Bandh Khidkiya - 23 books and stories free download online pdf in Hindi

बंद खिड़कियाँ - 23

अध्याय 23

आंगन में हल्के धूप में बैठकर चावल को फटकारते हुए सरोजिनी के हाथ बीच में हल्का सा स्तंभित होकर रुक जाता। कान तीव्र होकर अंदर कमरे में जंबूलिंगम और रत्नम के बीच में जो गरम वाद-विवाद हो रहे उसी में रमा।

उसके सामने थोड़ी दूर पर बैठी मरगथम ने उसे एक बार देख अपने अंदर बड़बड़ा रही जैसे बोली।

"छोटी अम्मा की जबान बहुत ज्यादा चलती है।"

सरोजिनी बिना जवाब दिए चावल को साफ करती हुई नीचे झुक कर रही थी।

"हमारी जाति में इस तरह बोलें तो आदमी लोग सिर ही काट देंगे!"

सरोजिनी बिना मुंह खोले चावल फटकारने में ही लगी रही। फटकारते समय धान के ऊपर-नीचे होते समय लहरों जैसी उसके मन में विचार आ-जा रहे थे। पहली बार उसे ऐसा लगा कि रत्नम की पीठ थपथपा कर उसे शाबाशी दें। होठों पर एक हल्की मुस्कान भी आकर चमकी और गायब हो गई।

'मुझसे ज्यादा रत्नम होशियार है इसमें कोई संदेह नहीं' उसने अपने मन में सोचा ।

"क्यों मैंने जो कहा उसमें क्या गलती है?" अंदर रत्नम का चिल्लाकर पूछना उसके कानों में साफ सुनाई दे रहा था ।

"तुम अपना मुंह बंद नहीं करोगी?" जंबूलिंगम ने ऐसा बोल कर आज तक जो गुस्सा नहीं दिखाया था वह आज दिखाया।

"नहीं!" रत्नम फट पड़ी। "मुझ पर इतना बड़ा इल्जाम लगाते हैं तो मैं कैसे उसे बर्दाश्त करूं? उस सरोजिनी के जैसे मैं बिना जबान की नहीं हूं। मुझे बांझ कह कर अलग करके तो देखो! आपने बेटे की दूसरी शादी क्यों की पूछो। उसके बच्चे नहीं हुए तो कारण बांझ है?"

"फिर कौन से कारण को तूने ढूंढ लिया?" सास ने डांटा।

"वह सब कहती रहूं तो आप का ही अपमान होगा। दिन क्या रात क्या सारा समय मैं इनका साथ दे रही हूं वैश्या को भी इतना दर्द नहीं हुआ होगा....."

"अरे बाप रे! ये कैसी बात कर रही है जंबू !" 

एक जोरदार चांटा पड़ा उसकी आवाज आई। पर रत्नम चुप नहीं हुई।

"इनके साथ ऐसे सोने के लिए हर साल एक बच्चा पैदा करना था। नहीं पैदा हुआ उसका क्या कारण है? मुझमें कोई खराबी नहीं है। इनमें खराबी है। इतना ज्यादा आपको क्रोध आ रहा है तो मेरा भाई डॉक्टर है, उनके पास जा कर दिखा लो।"

"रत्नम तुम हद से ज्यादा हो रही हो।" सास तेज आवाज में बोली।

"अम्मा आप चुप रहिए। मैं इसे संभाल लूंगा" जंबूलिंगम बोला।

"तेरे बड़े भाई का घमंड अपने पीहर में ही कर, यहां नहीं! किसी को भी दिखाने मैं जाने वाला नहीं इससे ज्यादा एक शब्द भी तुम बोली....." जंबूलिंगम के तेजी से बाहर जाने की आवाज सुनाई दी।

जाने के पहले मैं क्या बोली पता नहीं।

कुछ तेज आवाज में गुस्से से रत्नम बोली और अपने कमरे में चली गई।

सास आंगन को देखती हुई चलकर इस तरह झूले पर बैठी उससे जो आवाज आई जिससे उनके गुस्से की तीव्रता को सरोजिनी ने महसूस किया।

सरोजिनी ने अपना सिर ऊंचा नहीं किया। एक शब्द भी नहीं बोली।

मरगथम और उसने काम को खत्म करने के बाद, "मैं सबको समेट दूंगी आप जाइए" उसके ऐसे बोलने पर वह पिछवाड़े के कुंए पर जाकर अपने चेहरे को धोने लगी।

थोड़ी देर में बाहर गाड़ी आकर खड़ी हुई। माली ने रत्नम के संदूक को उठाकर गाड़ी में रखा, रत्नम अकड़ के साथ बिना सास से बोले उठकर गाड़ी में बैठी। जंबूलिंगम वहां नहीं दिखे।

गाड़ी के रवाना होने को सरोजिनी और मरगथम आश्चर्य से देखें "यही ठीक" मरगथम बड़बड़ाई ।

इसके चले जाने से अपने को कोई फायदा नहीं इसे महसूस कर सरोजिनी मौन होकर अपना काम कर रही थी। बहुत देर तक सास गुस्से में और दुख के साथ वहीं बैठी रही। एक हल्की सी खुशी उसे हुई। ‌"ऐसा अपमान इनका होना चाहिए" मन में विचार उठा। जब से रत्नम आई है तब से मुझे बिना किसी दया भाव के मेरे साथ कैसा व्यवहार किया। एक नौकरानी से भी बुरा व्यवहार मेरे साथ किया! पीहर वापस जाने पर भी रत्नम को वहां भी रानी जैसे ही रहने को मिलेगा क्योंकि उसके घर में ऐसी सुविधाएं हैं। उसके पिताजी बहुत बड़े जमींदार और भाई बहुत पढ़े-लिखे है । वह चली जाए तो नुकसान इन्हीं का है ऐसा लगा इतनी सरलता से जंबूलिंगम का मन रत्नम को छोड़ने का किया होगा क्या ? इसमें संदेह है। अपनी अम्मा का अपमान करने के कारण उसे भेजा होगा। हो सकता है वही गुस्से में रवाना हो गई होगी।

कुछ भी हो मेरे जीवन में तो कोई बदलाव आने वाला नहीं ऐसे विश्वास के साथ हमेशा की तरह वह अकेली ही सोई। 

उनकी बातों ने जंबूलिंगम को बुरी तरह हिला दिया होगा ऐसा उसे लगा। उसके चेहरे पर मौन और तनाव को देखते हुए रत्नम जो कह रही है वह सही होगा यह डर उसे महसूस हुआ ऐसा लगता है।

'यह लोग जो अन्याय करते हैं उसके लिए रत्नम ने जो किया अच्छा किया और करना चाहिए उसे लगा' वह स्वयं से ऐसा कहने लगी।

"दूसरे किसी आदमी से शादी की होती तो अभी तक 6 बच्चे पैदा हो गए होते?

मुझे भी हुए होते?

सरोजिनी को एक सदमा लगा। दिनकर के साथ उस दिन शारीरिक संबंध बना उसकी याद उसे आई।

उसे डर के बदले उसके पूरे शरीर में एक सिहरन उठी। वह कितना अच्छा संगम था ! उसकी वजह से उसके बीज से उत्पत्ति हो तो वह रिश्ता कितना तृप्ति कारक होगा उसे लगा। मुझे घर से ही भगा दें तो भी मैं छोटी नहीं हो जाऊंगी।

रत्नम ने शब्दों से उन्हें जो अपमानित किया मैं तो उसे करनी में करके दिखा दूंगी। 

दिनकर फिर आया ही नहीं। कितने दिन हो गए हैं ऐसी याद भी नहीं । अभी तक वह याद मन में संतोष दे रही है....

रत्नम के गए दस दिन हो गए। उसके जाने से जंबूलिंगम ही ज्यादा प्रभावित हुआ ऐसा दिखाई दिया। सासु अम्मा को तो कुछ भी नहीं हुआ है जैसे हमेशा की तरह रही। सरोजिनी का काम किसी तरह भी कम नहीं हुआ। हमेशा की तरह घर में आने-जाने वालों का कोलाहल मचा हुआ था।

आज उसे एक मिनट बैठूं ऐसा लग रहा था। सुबह 4:30 बजे से उठने के बाद अभी शाम को 5:00 बजे तक एक मिनट भी आराम न मिलने से उसका सिर घूमने लगा। दोपहर के समय जल्दी-जल्दी समय ना मिलने के कारण दो मिनट में खाने को फटाफट खा गई। शायद वह हजम नहीं हुआ उसके पेट में कुछ अजीब सा हो रहा था। मटके से पानी लेकर दो ग्लास पीकर हॉल में आकर बैठी।

बाहर एक गाड़ी आकर खड़ी हुई थी और बैठक में एक पुरुष के साथ सासू मां वाद-विवाद कर रही थी | उसने अभी ही उस पर ध्यान दिया | उसी समय उसके बैठते ही मरगथम आकर उसके कान में कुछ फुसफुसाई। 

"छोटी अम्मा का बड़ा भाई आया है। उनकी छोटी बहन के शरीर में कोई खराबी नहीं बोला । साहब को डॉक्टर के पास लेकर जाएंगे ऐसा बोल रहे हैं। यह सब इस घर का रिवाज नहीं है ऐसे अम्मा गुस्से से बोल रही हैं....."

"घर में साहब नहीं है क्या?"

"नहीं"

अचानक सरोजिनी को उबकाई आने लगी। पिछवाड़े में कुएं के पास जाकर धड़ाधड़ उल्टी की।

तुरंत दौड़कर आई मरगथम उनको कुल्ला करने के लिए पानी दिया और उन्हें संदेह से देखने लगी।

"क्यों अम्मा आपकी तबीयत ठीक नहीं है?" पूछी "अरे वाह रे आपको नहाए तो बहुत दिन हो गया ना?" थोड़ी देर बाद बोली।

बिजली चमके जैसे लगा सरोजिनी को फिर उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

"हां" कहकर मरगथम शुरू हुई। "हमारे पिताजी के मरने से पहले ही तो आप नहाई थी, उसके बाद नहीं? एक महीने से ज्यादा हो गया!"

आधे अधूरे होश में रहे सरोजिनी को मरगथम के चेहरे पर प्रसन्नता दिखाई दी।

"छोटी अम्मा की नाक काटने के लिए बहुत बढ़िया।" कहती हुई वह सरोजिनी के हाथ को पकड़ कर घर के अंदर ले गई और झूले पर सुलाया।

उसमें सोचने की शक्ति चली गई ऐसा सरोजिनी को लगा।

अगले कुछ क्षणों में ही सासू मां के अंदर आने का पता चला। उठ कर बैठी तो सासू मां ने अपने हाथ को ऊपर कर उसे लेटाया। 

"अरे वाह सौभाग्यवती तूने मेरे बेटे की इज्जत को बचा दिया।" कहकर, "अब मैं हिम्मत से रत्नम के बड़े भाई से बात कर सकती हूं" कहकर वह मुस्कुराई।

सास के कमरे में से बाहर जाने को सरोजिनी ने संशय और आश्चर्य से देखा।

बाहर जंबूलिंगम की गाड़ी आकर खड़े होने की आवाज आई।

मरगथम उसकी सहेली जैसे सफलता की मुस्कान के साथ खड़ी हुई थी।  

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