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कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर - 12

कुछ गाँव गाँव कुछ शहर शहर

12

एकदम डांस के फ्लोर से नीचे उतरते हुए वीणा की निगाह सामने खड़ी निशा पर पड़ी तो वह गिरते हुए बची।

"निशा तुम यहाँ कैसे..." उसने लड़खड़ाई आवाज में पूछा। वीणा की साँसों से शराब की गंध आ रही थी।

"यही तो मैं तुम से पूछने वाली थी कि तुम और यहाँ। वह भी ऐसी हालत में। और हाँ... मिलवाओगी नहीं अपने दोस्त से...।"

"कौन ये... यह मेरा दोस्त नहीं केवल आज के लिए डांस पार्टनर है। मैं तो इसका नाम तक नहीं जानती...। अब तुम भी इस स्थान पर आ गई हो तो धीरे धीरे सब सीख जाओगी।" निशा को स्वयं से घृणा होने लगी कि वह ऐसी जगह आई क्यों। माता पिता इतने शरीफ और बेटियाँ... छीः...

यह सच है कि माता-पिता अपने बच्चों को हर सुख सुविधा दे सकते हैं। अच्छे संस्कार देने की कोशिश करते हैं परंतु आँखों की शर्म और लिहाज एक ऐसी वस्तु है जिसे स्वयं कमाना पड़ता है।

निशा को सोच में देख कर वीणा बड़े प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली... "निशा अब तुम सब कुछ जान ही गई हो तो प्लीज मेरे घर में किसी से कुछ मत कहना नहीं तो मेरे पापा मुझे मारने से पहले खुद ही मर जाएँगे... और हाँ निशा इस बारे में तुम अपनी मॉम से भी कोई बात नहीं करना।"

"चलो मैं तो अपनी जुबान बंद रखूँगी वीणा लेकिन इतना समझ लो कि लॉफ़्बरो छोटी सी जगह है। आज मैंने तुम्हें इस हालत में देखा है कल किसी और की भी निगाह पड़ सकती है तब क्या होगा। अभी भी समय है कि तुम भी सँभल जाओ और अपनी बहन को भी सँभालो...।"

"मेरी बहन... क्या हुआ जयश्री को।"

"यह तुम उसी से पूछना मेरा काम नहीं है इधर की बात उधर करना।"

"निशा तुम कितनी तकदीर वाली हो जो तुम्हें इतनी अच्छी और समझदार मॉम मिली हैं हमारी माँ तो..."

"यहीं रुक जाओ वीणा... निशा ने उसको बीच में ही टोक दिया...। माता पिता किसी के भी खराब नहीं होते यदि बच्चों के ही कदम बहक जाएँ तो वे बेचारे क्या करें..."

"ऐसी बात नहीं है निशा... तुम्हें क्या मालूम कि हमारे ऊपर दुनिया भर की बंदिशें हैं... ऐसे कपड़े मत पहनों, लड़कों से बात ना करो, लड़कियों के लिए मांसाहारी भोजन खाना पाप है... यहाँ तक कि हमें कच्चा प्याज खाने तक की मनाही है कि कहीं हमारी प्रवृति तामसी ना हो जाए। तुम क्या सोचती हो कि मुझे छुप कर यह सब करना अच्छा लगता है।"

"अच्छा नहीं लगता तो क्यों करती है... उधर तुम्हारी बहन भी... घर से कुछ कपड़े पहन के आती है और स्कूल में कुछ और ही दिख रही होती है। पता नहीं अपनी सिगरेट वाली साँसें वह घर वालों से कैसे छुपाती होगी। वह तुम्हारे से भी दो कदम आगे बढ़ रही है वीणा सँभालो उसे।"

"जानती हो निशा कभी-कभी तो हम दोनों बहनों को तुम्हें और तुम्हारी मॉम को देख कर बहुत जलन होती है। आंटी तुम्हें कितना समझती हैं। तुम्हें भी गोरी लड़कियों के समान ही आजादी है। अभी तुम मात्र 18 वर्ष की ही हुई हो और तुम्हारी मॉम ने तुम्हें नाइट क्लब आने की अनुमति दे दी। मैं 23 वर्ष की हो चुकी हूँ निशा... कहाँ तक अपनी इच्छाओं का दमन करती रहूँ।"

निशा सोचने लगी... आवश्यकता से अधिक बंदिशें भी अपने ही बच्चों को बागी बना देती हैं। डोर उतनी ही खींचनी चाहिए जो टूटे नहीं। इस बदलते माहौल के साथ यदि माता पिता की सोच भी थोड़ी बदल जाए तो उनके साथ बच्चों की जिंदगी भी कितनी सरल हो जाए।

"मैडम यहाँ हम सपनों में खोने नहीं एंजोय करने आए हैं..." सायमन ने निशा की कमर में हाथ डाला और उसका शरीर हवा में लहराते हुए उसे डांस फ्लोर पर ले गया। बस फिर क्या था सबने खूब मस्ती मारी।

रात सब काफी देर से घर आए तो सुबह सोएँगे भी देर तक...।

सरोज की आँख जरा जल्दी खुल गई। उसे मालूम है कि बच्चों ने आज ब्रेडगेट पार्क पिकनिक के लिए जाना है। वह जैसे ही नीचे आई चौंक गई...

अरे यह क्या... ये बच्चे भी न... सब बेडरूम में न जाकर यहीं कालीन पर सो गए। कमरे के एक कोने में दोनों लड़के सायमन और किशन एक कंबल ओढ़े सो रहे हैं और दूसरे कोने में तीनों लड़कियाँ निशा जैकी और अलका दुनिया से बेखबर सोई हुई हैं। सरोज कुछ देर वहीं खड़ी उन बच्चों को देख कर सोचने लगी कैसे गोरे काले सभी बच्चे एक साथ सो रहे हैं। इनके मन में जरा सा भी रंग भेद नहीं है। देखते ही देखते जमाना कैसे बदल रहा है। यह सब बदलने वाली भी हमारी अपनी ही अगली पीढ़ी है। कुछ सोच कर सरोज अंदर तक काँप गई। वह जल्दी से रसोईघर की ओर मुड़ गई। बच्चों के उठने से पहले पिकनिक के लिए आलू पूरी बन जानी चाहिए तब नाश्ते का जुगाड़ करूँगी।

सरोज ने जल्दी से प्रेशर कुकर में आलू डाल कर धोए और उबलने के लिए रख दिए। वह परात में आटा डाल कर गूँधने लगी। आलू अभी उबल ही रहे थे कि उसने नाश्ते के लिए फ्रिज में से अंडे निकाल कर एक कटोरे में उन्हें बारी बारी से तोड़ा और उसमें थोड़ा सा दूध डाल कर हल्का सा फैंट दिया। प्याज हरी मिर्च हरा धनिया काट कर सब चीजों को एक तरफ कर दिया।

आलू उबल चुके थे। सरोज ने एक कढ़ाई में तेल डाल कर गर्म होने के लिए रख दिया। ठंडे पानी का नल खोल कर आलू के कुकर को उसके नीचे रख दिया जो आलू छीलने में आसानी हो। इस समय सरोज के हाथ ऐसे चल रहे थे जैसे वह घर पर नहीं कारखाने में काम कर रही हो। एक बार जो आदत पड़ जाए वह बड़ी मुश्किल से छूटती है। जब तक तेल गर्म होता आलू छिल चुके थे। सरोज ने गर्म तेल में पहले राई डाली। राई आवाज करने लगी तब करी पता कटी हरी मिर्च व कटी अदरक डाल कर सारे सूखे मसाले डाल दिए। मसालों को थोड़ा सा चला कर आई कटे आलुओं की बारी। आलुओं को मसालों में थोड़ा ऊपर नीचे करके एक छींटा पानी का दे उनको हल्की आँच पर पकने के लिए रख दिया जो सारे मसाले आलुओं से लिपट जाएँ।

दूसरे चूल्हे पर एक और कढ़ाई में तेल दाल कर उसे गर्म होने के लिए रख दिया और जल्दी से पूरियाँ बेलने लगी। वह बच्चों के उठने से पहले पिकनिक का सारा सामान तैयार कर देना चाहती थी। दरवाजा बंद होते हुए भी बच्चों के नथुनों में खाने की खुशबू पहुँचने लगी। इस खुशबू ने उनकी नींद में हलचल मचा दी। बारी बारी से सभी उठने लगे। सायमन आँखें खोलते ही बोला...

"वाह क्या खुशबू है। यार कहाँ से आ रही है?"

"लग गई इस बिल्ली को उठते ही भूख..." निशा दबी आवाज बोली।

"क्या कहा तुमने जरा जोर से कहो" सायमन ने झटके से बैठते हुए कहा।

"हजूर मैं यह कह रही थी कि हमारा भारतीय खाना ही ऐसा है कि एक बार जिसकी जुबान से लग जाए वो फिर उसे छोड़ नहीं सकता। फिर खुशबू ऐसी कि जिसे भूख न लगी हो वह भी खिंचा चला आए।"

"जी फिलोसफर साहब मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता... सब लोग फ्रेश हो जाओ तब देखें कि आंटी क्या बना रहीं हैं।"

सरोज ने जल्दी से एक तरफ अंडे की भुर्जी बनाई और दूसरी ओर पराठे सेंकने लगी। सरोज को भी आवाजों से पता चल गया था कि बच्चे जग गए हैं।

मेज तक पहुँचते हुए निशा ने आवाज लगाई... "मॉम आज गुजराती चाय बनाना मसाले वाली एक अरसा हो गया है पिये हुए।" सब लोग आकर नाश्ते पर टूट पड़े साथ में मसाले वाली चाय हो तो खाने का मजा दुगना हो जाता है...

"अब तुम लोग खाते ही रहोगे या चलोगे भी। पहले ही काफी देर हो गई है फिर यह नहीं कहना कि निशा ने अपने शहर में नहीं घुमाया।"

"देख लिया न आंटी अपनी बेटी को ठीक से खाने भी नहीं देती कह कर सायमन ने एक पराठे में आलू भर कर उसे लपेट लिया। इस से पहले कि निशा कुछ और कहती वह खाते हुए कार की ओर भागा।"

पिकनिक का सामान कार में रख कर सभी ब्रेडगेट पार्क की ओर चल पड़े।

"निशा लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी नहीं दिखाओगी..." सायमन ने कार को मोड़ते हुए कहा... "मैने अपनी पहली पसंद लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी ही भरी थी किंतु जब जगह नहीं मिली तो फिर मुझे अपनी दूसरी पसंद लेस्टर आना पड़ा।"

"भई हमारी लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी में इतनी आसानी से जगह नहीं मिलती जीनियस साहब।"

"चलो मेरी तो छोड़ो तुम्हें क्या सूझा जो लॉफ़्बरो छोड़ कर लेस्टर आ गई?"

"मेरे लेस्टर आने के कुछ कारण हैं। शायद तुम लोग सहमत ना भी होवो। यदि मैं लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी जाती तो मुझे घर पर ही रहना पड़ता। मैं अपनी मॉम के आँचल से बाहर निकल कर अपने पर फड़फड़ाना चाहती थी। कुछ जिंदगी के नए अनुभव स्वयं करना चाहती थी। घर के आराम से दूर जा कर कुछ सीखना चाहती थी। जो पेरेंट्स के साथ रह कर आप नहीं कर सकते।"

सामने एक बड़ा गेट दिखाई दिया जिस पर लिखा था - लॉफ़्बरो युनिवर्सिटी।

"वाव..." सायमन के मुँह से निकला। गेट के साथ ही एक हल्के नीले रंग का बहुत बड़ा गुंबज सा था जिस पर लिखा था - मलेनियम स्विमिंग पूल...।

"निशा क्या यह वही स्विमिंग पूल है जहाँ ऑलंपिक के तैराक भी अभ्यास करने आते हैं।"

"बिल्कुल ठीक पहचाना। यह ब्रिटेन का सबसे महँगा स्विमिंग पूल है। जहाँ दूर दूर से तैराक अभ्यास करने आते हैं और देखो सामने खुले खेल के मैदान जहाँ हर प्रकार की दौड़ें और खेल होते हैं।"

"हमारी युनिवर्सिटी के मुकाबले में यह काफी बड़ी है।"

"माना हमारा लॉफ़्बरो टाऊन ब्रिटेन के नक्शे पर जरूर छोटा है किंतु इसके कारनामे बहुत बड़े हैं। यह सामने जो इतनी बड़ी बिल्डिंग देख रहे हो ना यह यहाँ का आर्ट कॉलेज है जहाँ देश से ही नहीं विदेश से भी छात्र पढ़ने आते हैं।"

"चलो बहुत हो गया। यहीं घूमते रहे तो बाकी चीजें देखनी रह जाएँगी। फिर मौसम का भी कुछ भरोसा नहीं।"

निशा सायमन को ब्रेडगेट पार्क का रास्ता बताने लगी। दूर से ही उन्हें एक पार्क दिखाई दिया जिसके बीचोंबीच एक महिला का स्टेचू खड़ा है। यह स्टेचू लॉफ़्बरो की शान लेडी जेन ग्रे का है। चाहे वह नौ दिन ही रानी रही थी लेकिन लॉफ़्बरो निवासी आज तक उसे बड़े मान से याद करते हैं कि हमारी रानी और वह भी लाफ़्बरो में जन्मीं...

"इतिहास के जीनियस तुम्हें तो लेडी जेन के विषय में सब कुछ मालूम होगा कुछ बताओ न।"

"नहीं निशा मुझे कहते हुए शरम आ रही है कि मैंने इनके विषय में अभी नहीं पढ़ा... देखते हैं ऊपर शायद कोई गाइड मिल जाए जो इस विषय पर थोड़ी रोशनी डाल सके।"

आगे का रास्ता पैदल ही तय करना था। कार एक तरफ पार्क करके सब बातें करते हुए स्टेचू के सामने पहुँच गए। ब्रेडगेट पार्क एक बहुत बड़ा पार्क हैं जहाँ अच्छे मौसम में लोग सुबह शाम घूमने आते हैं। थोड़ी ऊँचाई पर एक कॉसल दिखाई दे रहा है। इस कॉसल में एक पुराना म्यूजियम है। जिसमें लेडी जेन के समय के कपड़े, आभूषण, खाने पकाने के बर्तन, लड़ाई का सामान, खेती बाड़ी का सामान आदि रखे हैं जिन्हें देख कर उस समय के रहन-सहन का पता चलता है।

म्यूजियम में पहुँच कर निशा ने एक कर्मचारी को बताया कि हम लेस्टर की डीमॉटफर्ट यूनिवर्सिटी के छात्र हैं और लेडी जेन ग्रे के विषय में जानने की इच्छा हमें यहाँ खींच लाई है।

"क्या आपमें से कोई इतिहास का छात्र भी है?" एक व्यक्ति ने आगे बढ़ कर पूछा जिसने अपना परिचय डेविड के नाम से दिया।

"जी हाँ डेविड मेरा नाम सायमन है। मैं इतिहास में डिग्री कर रहा हूँ। वैसे तो यहाँ विश्व का इतिहास पढ़ना पढ़ता है परंतु मेरी रुचि विशेषकर ब्रिटेन के इतिहास में है। यह मेरी इगनोरेंस कहिए कि मैंने पहले कभी लेडी जेन ग्रे का नाम भी नहीं सुना था।"

"अब तुम ऐसा कभी नहीं कहोगे यंग मैन। तुम बिल्कुल सही जगह पर पहुँचे हो। यह जो आप पार्क के बीचोंबीच स्टेचु देख कर आ रहे हैं यह लेडी जेन ग्रे का है। इनका छोटी आयु में ही बहुत दुखद अंत हुआ था। वह इस स्टेचु से भी कहीं अधिक सुंदर थी। लेडी जेन ग्रे तो उस समय के प्रोटेस्टियन राजनीतिज्ञों के हाथों की कठपुतली बन के रह गई थी और नौ दिन की रानी के नाम से मशहूर हो गई।"

"क्या उस समय भी राजनीति चला करती थी.."

"राजनीति तो सदैव हमारे साथ रही है और अपने गंदे खेल खेलती रही है। इसके बिना न कोई राज्य चला है और न ही सरकार।"

डेविड आगे बताने लगा... "यह 15वीं सदि की बात है। लेडी जेन ग्रे का जन्म यहीं ब्रेडगेट में ही हुआ था। उस समय यह ब्रेडगेट पार्क केवल राजा और अमीर लोगों का ही पार्क हुआ करता था। गरीब तो उसके आस-पास फटक भी नहीं सकता था। उस समय के आठवें राजा हैनरी की 6 पत्नियाँ थीं। राजगदी पर केवल बेटे को ही बैठने का अधिकार था। जब पहली रानी से कोई बेटा पैदा नहीं हुआ तो हैनरी ने एक के बाद एक छह शदियाँ कीं।

एक पत्नी से बेटा पैदा हुआ जिसका नाम कुँवर एडवर्ड था। कुँवर एडवर्ड की भी बीमारी से छोटी आयु में ही मृत्यु हो गई थी। अब बची तो केवल एक लड़की... पहली रानी एलिजबेथ। यह समय रोमन केथोलिकस का समय था। एलिजबेथ एक प्रोटेस्टियन की बेटी थी। प्रोटेस्टियनस जानते थे कि राजकुमारी एलिजबेथ को यदि गदी पर बैठाया तो केथोलिक खामोश नहीं रहेंगे और आपस में मार काट शुरू हो जाएगी।

प्रोटेस्टियनस ने एक साजिश रची जिस साजिश में लेडी जेन ग्रे फँस गई। लेडी जेन ग्रे के पिता हैनरी ग्रे डयूक थे। उनकी माता 8वें राजा हैनरी की बहन थीं। क्योंकि उस समय रोमन केथोलिक्स का काफी जोर था तो प्रोटेस्टियनस ने राजनीति चलाई। छटे राजा एडवर्ड का कोई बेटा न होने के कारण जॉन इडली जो उस समय के बहुत ही प्रभावशाली गवर्नर थे उन्होंने राजा एडवर्ड पर दबाव डाल कर मजबूर किया कि लेडी जेन ग्रे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दें।

इतनी देर तक बात करते हुए डेविड का गला सूख गया था। वह थोड़ी देर पानी पीने के लिए रुके तो निशा और उसके साथी जल्दी से बोले, "प्लीज डेविड रुकिए मत आगे फिर लेडी जेन का क्या हुआ।"

डेविड बच्चों की उत्सुकता देख कर मुस्कुराते हुए बोले...। "बड़ा अच्छा लगा यह देख कर कि आज कल के युवा भी हमारे पुराने इतिहास में इतनी रुचि लेते हैं। हाँ तो मैं कहाँ था डेविड सोचने का अभिनय करने लगे। वह देखना चाहते थे कि इनको कुछ याद भी है या नहीं।"

सायमन एक ही साँस में बोला... "हाँ हाँ उस गवर्नर जॉन इडली ने किंग एडवर्ड पर दबाव डाला था कि वह लेडी जेन ग्रे को अपना उत्तराधिकारी बना ले क्या राजा ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।"

"बहुत अच्छे यंगमैन... डेविड ने सायमन की पीठ थपथपाते हुए बात आगे शुरू की। हाँ तो इसमें जॉन इडली को अपना बहुत लाभ दिखाई दे रहा था। क्योंकि किंग एडवर्ड बीमार रहते थे तो जॉन इडली ने सोचा कि राजा की मृत्यु के पश्चात लेडी जेन ग्रे को कठपुतली बना कर सारी पावर वह अपने हाथ में रखेंगे। जॉन इडली राजनीति के एक बड़े मँझे हुए खिलाड़ी थे। वह उस समय के बहुत ही प्रभावशाली प्रोटेस्टियन गवर्नर थे जिन्होंने कुछ सोच कर अपने पुत्र डयूक गिलबर्ड इडली का विवाह लेडी जेन ग्रे से करवा दिया।

लेडी जेन ग्रे किंग एडवर्ड की उत्तराधिकारी घोषित कर दी गई और साथ में यह भी तय हुआ कि उनका होने वाला पुत्र ही अगली गद्दी सँभालेगा।

राजनीति ने फिर अपना दाँव खेला...।

यह राजनीतिज्ञ ऊपर से तो हँसते दिखाई देते हैं, किंतु जब शांत हो जाएँ तो समझ लीजिए कि कोई बहुत बड़ा कांड होने वाला है। 10 जुलाई 1533 को लेडी जेन ग्रे रानी घोषित कर दी गई। क्यों कि लेडी जेन ग्रे की नसों में रोमन केथोलिक खून दौड़ रहा था जिसे प्रोटेस्टियन कैसे बर्दाश्त कर सकते थे। चक्कर चला कर 19 जुलाई 1533 को टावर ऑफ लंदन में लेडी जेन ग्रे व उनके पति गिलबर्ड इडली दोनों की हत्या कर दी गई। ऐसे रोमन केथोलिकस को फिर से पावर में आने से रोका गया।

इस प्रकार लेडी जेन ग्रे नौ दिन की रानी के नाम से मशहूर हो गई। इनके स्टेचु को देखने आज भी लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

उसके वर्षों पश्चात क्वीन एलिजबेथ द वन पहली प्रोटेस्टियन रानी घोषित हुईं। उनके रानी घोषित होने के साथ ही इंग्लैंड में पहला प्रोटेस्टियन चर्च, "चर्च ऑफ इंग्लैंड" के नाम से बना।"

लेडी जेन ग्रे के इतना दर्दनाक अंत की कहानी सुन कर सब उदास हो गए। लड़कियों की तो पलकें भी भीग उठीं जिसे देख कर डेविड हँसते हुए बोले... "भई यह तो बहुत पुरानी बात है। अब न तो वैसे राजा रहे न उनकी बातें। हाँ राजनीति वहीं की वहीं है। समय के अनुसार उसमें उतार चढ़ाव जरूर आते रहते हैं। राज्यों के समाप्त होने से किसान भी बहुत खुश हुए जिन्हें खेती बाढ़ी की कमाई का 10 प्रतिशत कर के रूप में राजा को देना पड़ता था।"

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