इस बात से ही उसे डर सा लगा। परंतु उस डर के बीच उसका निडर होकर उस पूरी रात दिनकर के साथ अकेले बैठकर उसकी बातें उसके हंसी मजाक की सुंदर यादें आकर एक सुख की अनुभूति प्रदान करती है। सब तरह से निशब्दताथी उस रात। पत्ते और पक्षी अपनी ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 17

अध्याय 17 "हेलो दादी !" बड़े आराम से अपनी पुरानी यादों से अपने को अलग कर सरोजिनी ने मुड़ देखा । अरुणा आज लाल रंग की साड़ी पहने बहुत अच्छी लग रही थी। "आओ !" सरोजिनी मुस्कुराते हुए बोली। "लाल रंग तुझ पर बहुत खिल रहा है बेटी!" "थैंक्यू दादी" हंसते हुए अरुणा उसके पास आई। आज शाम को आप फ्री हैं ना ?" सरोजिनी मुस्कुराई। "क्या प्रश्न है? सारे दिन ही मैं बेकार ही तो पड़ी हुई हूं?" "फिर भी पूछ रही हूं। शाम को बाहर चलेंगे आ रही हो क्या ?" "आती हूं ! कहां?" "लालबाग। आज ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 18

अध्याय 18 उसके पेट के अंदर से एक भयंकर ज्वाला उठी। कुर्सी को मजबूती से उसने पकड़ा। आंखें चौड़ी फैल 50 साल पीछे झांकने लगी। सरोजिनी को यह बात सोच-सोच कर अब भी सहन नहीं हो रही थी। जंबूलिंगम मरने-मारने में पीछे नहीं रहता है ऐसा एक संदेह सरोजिनी के मन में हमेशा से था। राक्षसों जैसे भीम काय शक्ल के आदमी बाहर के कमरे में चार पांच लोग उससे बातें करते थे यह बात उसे पता था । उन आदमियों को देखकर ही उसे दुख होता था। जम्बूलिंगम से उनके बारे में पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी। ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 19

अध्याय 19 कार्तिकेय की गाड़ी कंपाउंड के अंदर आ रही थी । सरोजिनी को दिखाई दी तो वह हड़बड़ा वर्तमान में लौटी। "रत्नम को मरे दस साल हो गए ‌अभी तक मुझे उसके ऊपर जो नाराजगी थी वह कम क्यों नहीं हुई"उसे खुद को आश्चर्य हुआ। अभी इतनी सुबह से उसके बारे में सोच कर बैठे रहो तो और किसी काम में मन ही नहीं लगेगा.... कार की आवाज को सुन मुरूगन भागकर गाड़ी में से सब्जियों के थैलियों को उठा कर लाया। अरुणा मुस्कुराते हुए चेहरे से सरोजिनी को देखकर हाथ हिलाते हुए आईं। "क्यों दादी धूप सेक ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 20

अध्याय 20 एकदम से उसके शरीर में आग लगी और उसके आंखों से आंसू बहने लगे। दिनकर ने घबराकर तौलिए से उसके आंसुओं को पोंछा। "क्या हुआ, जंबू ने मारा ?" उसने "हां" कहने जैसे सिर हिलाया। जम्बू एक जानवर है!" वह गुस्से से बोला‌ "क्यों मारा ?" मदुरई जाने के लिए आपनेजिद्द की !" "मुझे उनके साथ कुत्ते जैसे क्यों जाना है!" वह गुस्से से बोली। "शडैयन मर गया सुनकर मैं घबरा कर भागकर जाकर कही। उसके लिए ही मारा और गंदी बातें भी सुनाई, उसे सुन रत्नम हंसी!" जल्दी से कुछ समझ गया जैसे उसका मन परेशान ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 21

अध्याय 21 सरोजिनी ने अनजाने में ही शंकर की पत्नी मल्लिका को देखा। मल्लिका, शंकर, और अरुणा को देख हल्की मुस्कुराई। हल्का सा संकट उस मुस्कुराहट के पीछे छाया जैसे है ऐसे सरोजिनी को लगा। वह मल्लिका के पास जाकर उसके कंधे को पकड़ कर वह बोली "मल्लिका हो ना?" कहकर हंसी। "तुम्हारे बारे में अरुणा हमेशा बड़प्पन से बोलती है"। मल्लिका के चेहरे पर एकदम से प्रकाश दिखाई दिया। "मुझे देख कर उस पर विश्वास करने लायक कुछ है बड़ी अम्मा?" "सिर्फ देखने के बदले अच्छी तरह से घुले मिले तो ही उस पर विश्वास करें या नहीं ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 22

अध्याय 22 सरोजिनी का शरीर सुबह उठी तब एक नया खून आया जैसे उत्साहित था। मन के अंदर नहीं पा रहीं ऐसी एक खुशी मुंह और होठों पर चमक रही थी। उसने अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर अंगड़ाई ली। उसकी दोनों आंखें अभी तक एक खुशी में डूबी हुई थी। "क्या हो गया तुम्हें?" ऐसा अपने आप से ही उसने पूछा। "बहुत बड़ी बात हो गई" अपने आपको जवाब दिया। पिछली रात की यादें गुलाब जल की वर्षा में भीगे है जैसे उसे याद आने लगी। एकदम से लाखों-लाखों फूल खिले। उसकी खुशबू से उसका जी ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 23

अध्याय 23 आंगन में हल्के धूप में बैठकर चावल को फटकारते हुए सरोजिनी के हाथ बीच में हल्का सा होकर रुक जाता। कान तीव्र होकर अंदर कमरे में जंबूलिंगम और रत्नम के बीच में जो गरम वाद-विवाद हो रहे उसी में रमा। उसके सामने थोड़ी दूर पर बैठी मरगथम ने उसे एक बार देख अपने अंदर बड़बड़ा रही जैसे बोली। "छोटी अम्मा की जबान बहुत ज्यादा चलती है।" सरोजिनी बिना जवाब दिए चावल को साफ करती हुई नीचे झुक कर रही थी। "हमारी जाति में इस तरह बोलें तो आदमी लोग सिर ही काट देंगे!" सरोजिनी बिना मुंह खोले ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 24

अध्याय 24 "आज मेरे और दादी का खाना बाहर है" सुबह नाश्ते के वक्त अरुणा बोली । "अरे, मैं भूल ही गई" कहकर सरोजिनी मुस्कुराई तो नलिनी प्रश्नवाचक नजरों से उन्हें देखा। "कहाँ खाना है? होटल ले जा रही हो क्या?" अरुणा हंसी। "क्यों अम्मा? हमें खाने पर बुलाने के लिए आदमी नहीं है ऐसा सोचा क्या? शंकर-मल्लिका के घर पर आज हमारा खाना है।" "ओ" बोली नलिनी थोड़े विस्मय के साथ। "एक दिन उन्हें यहां खाने पर बुला सकते हैं?" "वही मैंने भी बोला!" सरोजिनी बोली। "शंकर को देखने से ही आपका चेहरा बदल जाता है। खाने पर ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 25

अध्याय 25 सरोजिनी के अंदर आने को महसूस कर पलट कर आराम से उठा। उसकी आंखों में क्रोध से डालने वाला एक जुनून को देखकर भी सरोजिनी को कोई डर नहीं लगा | इस पर उसे स्वयं आश्चर्य भी हुआ। उसने सीधे उसे देखा। उसकी हिम्मत को देखकर वह भी चौंक गया और उसकी चाल में संकोच दिखाई दिया। फिर अपने आप को संभाल कर अकड़ के साथ उसके गाल पर एक जोरदार चांटा मारा। दहशत के बाबजूद भी बिना डरे अपने को संभाल कर खड़ी रही। अचानक उसे वह निम्न से भी निम्नतर दिखाई दिया। "इतना साहस, मेरे ...Read More

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बंद खिड़कियाँ - 26 - अंतिम भाग

अध्याय 26 "अपने कमरे में जा रही हूं" कहती हुई सरोजिनी उठी। पुराना रिश्ता जो अभी तक बड़े अच्छी से चल रहा था वह कट गया जैसे उसके मन में एक शून्यता फैल गई। "अपने-अपने कर्तव्यों को खत्म करने के बाद फिर जाना ही है। इसमें दुखी होने के लिए कुछ भी नहीं है" इस तरह से बड़बड़ाते हुए अपने कमरे की तरफ जाने लगी। अरुणा का उनके साथ उनकी सहेली जैसे चलकर जाना उनके मन को सकून दे रहा था। "अभी आपने उन्हें देखा था। इसीलिए आपको अधिक सदमा लगा और दुख भी होगा" अरुणा धीरे से बोली। ...Read More