Ramdoot ko namaskaar book and story is written by SAMIR GANGULY in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ramdoot ko namaskaar is also popular in Children Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रामदूत को नमस्कार
by SAMIR GANGULY
in
Hindi Children Stories
किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि साई जी ऐसा करेंगे.काले मुंह वाले भयानक लंगूर को देख स्वयं को भूल, ‘रामदूत प्रणाम’ कहते हुएरिक्शे से कूद कर उससे लिपट पड़ेंगे, ऐसा कौन सोच सकता था.पर ऐसा हुआ. ...Read Moreउस लंगूर ने पूरी बर्बरता के साथ साईजी के थोबड़े को अपनेदांतों और थप्पड़ों से बिगाड़ डाला और उनके कपड़े तार-तार कर डाले.भरे बाजार में मोंटी, पिनाकी, किशु और रेवा की तो हालत खराब हो गई. लोगोंकी भीड़ भी तुरंत जमा हो गई. और ऐसी भीड़ में लोग भला साई जी को नपहचाने!लगे लोग वहीं पर साई जी का मजाक उड़ाने. एक-दो ने यहां कि कह डाला कियह गप्पी महाशय अपनी ताजी गप्प सुनाने के लिए भीड़ जमा कर रहे हैं.सचमुच ऐसा मोंटी को भी लगा था एक बार. पर यह बात शायद बेहोश साईजी नेभी सुन ली हो, और वे उठे नहीं. अंतत: चारों बच्चों को ही उन्हे रिक्शे पर लिटा करघर लाना पड़ा.वक्त लगा साईजी को होश में आने में. होश में आते ही वे चिल्ला पड़े, ‘कहां गएरामदूत, मेरे प्राण रक्षक! कहां गए मेरे भाग्य देवता! हनुमान जी को तीन-चारदर्जन केले खिलाओ, मोंटी खर्चा सारा मेरा होगा.’सभी चौंके, ‘ऐं’ कंजूस साई जी ने पहली बार खर्चे-वर्चे की बात कही थी.‘रक्षक न भक्षक!’मोंटी ने जलभुन कर कहा ‘बंदर से लिपटने की आपको सनकक्यों सवार हुई? वह तो भीड़ को देख कर भाग गया, वरना आज.....‘हरे-हरे-राम-राम.’ अपनी चोटों को सहलाते हुए उठ बैठे साई जी. बोले,‘ प्रियजनो, तुम्हें अगर स्नेकेंटवाली बात मालूम होती तो शायद यह सब तुम्हें अजीबनहीं लगता. और वे घटना अगर तुम्हारे साथ घटती, तब तो शायद तुम...खैर छोड़ोमुझे क्या...?स्नेकेंटवाली कौन सी बात साई जी? रेवा ने पूछा.‘सेब से संबंध है उसका’ साई जी तटस्थ भाव से बोले, ‘सेब से? साई जी पूरीबात बताइए न? यह किंशु का आग‘ह था.‘ तो सुनो...’ पिनाकी ने साई जी की नकल की.लेकिन उसे अनसुना कर साई जी अपनी आंखें बंद करते हुए कुछ सोचने-से लगेऔर तब उन्हें खोलते हुए धीरे-धीरे बाले, ‘घटना स्थल है जाफिरिया, जहां सेसंसार भर में सर्कस के लिए बंदर सप्लाई किए जाते हैं.’‘डिब्बाबंद? मोंटी फुसफुसाया.‘लेकिन मुझे जाफिरिया भेजा गया था सोने की खानों का पता लगाने के लिए. तुम लोग जरूर चौंक रहे होंगे कि साई जी को सोने की खान का पता लगाने कोभेजा गया. पर बात सौ फीसदी सही है. मैंने तुम्हें आज तक नहीं बताया था कि मेरेपास एक अद्भुत शक्ति है. मैं किसी भी जगह की जमीन को नाक से छू कर बतासकता हूं कि वहां अस्सी मीटर नीचे क्या दबा होगा?‘जैसे मिट्टी-पत्थर...यही न साई जी? मोंटी ने शरारत की.‘नहीं. यह तो कोई भी बता सकता है.’साई जी बोले, ‘कहां कौन-सी खनिज धातुहै... कहां कोयला है और कहां डायनासोर व हिम-हाथियों के कंकाल छिपे पड़े हैं. मैं यह सब बता सकता हूं.’‘तब तो साई जी आपने बर्फीले ध्रुव प्रदेशों की खूब यात्राएं की होंगी?’ किंशु नेउत्सुकता से पूछा.‘हां, पहले दो-तीन बार गया था, पर एक बार जब बार बार छींक आने वालीबीमारी ने परेशान किया, तब से कान पकड़ लिए.’‘छींक आनेवाली बीमारी?’‘हां, बर्फीले इलाकों की बीमारी है. उसके बारे में फिर कभी तुम्हारा ज्ञान-वर्धनकरूंगा...तो जाफिरिया मुझे भेजा गया. यह बड़ी अजीब जगह है. इसे मनुष्य सेअब तक गुप्त रखा गया है, फिर भी हर साल कुछ मनुष्य वहां जाते हैं और मरजाते हैं.’‘मतलब?’ रेवा को हैरानी हुई.‘मतलब-स्नेकेंट’. साई जी अपना चुरूट जलाते हुए बोले.‘माइक्रोस्कोप से देखने पर सांप की शक्ल का जीव है. यह जानवरों के शरीर मेंघुस कर उनकी हड्डियों को खोखला कर देता है और साथ ही फैलाता है एकअजीब बीमारी, जिसमें रोगी अपने दांतों से अपने ही शरीर को चबा-चबा कर खानेलगता है. जाफिरिया जाते वक्त मुझे सख्त हिदायद दी गई कि मैं सरकार द्वारानियत दिनचर्या का कड़ाई से पालन करूं. यानी किस वक्त खाना, किस वक्तसोना और किस वक्त कहां और क्या काम करना है. यकीन मानो, उस निर्जनइलाके में जमीन पर नाक टिका-टिका कर चार दिनों में ही थक गया. सोना तो दूर, कोयले की भी संभावना नहीं दिखी. पर हां, भावी भूकंप या अदृश्य ज्वालामुखी केफूटने के खतरे कई जगह मैंने जरूर महसूस किए.’‘पांचवें दिन सोचा, सोना न सही क्यों न स्नेकेंट की खोज की जाए. यकीन मानो, पूरे दो सप्ताह की लगातार खोज के बाद भी एक स्नेकेंट भी न ढूंढ निकाल सका. तब निर्णय ले बैठा था कि स्नेकेंट कुछ नहीं, आदिवासी कबीलों द्वारा फैलायागया अंधविश्वास है. फिर एक दिन जाफिरिया के सघन वन में जा घुसा, वहां कीप्राकृतिक संपदा का अनुमान लगाने.’काफी समय से चुप पिनाकी बोला, ‘निहत्थे साई जी?’‘नहीं, गोलियों सहित....होमियोपैथी की’ मोंटी ने जवाब दिया.‘बकवास.’ साई जी बौखला उठे. ‘तुम लोग होते, तो उस जंगल की शतरंज मेंपहली चाल में ही मात खा जाते. सोचो जरा-तुम सामने पहुंचो और अंडे से‘धड़ाम’ के शोर के साथ आधे फुट का बिच्छू बाहर निकल कर तुम पर टूट पड़े. उसे मारने के लिए लकड़ी तोड़ो, तो उसमें से आग निकलेगी. पत्थर उठाओ तोसारा हाथ जल उठेगा. और जंगल में सेब, अन्ननास, अनार, केलों के लदे वृक्ष. बोलो आएगा न लालच?‘पर साई जी, लालच बुरी बला.’ किंशु ने चहक कर कहा.‘करेक्ट.’ साई जी ने स्वीकार किया. ‘‘ मैं भी थोड़ी देर को पड़ गया था लालच में. पर रामदूत ने दया की मुझ पर. मुझे मरने से बचा लिया. नमस्कार है रामदूत को.’‘वह कैसे साई जी?’ रेवा ने पूछा.दरअसल सेबों से लदे वृक्ष को देखकर मेरी भूख बढ़ गई थी और लालच जाग उठाथा. मैंने पेड़ से एक सेब तोड़ा और ज्यों ही उसे दांत से काटना चाहा, त्यों ही पीछेकहीं से एक काले विशालकाय लंगूर ने मेरे हाथ में झपट्टा मार कर सेब छीनलिया. मैं हक्का-बक्का. यहां सारे पेड़ लदे हैं, फल-फूलों से! और यह शैतान उनसबको छुए बिना मुझ शरीफ से भिड़ रहा है. जी में आया उसे गला घोंट कर मारखत्म कर दूं. पर जब देखा कि सेब को हाथ में लिए रखने के बावजूद वह उसे खानहीं रहा है और बार-बार मेरी तरफ देख रहा है, तब कुछ खटका सा हुआ. मुझेअपनी ओर देखते देख, वह एक प्राकृतिक कुएं की ओर बढ़ गया और वहां उसनेउस सेब को फेंक दिया. ‘बदतमीज? ’हां, यही शब्द सोचा था उस वक्त मैंने उसकेलिए. खैर, पेड़ से दूसरा सेब तोड़ा, पर लंबी कूद के साथ झपट कर उसने वह सेबभी छीन लिया और उसे भी कुंए में फेंक आया. इस तरह पांच-छह सेब पेड़ से तोड़ेऔर उसने सारे के सारे छीन कर कुएं में फेंक दिए.अब मेरे दिल में खटका हुआ. स्वयं से ही बोला साई, समर्थिंज इज रांग. फटाफटजेब से चाकू निकाला और सेब तोड़ कर उसके दो टुकड़े किए. अरे, बाप रे बाप! उछल पड़ा मैं चौंक कर. सेब के भीतर नन्हा स्नेकेंट दुबका बैठा था. बाहर की हवापाते ही ऐंठने और उछलने लगा. मैंने तुरंत ही उस सेब को भी कुएं में फेंक किया. उस कुंए में हजारों स्नेकेंट बिलबिला रहे थे.‘अब मैंने लंगूर की तरफ एहसान की मुद्रा में देखा. वह लंगूर हंस रहा था. तुमनेकिसी जानवर को कभी हंसते नहीं देखा होगा’.‘मैंने रामदीन के गधे को देखा था एक बार हंसते हुए.’ मोंटी शैतानी से बोला.‘तुम्हें गधे को देखकर नहीं बल्कि आयने को देखकर गलतफहमी हुई होगी.’ साईजी चिड़ कर बोले.‘उसके बाद क्या हुआ, साई जी? किंशु ने पूछा‘उसके बाद? लंगूर का मैंने पीठ थपथपा कर शुक्रिया अदा किया था और उसेअपने कैंप में ले आया था. अब वह मेरा प्राण-रक्षक, मेरा साथी बन गया था. उसनेसोने की खान खोजने में मेरी बहुत सहायता की और दूसरे भी कई भयानक खतरोंसे मेरी जान बचायी. महान था रामदूत... जब मैं देश लौटा तो साथ लेता आयाथा.आदमी से भी ज़्यादा सभ्य था वह.’ साई जी इतना कहकर चुप हो गए. शायदअपनी बात वह कह चुके थे.किंतु मोंटी अपने को चुप न रख सका. वह उत्सुकता से बोला, ‘साई जी, आपकाब्लैक मंकी तो ग्रेट चीज होगी. सारे मुहल्ले के लोग उसे देखने आते होंगे औरअखबारों में भी उसके किस्से....’‘अरे वह सब कहां?’ साई जी बुझे स्वर में बोले, ‘वीर पुरूष के दुश्मनों की भी तोकमी नहीं होती. सब जलते हैं उनसे...मेरे बारे में किसी ने पुलिस से शिकायत करदी कि मैं कहीं से एक चालाक बंदर खरीद लाया हूं, जो रात को लोगों के घर घुसकर चोरी करता है. फिर पुलिस के सिपाही एक दिन एक गाड़ी लेकर आए औरमेरे रामदूत को पकड़ कर ले गए. बाद में पता चला कि उसे जंगल में छोड़ दियागया. बस तभी से मैं हर लंगूर को ही रामदूत समझ कर गले लगा लेता हूं. पतानहीं मेरा रामदूत आज जिंदा भी है या नहीं. साई जी की आंखें नम हो आई यहसब बयान करते हुए.सब सुन बच्चों को भी साई जी पर दया हो आई और सबने एक लय में मुंह से‘च्च..च्च...च्च’ की संगीतमय ध्वनि निकाली........................................................................................ 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