Parinda by sadik khan in Hindi Poems PDF

परिंदा

by sadik khan in Hindi Poems

कुछ दुआ तो कुछ बधदुआओं ने मारा मुझे तो इस शहर की हवाओ ने मारा जो कुछ रहे गया था बाकी मुझमें वो सब हसीना की बलाओं ने मारा वो देखकर अक्सर मुस्कुरा दिया करता है कुछ ...Read More