Bandh Khidkiya - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

बंद खिड़कियाँ - 20

अध्याय 20

एकदम से उसके शरीर में आग लगी और उसके आंखों से आंसू बहने लगे।

दिनकर ने घबराकर अपने तौलिए से उसके आंसुओं को पोंछा। "क्या हुआ, जंबू ने मारा ?"

उसने "हां" कहने जैसे सिर हिलाया।

जम्बू एक जानवर है!" वह गुस्से से बोला‌ "क्यों मारा ?" मदुरई जाने के लिए आपनेजिद्द की !"

"मुझे उनके साथ कुत्ते जैसे क्यों जाना है!" वह गुस्से से बोली। "शडैयन मर गया सुनकर मैं घबरा कर भागकर जाकर कही। उसके लिए ही मारा और गंदी बातें भी सुनाई, उसे सुन रत्नम हंसी!"

जल्दी से कुछ समझ गया जैसे उसका मन परेशान हुआ। शडैयन को जम्बूलिंगम ने अपने आदमी से मरवाया, यह बात दिनकर को भी मालूम होगी।

वह नए तरीके से अपमानित हुई जैसे फूट-फूट कर रोने लगी।

"कृपा करके आप मत रोइए" वह परेशान होकर बोला। उसके कंधे पर से हाथों को नीचे उतार उसके पीठ को शांत करने के लिए थपथपाया।

उसकी नम्र आवाज में पुरुषोंचित बात का नशा उस पर चढ़ा। क्या कर रही हूं न समझ उसकी छाती पर मुंह को रखकर वह रोई। तुरंत उसनेउसे अपने आगोश में ले लिया। उसके स्पर्श से लहरों के रूप में उसके ऊपर बिजली गिरी जैसे उसका शरीर कपकपा गया। आंखें बंद हो गई गालों और कानों में लालिमा छा गई। इस आलिंगन के लिए

करोड़ों वर्षों से इंतजार कर रही हो जैसे एक गर्मी उसके शरीर में फैली। उसके मन में जो डर था वह अपनेकिनारों को तोड़ता हुआ बाहर बहता चला गया, यह एक ही मुख्य भावना जिसमें वह बह गई।

जो कुछ उसने दबा के रखा था वह सब सीमा को पार कर बाहर आकर उसके होंठ उसके चेहरे पर लगते ही उसका हृदय पिघल गया।

उसके शरीर ने उसे स्वीकार किया। जो रोमांच अभी तक नहीं हुआ उस आलौकिक दुनिया में वह पहुंच गई। स्वर्ग का द्वार खुल गया। यह उसी तरह का अनुभव है । ऐसी एक कीमती वस्तु है। बहुत बड़ी खुशी उसे मिली जैसे एक संतुष्टि और शांति का अनुभव हुआ । चेहरे पर एक चमक के साथ होंठों में एक मुस्कान लिए वह अभी भी एक नशे में है जैसे उसकी आंखें उसे ही देख रही थी तो दिनकर सिर झुका कर थोड़ी दूर पर जा खड़ा हुआ।

"माफ कीजिए" वह धीमी आवाज में बोला। "एकक्षण की देरी से बुद्धि खराब हो गई, गलती हो गई। "

उसने जवाब नहीं दिया। उसके ही समझ में नहीं आया पर उसका मन भरा हुआ था।

उसकी मौन को सहन नहीं कर पा रहा जैसे उसने फिर से सिर झुका कर बोला "मैंने जो किया है वह माफ न करने लायक गलती है। माफी मांगना भी गलत है लग रहा है। मैं रवाना होता हूं।"

"नहीं खड़े होइए" वह साफ बोली "मेरे साथ रहोगे बोलकर अब कहां रवाना हो रहे हो?"

उसने आश्चर्य से उसे देखा।

"आपके साथ रहूंगा बोलने से क्या हो गया देखा...." 

वह धीमी आवाज में बोली "प्रकृति के विरोध में कुछ भी नहीं हुआ ना साहब ! जो हुआ उसको कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती। आपको माफी मांगने की जरूरत नहीं है। गड़बड़ी मुझसे भी हुई है यह सच है...."

"मेरी वजह से दाग लग गया यह भी सच है...."

उसने उसे घूर कर देखा।

"आ ! ऐसी शब्दों को बोलकर अपने को परेशान मत कीजिए। औरतों पर राज करके अपने को योग्य जैसे मान एक गरीब आदमी की हत्या कर बिना शर्म के घमंड सेयहाँ खड़ा है,इसका इसे कोई संकोच भी नहीं है। इस तरह के आदमियों के बीच में आपका इस तरह बात करना एक तमाशा जैसे लग रहा है। हमने किसी का खून नहीं किया, आप बेकार असमंजस में मत पड़िए।"

वह अभी तक चकित हो खड़ा रहा। 

"आपको असमंजस नहीं है?"

वह धीरे से मुस्कुराई।

"नहीं सचमुच में मेरा मन साफ-सुथरा निर्मल हो गया।"

वह खड़ा हो सम्मान से उसे देखा।

"मैं सिर्फ एक लकड़ी नहीं हूं इसे मैंने आज ही समझा...."

"दादी लालबाग जाना है मैंने बोला था ना?"

सरोजिनी धीरे से वर्तमान में लौटी। खिड़की के बाहर से नजरों को हटाए बिना, "चलेंगे, कब जाना है !"

"4:00 बजे! अभी 3:30 बजे हैं। खाना खाने के बाद आपने रेस्ट किया? आप बैठी ही रहींऐसा लग रहा है।"

"यह भी रेस्ट ही है?" कहकर सरोजिनी हंसी।

"मैं पाँचमिनट में तैयार हो जाऊंगी, तुम जाकर तैयार हो,।"

"राइटो !" कहकर अरुणा चली गई।

सरोजिनी उठकर बाथरूम में जो आईना था उसके सामने खड़ी होकर बाल बनाने लगी। उसके बाल अभी तक नलिनी के सफेद हुए बालों जितना भी सफेद नहीं हुए। उसके स्किन में अभी भी एक चमक बरकरार है।

अरुणा के उम्र में यह शरीर वैसे ही रहा होगा?

"अपने पास जो कीमती वस्तु है उसको ना समझने वाला बेवकूफ आदमी है!"

अभी उसके बारे में सोच कर सरोजिनी को हंसी आ रही थी।

'एक को जो पसंद है वह दूसरे को पसंद ना हो कैसे हो सकता है? दिनकर के छूते ही मेरा शरीर पिघल गया वही शरीर जंबूलिंगम जो परेशानियां करता था उससे शरीर लकड़ी जैसे हो जाता था? उसके बावजूद भी अम्मा और दूसरे लोग भी बार-बार यही समझाते कि पति का हर तरह से साथ देना, यही तुम्हारा कर्तव्य है ऐसा बोलते थे....! शादी के पहले 4-5 ज्योतिषीयों को जन्मपत्री दिखाकर दसगुण मिल रहे हैं बताया। उनसे पूछ कर ही यह शादी हुई। अलग-अलग जाति के गायों को मिला दिया जैसे नहीं हुआ क्या?

अरुणा को भी यही अनुभव हुआ होगा चार दीवारों के बीच कैदी जैसे रहना मेरी मजबूरी थी परयह अरुणा के लिए नहीं थी....

उसे मजबूर किया होता तो भी मुझे आश्चर्य नहीं होता।

"प्रभाकर स्वयं तो किसी भी लड़की के साथ घूमता था। परंतु मैं किसी लड़के के साथ साधारण बातचीत भी करूं तो उसे संदेह होता। कभी-कभी मुझे लगता दादी सचमुच में मैं किसी के साथ भाग जाऊं।"

सरोजिनी अपने आप में हंसी।

परंतु वह नहीं भागी - मन में जो भावनाएं उफनने से वह पाप का भागीदारबन जाता है।

उसकोफिर से हंसी आई। कैसा बदला? कैसा पाप? मानवता ही ना हो ऐसी बेईमानी और अन्याय सारी दुनिया में हो रहा है। यह सब जीवन में बहुत साधारण सी बात है ऐसेही सोच कर दुनियाजी रही है । परंतु एक लड़की परिस्थिति वश अपने लिए जो लाइन खींच दी गई है उसे पार करती है तो वह माफ न करने वाला दोष हो जाता है! उसके लिए सब लोग लंबी जीभ करके बातें करते हैं.....

उसने अपने मुंह को धोकर दूसरी साड़ी पहन ली।

"आप एक असाधारण महिला है सरोजिनी अम्मा !"

किसने बोला इसे?

उसके शरीर में एक बार कपकपी आई। यह दिनकर के शब्द हैं।

उन शब्दों का क्या अर्थ है? साधारण महिला होती तो अपनी गलती को महसूस कर-कर ही मर जाती इसका यही अर्थ है।

इसे तो मैंने दोष माना ही नहीं तो मुझे गलती का एहसास क्यों हो? उस दिन हुई घटना से मैंने अपनी पवित्रता खो दी ऐसे मैंने नहीं सोचा। मैंने कोई अपमान का अनुभव नहीं किया। सचमुच में जिससे शादी की उसने मेरे शरीर को मनुष्य का शरीर ना सोच कर उसके साथ हिंसा की और अपमानित किया तब मैं कलंकित हुई सोच कर तड़पी..

शाम को ठंड लगेगी ऐसा सोच कर उसने साड़ी के मैचिंग रंग का शाल भी ले लिया। काले रंग के जरी के बॉर्डर वाली क्रेप सिल्क की साड़ी में चमकती हुई अरुणा नीचे उतरी।

"आपके पास जो कीमती वस्तु है उसके बारे में ना जानने वाला बेवकूफ आदमी" जो दिनकर ने बोला था वही शब्द प्रभाकर के उपयुक्त हो रहा है ऐसा उसे लगा। इसीलिए रिश्ता ही खत्म हो गया। उसके बारे में अब क्या सोचना ऐसा सोच उसने अपने आप को समाधान किया।

"रेडी हो गई दादी?" हंसती हुई अरुणा पास में आकर खड़ी हुई ‌। "आइए" उसके साथ चल कर कार में जाकर बैठ कर हंसी। "इस साड़ी में तुम बहुत अच्छी लग रही हो बच्ची।"

"थैंक्स दादी" हंसती हुई बोली। "यदि मैं अच्छी ड्रेस पहन कर तैयार हूं तो अम्मा को पसंद नहीं आता !"

"इस उम्र में तैयार नहीं होगी तो फिर कब होगी?"

"मुझे दूसरी तरह से रहना चाहिए ऐसा अम्मा की सोच है। विधवा का वेश कर लूं तो ही अम्मा खुश रहेगी।"

"छी..छी...! मुझसे कोई पूछे तो तुम्हारी शादी नहीं हुई है बोलूंगी।"

अरुणा थकी हुई सी हंसी। "आपके जैसे सोचनेवाले कितने लोग है दादी?"

रवाना होने के पहले नलिनी से कोई वाद-विवाद हुआ होगा ऐसा सरोजिनी ने सोचा।

उसने बड़े प्यार से अरुणा के कंधे को पकड़ा।

"दुनिया बदल रही है अरुणा। तुम्हारी अपनी जिंदगी है। उसको अच्छी तरह से जीने का तुम्हें अधिकार है।"

"थैंक्यू दादी"कहकर अरुणा हंसी। "परंतु मैं इस अधिकार का गलत प्रयोग नहीं करूंगी।"

"हां यही ठीक है।"

अरुणा गाड़ी बड़े आराम से चला रही थी। सरोजिनी ने सोचा सामंजस्य न होने वाले पति से कानूनी तौर से अलग होना कितनी गौरव की बात है। यदि यह काम नहीं हुआ होता तो अरुणा का जीवन ही बदल गया होता।

लालबाग आ गया। बहुत सारी गाड़ियां लालबाग के पार्किंग में खड़ी हुई थी। ऊंचे स्टेटस वाले लोगों की भीड़ से वहां बड़ा अच्छा लग रहा था।

अरुणा किसी पर ध्यान न देकर सरोजिनी के हाथ को पकड़ कर चलने लगी। ज्यादातर लोगों की निगाहें अरुणा के ऊपर पड़ रही थी जिस पर सरोजिनी ने ध्यान दिया। वे लोग एक-दूसरे पर इशारा करके आपस में कुछ-कुछ फुसफुसा रहे थे। इसी कारण से नलिनी ने आने को मना कर दिया ऐसा सरोजिनी के समझ में आया। उसे बहुत वेदना भी हुई। यह तो बड़े सभ्य समाज के लोग हैं। इन लोगों की सोच कितनी संकुचित है इस पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था।

गुलाब के फूलों पर ध्यान देते हुए वे आगे बढ़े।

"हाय अरुणा!" की आवाज सुनकर दोनों ने पीछे मुड़कर देखा।

शंकर खड़ा था। उसके साथ उसकी पत्नी और कोई दो यूरोपियन लोग भी थे।

"ये आंटरसन, ब्रिटिश हाई कमिश्न दिल्ली में है।"कहकर शंकर ने उनका परिचय कराया।

आंटरसन ने अरुणा से हाथ मिलाकर उससे कुछ अप्रिशिएट की लंबी बात बोले।

"वह बोल रहे हैं वह सच है। आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो" शंकर की पत्नी बोली।

अरुणा को ही हंस कर देख रहे शंकर पर सरोजिनी की निगाहें पड़ी। दिनकर की याद उसे जल्दी से आई। 

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