Ek mitra ka samaaj ko patra books and stories free download online pdf in Hindi

एक मित्र का समाज को पत्र

Bharat Malhotra

bigb17871@gmail.com

प्रिय मित्रो,

समाज के नाम इस पत्र में मैं आप सब का ध्यान एक ऐसी ज्वलंत समस्या की ओर दिलाना चाहता हूँ जो बड़ी शीघ्रता से हमें चारों तरफ से घेर रही है और वो समस्या है आज के युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति।

वैसे तो मेरा मानना है कि मानव जाति सामूहिक आत्मघात की ओर बढ़ रही है। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, पर्यावरण से छेड़छाड़, जहरीली गैसों का अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जन, नदियों एवं सागरों के किनारे बेहिसाब निर्माण, जंगलों की बेतहाशा कटाई, रासायनिक एवं आणविक हथियारों का अभूतपूर्व जमाव इत्यादि ऐसे अनेक कारक हैं जो इस धरती से एक ना एक दिन जीवन का नामोनिशान मिटा देंगे। लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं व्यक्तिगत कारणों की जिसके कारण आज का युवा आत्महत्या जैसा अंतिम कदम उठाने से हिचकता नहीं है।

हम आए दिन समाचारपत्रों में ऐसे कितने ही समाचार पढ़ते हैं, चाय की चुस्की लेते-लेते उसके बारे में चर्चा करते हैं और फिर सब भूल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं। हमें ये लगता है कि ये किसी अन्य की समस्या है, हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं परंतु मित्रो ये समस्या हम सब की समस्या है। हमें नहीं पता कि ऊपर से खुश एवं सामान्य दिखने वाले हमारे अपने घरों के बच्चे किस मानसिक स्थिति से गुज़र रहे हैं। किस दिन ये बिजली किस घर पर टूट पड़ेगी और उसे जला कर राख कर देगी कोई नहीं जानता। हमारे लिए इसके कारणों पर विचार करना अब आवश्यक हो गया है क्योंकि जब तक हम किसी रोग के मूल तक नहीं जाएंगे तब तक उस रोग का उपचार संभव नहीं।

आत्महत्या की ओर जाने का एक प्रमुख कारण है आज के बच्चों पर बढ़ता दबाव। वो निर्दोष और मासूम बचपन तो ना जाने कहां खो गया है। वो शरारतें, वो शैतानियां मानों कहीं गुम सी हो गईं हैं। रह गया है तो बस दबाव। पढ़ाई का दबाव, अपने मित्रों से किसी भी मामले में पीछे ना रहने का दबाव, सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव, पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी, अच्छा जीवनसाथी ढूँढने का दबाव। इन सब दबावों को झेलते-झेलते कब बचपन बीत जाता है, कब जवानी आकर विदा होने की तैयारी करने लगती है पता ही नहीं चलता। हर कोई अपने बच्चों को सबसे आगे देखना चाहता है। सब माता पिता अपने बच्चों को डाक्टर या इंजीनियर या सीए बनाना चाहते हैं बिना ये जाने कि उनके बच्चे की रूचि और क्षमता क्या है। हर पल मानों एक होड़ लगी है एक दूसरे से आगे निकलने की। इस होड़ का बच्चों की किशोर और कोमल मानसिकता पर गहरा दबाव पड़ता है और एक दिन जब उस युवा को ये प्रतीत होता है कि वो ये सब दबाव झेल पाने में सक्षम नहीं है या वो ये सब नहीं कर पाएगा तो उसे सब समस्याओं से निजात पाने का एक ही आसान उपाय दिखता है और वो है आत्महत्या।

दूसरा प्रमुख कारण है बच्चों को मिलने वाली अतिशय स्वतंत्रता। "अति सर्वत्र वर्ज्यते"। हर चीज़ की अति बुरी है फिर चाहे वो लाड़ प्यार हो चाहे डांट फटकार। ये नई पीढ़ी स्वतंत्रता के नाम पर स्वछंदता की ओर बढ़ती जा रही है। इसमें कुछ दोष माता-पिता का भी है जो अपने बच्चों के मुँह से निकली हर बात को पूरा करने में बड़ा गौरव अनुभव करते हैं। हमारे माँ-बाप ने हमें अनुशासन में रखा, हमें चीजों को मिल बाँट के उपयोग करना सिखाया, हमें सहनशीलता का पाठ पढ़ाया, हमें अपनी इच्छाओं से समझौता करना सिखाया। हमें ये बातें उस समय तो बहुत बुरी लगीं लेकिन हमें जीवन में इनसे कितना लाभ हुआ उसका सही आकलन शायद हम स्वयं भी नहीं कर सकते। दुर्भाग्य से ये सब बातें अब पुरानी समझी जाने लगी हैं और इन पर चलने वाला पुरातन पंथी। इसका हमारी युवा पीढ़ी पर ऐसा दुष्प्रभाव हुआ है कि उनकी बर्दाश्त की शक्ति खत्म हो गई है। जब जीवन उनके स्वभाव के मुताबिक नहीं व्यतीत होता तो वे सह नहीं पाते। उन्हें ये पता ही नही है कि प्रकृति हमें वो नहीं देती जो हमें चाहिए बल्कि प्रकृति हमें वो देती है जो हमारे लिए अच्छा है। जीवन के किसी मोड़ कोई एक वस्तु या व्यक्ति के ना मिल पाने से जीवन का त्याग करने वाले ये युवा इतना भी नहीं समझ पाते कि वस्तुएं जीवन के लिए होती हैं, जीवन वस्तुओं के लिए नहीं होता।

तीसरा एक प्रमुख कारण मेरे विचार में एकल परिवारों का ज्यादा चलन एवं उसके कारण युवाओं में बढ़ता अकेलापन भी है। हमारे समाज में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार की व्यवस्था थी। उससे बच्चों को बहुत बड़ा लाभ ये था कि चचेरे भाई बहनों के रूप में अच्छे दोस्त और मार्गदर्शक घर में ही मिल जाते थे जो उसे सही राह चुनने में सहायता करते थे। अब एकल परिवार का चलन ज्यादा होने के कारण वो सब सुविधाएँ नहीं रही। वैसे भी आजकल मँहगाई बढ़ने के कारण और वैभवी जीवनशैली के कारण पुरूष एवं स्त्री दोनों को काम करना पड़ता है। ऐसे में युवा होते बच्चे जब अकेले पड़ जाते हैं तो या तो अवसादग्रस्त हो जाते हैं या बुरी संगति में पड़ जाते हैं। दोनों ही स्थितियों में अगर समय रहते उपचार नहीं किया गया तो ये दोनों रास्ते अकाल मृत्यु की ओर ही जाते हैं। माता-पिता को चाहिए कि जिन बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वो इतना परिश्रम कर रहे हैं उनकी ओर भी थोड़ा ध्यान दें। हर सुख पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। कभी-कभी प्यार से सर पर फिराया हुआ हाथ भी किसी मंहगे उपहार से कम नहीं होता।

कारण तो अनेक हैं बजरंगबली की पूँछ की तरह शायद कभी खत्म ही ना हों। लेकिन इन सब कारणों के होते हुए भी ये जीवन जीने योग्य है। ये जीवन ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है जिसे आत्महत्या जैसे घृणित कदम से खत्म नहीं करना चाहिए। मेरी आज की पूरी युवा पीढ़ी से विनती है कि आत्महत्या करने की बात सोचने से पहले अपने माता-पिता और अन्य स्नेहीजनों के बारे में सोचिए। अगर कोई गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड आपको छोड़ गया है तो ये मान लीजिए कि वो आपका था ही नहीं। लेकिन उसके लिए आप जिन्हें छोड़कर जा रहे हैं वो बिल्कुल आपके ही हैं और उनमें से कुछ तो केवल आपके कारण ही जीवित हैं। आपकी माता ने इंसान की पीड़ा सहने की क्षमता से अधिक पीड़ा सहकर आपको जन्म दिया है। आपके पिता ने अपने पूरे जीवन का लक्ष्य आपके सुख और आराम को बना रखा है। किन्हीं क्षुद्र वस्तुओं या व्यक्तियों या घटनाओं के कारण इन्हें छोड़कर जाने से पहले सौ बार सोचिए। कोई इच्छित डिग्री या मनचाही वस्तु अगर जीवन में नहीं मिल पाती तो इससे जीवन खत्म नहीं हो जाता। जीवन की लंबी यात्रा में ये छोटे-छोटे पड़ाव आते और जाते रहते हैं। परिश्रम पर विश्वास रखिए, लगन से कार्य करिए थोड़ा धैर्य रखिए। आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी।

आपका मित्र

भरत मल्होत्रा