Lal haddi ka rahashy book and story is written by SAMIR GANGULY in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Lal haddi ka rahashy is also popular in Children Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
लाल हड्डी का रहस्य
by SAMIR GANGULY
in
Hindi Children Stories
सचमुच ही हड्डी ने तीन रंग बदला था. सुबह यह सफेद आम हड्डियों जैसी ही थी, लेकिन दोपहर होते-होते उसमें पीलापन आने लगा था और अब रात के दस बजेयह चटक खूनी लाल रंग से चमक रही थी.चांज-दल के ...Read Moreविशेष भूमिगत अंडाकार कमरे में वह पांच पुलिस अधिकारियोंएवं विशेषज्ञों के सामने लाल हड्डी की आतंक कथा सुनने को तैयार बैठा था.सन्नाटा यों छाया था कि सुंई के गिरने की आवाज भी सुनाई दे जाए. विभिन्नकोणों पर फिट सात टेपरिकॉर्डर उसकी आवाज को कैद करने को बेताब थे औरवह भी पीला-गमगीन चेहरा लिए इस कहानी को सुना कर हड्डी से छुटकारा पाकरचला जाना चाहता था.‘‘ श्रीमान!’’ तीन सितारों से सम्मानित मुख्य अधिकारी का इशारा पाते ही उसनेबोलना आरंभ किया, ‘‘परिवार में हम चार थे, मैं पत्नी, सात वर्षीय बच्ची बूंदीऔर साढ़े तीन फुट ऊंचा कुत्ता जबर. जबर को लोग खूंखार भी कहते थे. काले रंगका हमारा कुत्ता आसपास के समुद्री इलाके में अपनी तरह अकेला था. यकीनकीजिए, उसे लोगों ने समुद्र में तैरते भी देखा था. जबर के खाने की हमें कभी चिंतानहीं करनी पड़ी. वह रोज ही मछली, खरगोश, या मुर्गाबियां मुंह में दबाए लौटताथा.‘‘ पर उस मनहूस रात को जब वह लौटा, तो उसके मुंह में यह लाल हड्डी थी. हाय, बेचारा नासमझ जबर अपनी मौत को ही उठा कर ले आया था. रात के ग्यारह बजेवह पहली बार चीखा था. श्रीमान, देखिए ग्यारह बजने वाले हैं और हड्डी मेंहलचल शुरू हो गई है.’’सचमुच अजीब बैंगनी सी हो चली हड्डी ऐंठने लगी थी. भय की एक लहर कमरे मेंछा गई थी.एकदम बायीं ओर बैठे नाटे कद के रसायन विशेषज्ञ ने तुरंत ही उठ कर मरतबानमें पानी भर दिया और मुस्कराकर मुख्य पुलिस अधिकारी की ओर देखा. पानी मेंडूबी हड्डी अब बेबस थी.एक पल रूक कर वह बोला, ‘‘आदमी बुरे वक्त में जानबूझ कर अन्जान बनारहता है. सब कुछ देख कर भी अंधे होने का ढोंग करता है. मेरे साथ भी ऐसा हीहुआ. मेरा जबर चीख रहा था, तड़प रहा था, पर मैं उसे देखने बाहर नहीं निकला. हां, सुबह सबसे पहले मेरी पत्नी ने उसे देखा. तब तक वह मर चुका था.उसकीगर्दन में एक छेद था और सामने ही पड़ी थी, फूली हुई यह लाल हड्डी, हड्डी अपनेआकार से पांच-छह गुना फूली हुई थी उस वक्त! वो देखिए श्रीमान, हड्डी कीहरकत देखिए.’’ पांच जोड़ी आंखें पानी भरे मरतबान की ओर घूम गई. सचमुच पीलेपन की ओरमुड़ती हड्डी पहले से ज़्यादा मोटी दिखाई दे रही थी.मेज पर रखे पानी के गिलास को एक सांस में गटकते हुए वह बोला, ‘‘ हमारे यहांमरे हुए को जमीन में दफनाया, या जलाया नहीं जाता, समुद्र में फेंक दिया जाताहै. मैंने भी जबर की देह को समुद्र के हवाले कर दिया और साथ ही उस हड्डी कोभी. इसके बाद दो महीने बिना किसी अनहोनी के बीत गए. मैं भी हड्डी-वालीदुर्घटना को लगभग भूल ही गया था, लेकिन तभी उस दिन....उस दिन डोंगा गांव में आदिवासियों का मेला था. बच्ची मेला देखने का हठ करनेलगी. मैं उसे ले गया, सुबह से शाम तक हम मेले में घूमते रहे.बच्ची उस दिन बड़ीखुश थी. वह झूले पर झूली, घोड़ा-चर्खी पर घूमी. हमने भेल-पूरी और खूबजलेबियां खाई. वापसी में उसने गुड्डे-गुड़िया का सुंदर-सा जोड़ा खरीदा. ‘‘ दिन भर के थके-हारे हमें घर जाते ही नींद आ गई. हां, उस समय भी वक्तग्यारह के आसपास का ही रहा होगा, जब बच्ची पहली बार ताकत से चीखी थी. मैंने फौरन बत्ती जलायी और उस भयानक दृश्य की कल्पना से मैं आज भी कांपउठता हूं श्रीमान! गुड़िया के पेट से निकल कर वही लाल हड्डी अब मेरी बच्ची कीगर्दन से खून चूस रही थी. मेरे शोर बचाने और हाथ-पांव चलाने पर हड्डी उसकीगर्दन से छूट तो गई, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मेरी बच्ची अब इस दुनियामें नहीं थी.’’गतिशील टेपरेकॉर्डरों और कैमरों की महीन आवाजें उस व्यक्ति की कहानी कोभयानकता के संगीत से बांध रही थी और दाएं से तीसरी कुर्सी पर बैठे नौजवानपुलिस अधिकारी को हल्का-सा डर भी लग रहा था. लेकिन मुख्य पुलिसअधिकारी बिल्कुल भावहीन चेहरा लिए उसकी बातें सुन रहा था. किसी बड़े-सेबड़े मनोवैज्ञानिक के लिए भी यह संभव नहीं था कि वह मुख्य पुलिस अधिकारीके मन के भाव जान सके.टेलीफ़ोन की घंटी एकाएक घनघना उठी. मुख्य पुलिस अधिकारी ने फुर्ती से चौंगाकान से सटा लिया और इशारे से उस आदमी को अपनी कहानी जारी रखने कोकहा.गला खंखार कर उस आदमी ने आगे कहानी शुरू की. वह बोला, ‘‘ बच्ची की मौतसे हमारा दिल टूट गया. हमारे लिए जीवन का अब कोई महत्त्व न था. कोई इच्छा-आकांक्षा शेष न रही.तीर्थों-तपोवनों की यात्रा पर हम निकल पड़े, संसार की मोह-माया का त्याग करके. किंतु दुर्भाग्य यहां भी आ पहुंचा हमारा पीछा करते-करते....क्या आप लोग विश्वास कर सकते हैं कि लाल हड्डी ने इस बार मेरी पत्नीको अपना शिकार बनाया.हुआ यों कि दुर्गम-देव की यात्रा के दौरान हम एक धर्मशाला में ठहरे थे. गर्मी कामौसम था, अत: छत पर सोए थे. रात को एक उल्लू लगभग आधे घंटे तक हमारेचारों ओर चक्कर लगाता रहा और फिर कोई चीज मेरी पत्नी के बिस्तर परगिराकर गायब हो गया.हाय रे दुर्भाग्य, तब मैं क्यों नहीं समझ सका कि वह चीज वही लाल हड्डी ही थी. मेरी पत्नी हद से ज़्यादा सहनशील थी,इसलिए उसने लाल हड्डी को कुछ देरबर्दाश्त किया, पर अंत में वह भी चींख पड़ी. उसकी चींख सुन कर ही लाल हड्डीका संदेह हो आया था और जब मैंने उसे उसकी गर्दन में गड़ा पाया,तब तो मेरेप्राण ही सूख गए.आप लोग सोच रहे होंगे मैं इतने बड़े हादसे को इतनी सरलता से कैसे कह पा रहाहूं? श्रीमान मैं इतना ही कहूंगा कि जब दुख सीमा को पार कर जाते हैं, तो आदमीकी भावनाएं मर जाती है.जब मनुष्य अच्छे की आशा को भूल चुका होता है, तबबुराई का उस पर कोई असर नहीं होता.पत्नी के साथ मैंने आठ वर्ष का जीवन जीया था, उल्टे मुझे लगा कि यह तो शायदअच्छा ही हुआ. अबकी बार इस हड्डी को मैंने जमीन में चार फुट गहरा गड्डा खोदकर गाड़ दिया.इसके बाद मैं एक लंबी यात्रा पर निकला. पिछले तीन महीनों से एक जलयान‘कुंभा’ में था. रात को ‘बिजली मछलियों’ की रोशनी में समुद्र के भीतर झांकनाऔर नई-नई चीजें देखना मुझे अच्छा लगता था. इसीलिए मैं राद देर गए तक डेकपर अकेला खड़ा रहता था.उस रात ‘बिजली मछलियों’ की संख्या भी खूब थी. सो पानी के भीतर उजालाथा... और श्रीमान, इसी उजाले में मैंने देखा कि वही लाल हड्डी तैरती हुई हमारेजहाज के साथ-साथ चल रही है. मैं डरपोक नहीं हूं, पर उसे देखते ही मेरा रोम-रोम सिहर उठा.मैं तीन घंटे बाद फिर डेक पर आया, तो देखा वह अब भी जहाज के समानांतर हीतैर रही है. पर इस बार मैं भी खाली हाथ नहीं था. मेरे हाथ में जाल था. मैंनेनिशाना लगा कर जाल पानी में फेंका और इस कमबख्त हड्डी को कैद कर लिया. पांच दिन बाद जब जलयान किनारे लगा, तब मैं सीधे पुलिस स्टेशन गया. जहां सेआज आपके सम्मुख पहुंचाया गया. बस इतनी ही है मेरी कहानी’’उसके चुप होने ही मुख्य पुलिस अधिकारी जोर से हंस पड़े, हा-हा-हा! ‘‘ फोन कारिसीवर अभी भी उनके हाथ में ही था.सभी की आंखें प्रश्नमुद्रा में उनकी ओर घूमगयी. मुख्य पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति की ओर देखते हुए बोले, ‘‘ शेखर बाबू, सचमुच आप ऊंचे कलाकार हैं. आपकी कहानी पर कोई विश्वास कर सकता है. क्योंकि इस पर फिल्म बनने में अभी कम-से -कम चार वर्ष लगेंगे, और तब तकआप मेनका देवी का सारा रूपया-पैसा लेकर कहीं भी हवा हो सकते हैं.’’‘‘ क्या कहते हैं आप?’’ अजनबी की आंखों में डर आ समाया था.‘‘ हां, सिनेमा आर्टिस्ट शेखर बाबू, आपने मेनका देवी कर खून किया, और उनकेसाथ बनने वाली आपकी अनोखी फिल्म ‘लहू प्यास है उसकी’ की कहानी हीआपने हमें सुनाई है. पर आपको यह जान कर दुख होगा कि इस कहानी केलेखक श्री निशेष हजारिका मेरे अच्छे मित्रों में से हैं और सात वर्ष पूर्व मेरे यहां हीठहर कर उन्होंने यह कहानी लिखी थी. तभी मैंने उन्हें टोका था कि आदिवासी मेलेमें बच्ची को भेलपूरी खिलाने की कोई तुक नहीं है, पर वे भी बड़े जिद्दी हैं. पिछलेसाल ही उन्होंने पत्र में लिखा था कि उनकी इस कहानी में आप मुख्य भूमिकानिभाएंगे. लेकिन तब मुझे उम्मीद नहीं थी कि एक रोल मुझे भी करना पड़ेगा.’’ अपनी बात पर मुख्य पुलिस अधिकारी खुद ही हंस पड़े, ठहाका लगा कर. फिरशेखर बाबू की ओर चुपचाप देखने लगे.शेखर बाबू समझ चुके थे कि पुलिस कीनाक के नीचे छिपे रहने का उनका प्रयास विफल हो चुका था और अब कोई भीड्रामा उन्हें खून के इल्जाम से बचा नहीं सकता था. अत: वे चुपचाप उठ खड़े हुएऔर सिर झुकाते हुए बोले, ‘‘ यस जेंटलमैन, मैं खूनी हूं. मैंने दो करोड़ रूपएहड़पने के लिए ही प्रख्यात अभिनेत्री मेनका देवी का खून किया. मैं. समझता थाकि वेश बदल कर पुलिस को उलझा कर मौका मिलते ही देश छोड़ कर निकलभागूंगा. पर मैं हार गया. आप मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं.’’‘‘ लेकिन शेखर बाबू, आपको यह हड्डी कहां से मिली?’’ नौजवान पुलिसअधिकारी ने बचपना दिखाते हुए पूछा. आज वह पहली बार अपने प्रिय हीरो कोआंखों के सामने देख रहा था.‘‘ दोस्त, यह कोई हड्डी नहीं, रासायनिक पदार्थों का चमत्कार है.’’‘‘ अच्छा तो चलिए शेखर बाबू, बाहर गाड़ी खड़ी है.’’ मुख्य पुलिस अधिकारीशेखर बाबू को लेकर कमरे से बाहर निकल गए......और शेष कुर्सियों पर बैठे चारों विशेषज्ञ एवं पुलिस अधिकारी ठगे-से रह गए. सामने मरतबान में रखी हड्डी में अब न कोई हलचल थी और न ही उसका रंग लालथा. 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