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मत्स्य कन्या - 2

अविनाश जी के पुछने पर त्रिश्का उन्हें बताते बताते डर जाती है......

.....अब आगे..

त्रिश्का अपने सपने के बारे में सोचकर घबरा जाती है..…..

" त्रिशू तू भूल जा सपनों के बारे में .." त्रिश्का के सिर पर हाथ फेरते हुए मालविका जी ने कहा

" ठीक है मां... लेकिन पता नहीं वो अजीब सा इंसान मुझे क्यूं दिखाई देता है..." त्रिश्का ने खोते हुए मन से कहा

" बेटा उन‌‌ सबको भूल जा... अच्छा तेरी ड्यूटी कैसी चल रही है..." त्रिश्का को ख्यालों से बाहर लाने के लिए अविनाश जी ने कहा

त्रिश्का : ठीक ही चल रही पापा...एक दिन का भी रेस्ट नहीं है मुझे और सन्डे को एक्स्ट्रा टाइम देना पड़ता है...."

अविनाश : तू वाटर रैंजर जो है सब तुझसे ही तो वहां पर... नहीं तो उस देवांश का बिजनेस कब का बंद हो चुका होता...!

त्रिश्का : वो सब तो ठीक है पापा लेकिन मेरा अब मन नहीं लगता वहां काम करने का ......(आगे की बात अपने आप से कहती हैं)... पता नहीं क्यूं मेरा ज्वाइंट गुफा में जाने का मन है.....

तभी अविनाश जी कहते हैं......" नहीं बेटा तू जाॅब मत छोड़ना... तेरे लिए पानी के पास रहना बहुत जरूरी है....(तभी अविनाश जी चुप हो जाते हैं उन्हें लगता है कि वो कुछ ज्यादा ही बोल गये)...

त्रिश्का अविनाश जी के इस तरह की बात से हैरानी से पूछती है...." पानी के पास रहना चाहिए मतलब....?...."

अविनाश जी त्रिश्का से नजरें चुराते हुए बोले....." कुछ नहीं त्रिशू तू जा आराम कर ले थक गई होगी...." त्रिश्का लगातार अपने पापा को देख रही थी जो उससे नजरें चुरा रहे थे जैसे उन्होंने वो कह दिया जो उन्हें नहीं कहना चाहिए था.... मालविका जी अविनाश जी को गुस्से में घूर रही थी जब अविनाश जी नजर मालविका जी पर पड़ी तो वो तुरंत त्रिश्का से कहते हैं...." त्रिशू तू परेशान क्यूं हो गई... मैं कहना चाहता था कि तू सबकी जान बचाती है...तो तेरा वहां काम करना जरूरी है इसलिए कहा तू पानी से दूर मत जा ... सबको तेरी ज़रूरत है...." अविनाश जी की बात बहुत हद तक त्रिश्का समझ चुकी थी लेकिन अभी भी अपने अंदर हो रहे बदलावों को लेकर बहुत परेशान थी । वो चाहती थी अपनी प्रोब्लम को सबके सामने रखे लेकिन कोई उसे नहीं समझ पाएगा यही सोचकर चुप हो जाती थी.....

त्रिश्का बेमन से खाना खा कर जैसे ही उठती है अविनाश जी बोलते हैं...." बेटा ज्यादा परेशान मत हो...बस अपना ध्यान रखा कर और हां किसी के भी कहने पर तू ज्वाइंट गुफा में मत जाना...सुना है वहां बहुत खतरा है...."

त्रिश्का : आप चिंता मत किजिए मैं वहां नहीं जाऊंगी...

अविनाश जी और कुछ कहते उससे पहले ही , अपने पति को डांटते हुए मालविका जी ने कहा......" आप तो रहने दो अब और कुछ मत पूछो और बताओ...त्रिशू तू जा बेटा अपने कमरे में..."

त्रिश्का : हां मां.....

मालविका : और सुन ज्यादा सोचना मत ठीक है.....

अविका : ठीक है मां नहीं सोचूंगी....अब जाऊं...

मालविका : जा .....

अविका अपने कमरे में चली जाती हैं.... अविका के जाने के बाद मालविका जी अविनाश जी को कहती हैं...." आप कुछ ज्यादा ही नहीं बोल रहे थे त्रिशू के सामने...देखा आपने उसे हम पर शक हो रहा था....."

मालविका जी को समझाते हुए अविनाश जी ने कहा..." तुम परेशान मत हो हमारी त्रिशू कहीं नहीं जाएगी..."

मालविका जी गंभीर होकर बोली ........." मैं ऐसा होने भी नहीं दूंगी... कोई मेरी त्रिशू को नहीं ले जा सकता..."

अविनाश : क्या हमने सही किया मालविका....?....वो बड़ी हो रही है और उसके सपने भी ...वो लोग जरूर ढूंढ लेंगे.."

मालविका जी गुस्से में खड़ी होती है...." कोई नहीं आ सकता यहां न ही मैं मेरी बेटी के पास किसी को आने दूंगी... मैं कल ही अशवीश्वेर महाराज से मिलूंगी वो ही मुझे समाधान बताएंगे....." इतना कहकर मालविका जी वहां से किचन की तरफ चली जाती हैं..... जाती हुई मालविका जी को देखते हुए अविनाश जी ने कहा..." ये नहीं मानेगी... लेकिन मैं त्रिशू के हो रहे बदलाव के बारे में उसे बता भी तो नहीं सकता... मैं क्या करूं...?...हो सके तो हमें माफ कर देना त्रिशू....."

अविनाश जी अपने कमरे में सोने के लिए चले जाते हैं....

आधी रात हो चुकी थी सब सो चुके थे....... त्रिश्का भी गहरी नींद में सो रही थी तभी उसके कमरे में एक मोती आकर त्रिश्का के माथे पर गिरता है......

त्रिश्का नैस्टी ओसियन के पास अकेली खड़ी थी,, अंधेरा हो चुका था लेकिन त्रिश्का इधर उधर चिल्लाती हुई जा रही थी....

" कोई है... कोई है यहां पर..?... मैं यहां कैसे आ गई...?.. मैं तो घर पर सो रही थी..."

तभी एक आवाज आती है....." त्रिश्का...आओ ... मेरे पास आओ...."

त्रिश्का अचानक आई आवाज से घबरा जाती है..." कौन हो तुम...?.... सामने आओ..."

" त्रिश्का.... तुम्हारी जरूरत वहां नहीं यहां है....आओ त्रिश्का आओ..... यहां सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं आओ त्रिश्का...."

त्रिश्का इस आवाज से इरिटेट होकर कहा...." कौन हो तुम सामने क्यूं नहीं आते...?.... क्यूं मुझे इस तरह परेशान करते हो ....."

" त्रिश्का..... अभी समय नहीं आया है जब वो समय आयेगा हम तुम्हें बता देंगे...बस तुम एक बार हमारी गुफा में आ जाओ उसके बाद सारे सवालों के जबाव अपने आप मिल जाएंगे..…..आओ त्रिश्का..."

त्रिश्का बैचेन नज़रों से इधर उधर देखने लगती और दुखी होकर वहीं घुटनों के बल‌‌ बैठ जाती है और चिल्लाती है......" क्यूं....?.. सिर्फ एक आवाज क्यूं...?...तुम सामने नहीं आओगे, ठीक है मैं ही उस गुफा में आ रही हूं...." इतना कहकर त्रिश्का अपने आंसू पोछती हुई सीधा गुफा की तरफ बढ़ती है.......

धीरे धीरे त्रिश्का ज्वाइंट गुफा के पास पहुंचती है और जैसे ही अंदर जाने के लिए बढ़ती तभी पीछे से कोई उसका हाथ पकड़कर पीछे खींच लेता है.....

त्रिश्का गुस्से में अपना हाथ छुड़वाती है....." कौन हो तुम...?... क्यूं पकड़ा मुझे....?...."

वो लम्बा चौड़ा नौजवान जिसने अपने चेहरे से लेकर पैरों तक एक काले कपड़े से ढक रखा था, , उसने कहा...." त्रिश्का...अभी समय नहीं आया है अभी महाराज की आज्ञा नहीं है इसलिए तुम वहां नहीं जा सकती ..."

" कौन हो तुम..?...और कौन है तुम्हारे महाराज..."

त्रिश्का के इतना कहते ही समुंद्र की ऊंची ऊंची लहरें उठने लगती है और पानी एक इंसान का रुप लेने लगती है.... जैसे जैसे वो आकृति उभरती है तभी त्रिश्का चिल्लाती है....

………….........to be continued…............

कौन है उभरती आकृति वाला ...?

जानने के लिए कहानी से जुड़े रहिए....

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