Jaadui enak se sher ka mukabla book and story is written by SAMIR GANGULY in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Jaadui enak se sher ka mukabla is also popular in Children Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
जादुई ऐनक से शेर का मुकाबला
by SAMIR GANGULY
in
Hindi Children Stories
जादुई ऐनक के सहारे शेर का मुकाबलाचारों को कमरे में घुसते देख साई जी ने तुरंत ही अपना सामान संदूक में डाल‘भड़ाम’ से उसे बंद कर डाला और उसके ऊपर बैठ कर आग्नेय नेत्रों से बच्चों कोघूरने लगे. उनके ...Read Moreकीमती सामान के पास आ कर उन्हें कोई उलट-पलट करे, यह साई जी बर्दाश्त के बाहर था.इधर पिनाकी, मोंटी, रेवा और किंशु की चौैकड़ी भी जैसे कुछ तय करके ही आईथी. पिनाकी दूर से ही बोला, ‘साई जी, हम कुछ नहीं करेंगे, आप बेफिक‘ रहिए.’‘ तुम लोग बिना पूछे अंदर आए कैसे?’ साई जी गुर्राए.‘साई जी आप से एक सलाह लेनी थी.’ मोंटी कोरा कड़क झूठ बोल गया.‘सलाह! कैसी सलाह?.... आओ तब.’ साई जी कुछ नरम होते हुए बोले, ‘लगताहै विपत्ति में हो. कोई बात नहीं, साई कृपा से मुश्किल आसान होगी.’नजदीक आ कर रेवा ने एक कमानीदार ऐनक के जंग खाए फ्रेम को उठा कर साईजी की ओर देख हंसते हुए पूछा,‘साढ़े सातवां आश्चर्य गूलरगढ़ यही है न साईजी.’‘अरे...रे...रे! साई जी ने लपक कर रेवा से वह कथित ऐनक छीन ली और उसे देखअतीत में खोते हुए बोले, ‘चूसीदादा प्लस इसी ऐनक की कृपया से वह आठ फुटाखूंखार शेर चक्कर खा-खाकर घुटने टेक कर मरा था.’‘चूसीदादा? ’ किंशु ने इस अजीब शब्द पर आश्चर्य प्रकट किया.‘हां, वे तिब्बती सज्जन मेरे गुरू थे. तीन साल तक उनके पास रह कर मैंने इच्छाशक्ति से चेहरे को मनचाहे रूप में बदलना सीखा था. मैं मगरमच्छ, बाघ, बंदर, भालू या सांप-कैसा भी रूप दे सकता था अपने चेहरे को. बाद में सन साठ में जबमुझे टाइफाइड हुआ, तो यह विद्या छिन गई. दैव इच्छा. हां, उन दिनों मैं तिब्बत मेंजड़ी-बूटियों की खोज कर रहा था, तभी परिचय हुआ था चूसीदादा महाशय से’‘लेकिन शेर?’ यह रेवा थी.‘उससे परिचय एक वेजिटेरियन होटल में हुआ था.’ मोंटी फुसफुसाया.लेकिन साई जी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. वे गहरे अतीत में कहीं खो गए थे. आंखें बंद थी उनकी और हाथ ऐनक को पूरी श्रद्धा से थामे थे. कई एक पल बादउन्होंने आंखें खोली और बच्चों पर एक नजर डाल कर बोले, ‘बैठ जाओ. सनपचास की वह लोमहर्षक घटना सुनाता हूं. जब शेर मुझे देख कर था-थर कांप रहाथा और मैं निहत्था पान चबा रहा था.’‘कहां साई जी?’ भोले किंशु ने पूछा.‘चिड़ियाघर में’ जवाब दिया नटखट पिनाकी ने.‘हूं! चिड़ियाघर का शेर भी कोई शेर होता है! जिसे भोजन की चिन्ता न हो, सुरक्षाकी जिसे परवाह न हो, वह शेर, शेर हो कर भी पाला हुआ जीव है और वहां केकुत्ते भी यहां के शेरों से बढ़ कर है. फिर उस जंगल के मांसाहारी चमगादड़ जोदिन में टूट पड़ते हैं आदमी पर.’‘ तो आदमी जाए ही क्यों वहां?’‘क्यों न जाए! अलबत्ता जाए और हिम्मत के साथ छाती ठोंक कर जाए. इतनीकीमती जड़ी-बूटियों को आदमी अनदेखा कर जाए, नहीं-नहीं, आदमी के लिए यहउचित नहीं, फिर मेरी इच्छा तो शेंग्रीला जाने की थी.’‘शेंग्रीला?’‘हां, शेंग्रीला तिब्बत में ही छिपा एक स्थान है. जहां जाने पर उम्र रूक जाती है. आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता और हजार-हजार साल जीता है.’‘साई साब, सच है क्या यह?‘ मोंटी ने तनिक शक करते हुए पूछा.‘अगर मैं गधा नहीं हूं, तो यह सेंट परसेंट सही है.’ थोड़ी बौखलाहट के साथ बोलेसाई जी.‘आगे कहिए साई जी.’ हमेशा की तरह किंशु बोला.‘हां, तो खोरागोह के जंगल में हजारों तरह की जड़ी-बूटियां जिन्हें खाकर टार्जन-सी ताकत आ जाए. फिर तो आदमी हाथी को भी पछाड़ दे.’‘ पर चींटी से हार जाए!’ पिनाकी ने वाक्य पूरा किया.‘किंतु जंगल में जड़ी-बूंटियां ड्राइंगरूम के गुलदस्ते सी तो सजी रहती नहीं कि मनमें आया और एक फूल उठा कर सूंघ लिया. पेड़ों की जड़ों, पत्थरों के नीचे औरनदियों के किनारों में उन्हें खोजना पड़ता है. और इन खोजों में जड़ी-बूटियां तो कममिलती है, सांप, बाघ और मगरमच्छ ज़्यादा दिखाई देते है. जड़ी-बूटियों कोआसानी से परखने के लिए ही मैंने यह विशेष ऐनक बनवाई थी. इसके शीशे सेवस्तु सात-आठ गुना बड़ी दिखाई देती है. तभी तो शेर को देख कर मैंने नाक मोड़ीतो वह समझा कि मैं हाथी हूं.’‘क्या? क्या? ’ चारों बच्चे एक साथ चिल्लाए.यस! और जब मुंह लंबा कर, दांत निकाल कर जमीन में लेट गया तो वह शेर चारकदम पीछे हट गया-यह सोच कर कि मैं मगरमच्छ हूं. फिर मैंनें आंखें गोल करकेनाक सिकोड़ ली थी, ताकि वह समझे कि मैं गैंडा हूं’हैरान-परेशान चारों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे. किसी की समझ में कुछ न आरहा था कि साई जी क्या कह रहे हैं, सो मोंटी का इशारा पा कर पिनाकी गलाखूंखार कर बोला, ‘साई जी, जरा भावार्थवाली भाषा में समझाइए.’‘व्हॉट डू यू मीन बाई भावार्थ वाली भाषा?’ साई जी कुटिलता से मुस्कराते हुएबोले, ‘ट्रूथ इज हरदम डिफिकल्ट टू अंडर स्टैंड एंड फॉलो. खैर.... बात ऐसी थीकि खोरोगोह से सत्तासी किलोमीटर दूर पहुंच गया था जड़ी-बूटियां खोजता हुआ. इतनी अच्छी और कीमती जड़ी बूटियां मिल रही थी कि मैं थैले से सामान फेंककर जड़ी-बूटियां भर रहा था. खाना तक फेंक दिया था जोश में आ कर, स़िर्फ रखछोड़े थे एक दर्जन काले पान. ऐसे पान, जिन को खाने से न तो भूख लगती है औरन ही प्यास. और आगे बढ़ा तो ऐसी दुर्लभ जड़ी हाथ लगी कि रिवॉल्वर भी फेंकनेको बाध्य होना पड़ा. दरअसल, थैले और चारों जेबें जड़ी-बूटियों से ठसाठस भरगई थी. लगता था तीनों सालों की मेहनत सफल हो गई. तभी तो वक्त की परवाहनहीं की थी मैंने, हालांकि भेड़ियों के झुंडों के गुर्राने की आवाजें साफ सुनाई देनेलगी थी. तब आकाश में तारे भी निकल आए थे.’‘दिन में ही?’ मोंटी ने यों कहा, जैसे बहुत हैरानी हुई हो. ‘दिन नहीं, रात में. तभी एकाएक पीछे से एक शेर दहाड़ उठा था और उसे देखते हीमैं स्वयं से बोला था- साई, अब अंत समय आ पहुंचा है, पर मन में छिपी बैठी उसअदृश्य इच्छा शक्ति ने मेरी एक बार फिर सहायता की थी. कानों में जैसे किसी नेफुसफुसा कर कहा था-साई, हिम्मत दिखा और शेर को दौड़ में पछाड़ दे. मैं तुरंतही दौड़ पड़ा था. आगे-आगे मैं और पीछे-पीछे शेर, आधी रात तक हम दौड़ते रहे. घाटियां, पहाड़ियां और नाले पार करते दोनों ही हांफ गए. तब सामने पड़ा बरगदका पुराना वृक्ष. फौरन ही उसकी जटाओं पर लपक कर पेड़ पर जा चढ़ा था. पीछे-पीछे हांफता हुआ शेर भी आ पहुंचा था और वहां आ कर उसने जो भयानकदहाड़ लगाई थी.... बाप रे, बाप! पेड़ पर बैठे ढाई सौ गिद्ध घबरा कर तुरंत ही उड़गए थे.’‘तब?’ रेवा ने कहानी आगे बढ़ाने के इरादे से पूछा.‘सारी रात शेर पेड़ के नीचे बैठा इंतजार करता रहा कि मैं नींद के झौंके में नीचेगिरूं और वह मुझे मुंह में डाले. इधर मैं भी एक लाल जड़ी चबाता सोचता रहा किशेर को कैसे मजा चखाऊं. अंतत: जब पेड़ के नीचे बैठा-बैठा ही सो गया औरखर्राटे भरने लगा, तब मैंने ऐनक में बांधा एक लंबा धागा और उसे नीचे लटका करदो-तीन बार प्रयास कर शेर को पहना दिया. थोड़ी देर बाद जब शेर की नींद टूटीऔर उसने आंखें खोली तब ऐनक से उसे कुछ बड़ा अजीब-सा लगा. और उसनेऊपर मेरी तरफ ज्यों ही देखा मैंने बंदर जैसी घुड़की से डरा डाला. बेचारा तुरंत हीडर कर भागने लगा. उत्साह में मैं नीचे उतर आया... पर यह क्या? एकाएक शेरपीछे लौटने लगा. अब मैं घबराया-अगर कहीं झपट पड़े तो? मैंने फौरन ही मुद्राबदली और नाक लंबी खींच कर उसे हाथी का धोखा देने लगा. पहले तो वह थोड़ाभागा, पर फिर लौट कर मेरी तरफ बढ़ने लगा. शायद वह अंदाज लगा रहा था किमुझसे भिड़ने की उसमें शक्ति है या नहीं. पर भाई, मेरी हालत सचमुच में खराबथी. कई जानवरों की खतरनाक मुद्रा में प्रस्तुत हुआ मैं....पर भला शेर कहीं किसीसे डरता है. वह तो जंगल का राजा होता है. उल्टे सब उससे डरते हैं और घबरातेहैं. अत: सोच-समझकर, एक पान मुंह में डालकर मैंने एक विचित्र जानवर कीकल्पना करते हुए खूंखारपन लिए, दांत फैलाए, जीभ बाहर निकाल ली, आंखेंगोल बड़ी-बड़ी की और नाक-कान हिलाने लगा. इस मेहनती कसरत से मेरे शरीरसे पसीना छलक आया, पर सौभाग्य से शेर अत्यंत भयभीत हो आंख मींच करभागता हुआ एक पहाड़ी से जा टकराया. पहाड़ी से टकरा कर वह पीछे पलटा तोएक गहरी खाई में जा गिरा और वहां गिर कर मर गया. इस तरह मैंने खड़े-खड़े शेरको मार दिया. फिर उसे उठा कर, अगली रात को, उस गांव में जा पहुंचा था जहांमेरे दूसरे भारतीय साथी भी रहते थे.’‘वाह साई जी, वाह! इतने आसान तरीके से शेर का शिकार.’ पिनाकीआत्मविभोर हो उठा, ‘जी में आता है अभी निकल पड़ूं इस ऐनक को ले कर औरसर्कस में जा कर किसी शेर का शिकार कर डालूं.’‘ तो.....साई जी, जब शेर को कंधे पर उठाए आप वहां पहुंचे होंगे, तब तो आपकेसाथियों में खलबली मच गई होगी. जोरदार स्वागत किया होगा उन लोगों नेआपका.’मोंटी ने उत्कठां भरे शब्दों में पूछा.किंतु साई जी को उदास कर डाला मोंटी के शब्दों ने. दुख के अथाह सागर में डूबतेजैसे शब्दों में बोले साई जी, ‘ भाग्य ही विपरीत रहा है साई का सदैव. रात कोशेर को मवेशीखाने में डाल कर सोने चला गया था. सोचा था, सुबह ही विस्तार सेबात करूंगा. किंतु सुबह मेरे उठने से पहले ही उन कमबख्तों ने उस शेर को वहां सेउठा कर एक मरी बिल्ली वहां रख दी और शोर मचा दिया कि साई जी ने बिल्लीमार दी है.‘अरे!’ यह किंशु था.‘हां, बदमाशों ने इतने पर ही दम नहीं लिया. मुझे बिल्ली -हत्या के पाप से बचानेके लिए सोने की बिल्ली भी पंडित को भेंट करवाई. उफ...रोने को जी चाहता है उन दिनों की याद करके.’‘ तो साई जी, हम सब मिल कर रोएं. हमारा भी रोने को जी चाह रहा है.’ शरारतीपिनाकी बोला.लेकिन दु:खी साई जी इन सबको अनसुना कर खिड़की पर जा खड़े हुए औरबच्चों ने देखा कि उनकी आंखों से टप-टप आंसू झर रहे हैं.......................................................... 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