MAIN TO ODH CHUNRIYA book and story is written by Sneh Goswami in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. MAIN TO ODH CHUNRIYA is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मैं तो ओढ चुनरिया - Novels
by Sneh Goswami
in
Hindi Fiction Stories
कोई भूखा मंदिर इस उम्मीद में जाय कि उसे एक दो लड्डू या बूंदी मिल जाय तो रात आराम से निकल जाएगी और वहाँ से मिले मक्खन मलाई का दोना तो जो हालत उस भूख के मारे बंदे की होगी , बिल्कुल वैसी ही हालत इस समय मेरे माता पिता का थी । मागा था एक लड्डू । न सही लड्डू , मलाई का दोना तो मिला । शुक्र करते बार बार सिरजनहार का ।
मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय एक कोई भूखा मंदिर इस उम्मीद में जाय कि उसे एक दो लड्डू या बूंदी मिल जाय तो रात आराम से निकल जाएगी और वहाँ से मिले मक्खन मलाई ...Read Moreदोना तो जो हालत उस भूख के मारे बंदे की होगी , बिल्कुल वैसी ही हालत इस समय मेरे माता पिता का थी । मागा था एक लड्डू । न सही लड्डू , मलाई का दोना तो मिला । शुक्र करते बार बार सिरजनहार का । मेरे जन्म का स्वागत मेरे माँ – बाबा ने खुले दिल से किया था । करते
मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय दो अगले दिन सूरज उगने से पहले मैं उठ बैठी तो माँ की नींद भी खुल गयी । मेरे रोकर बताने पर भी माँ शायद समझ नहीं पाई थी , मेरा बिस्तर ...Read Moreहो गया था और मैं पैर पटककर सबको बुला रही थी । अम्मा ने दौङकर मुझे उठाया , मेरे कपङे बदलवाकर माँ को पकङा दिया । मुझे दूध पिलाते पिलाते माँ की नजर सतिए (स्वास्तिक) की चौकी पर रखी बही पर गयी । उसका वह पन्ना , रात में हवा के वेग से या किसी चमत्कार से पलट गया था
अध्याय तीन अगले छ: दिन सुख – शांति से बीत गये । सातवें दिन सुबह सुबह पूरा घर धोया - पोंछा गया । चादरें बदलकर नयी चादरें बिछा दी गयी । पुरानी धुलने के लिए डाल दी ...Read More। मुझे पहले तेल से नहलाया गया फिर दही और पानी से । नये कोरे कपङे में लपेट कर धूप में लिटा दिया गया । तब तक मुझे भूख लग आई थी । मैंने पुकारा – माँ । शायद यहाँ किसी को मेरी भाषा समझ नहीं आई । कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला । मैंने ध्यान खींचने के लिए
मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय चार आषाढ बीत गया। सावन आ गया । दोपहर ढलते ही हवा में थोङी ठंडक घुलने लगी थी । कहीं आसपास ही बारिश हो रही होगी । माँ ...Read Moreमुझे इतना कस कर तौलिए में लपेट लिया कि मेरा साँस घुटने लगा था । घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल हो गया । मन कर रहा था कि यह तौलिया पैर मार - मारकर कहीं दूर फेंक दूँ और ये औरतें मुझे कपङों से लादती जा रही थी । मेरा हर विरोध बेकार हुआ जा रहा था । झाई ने मुझे
मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय पाँच शाम होते ही दोनों मामा ,मां और दो संदूकों के साथ रिक्शा में बैठकर हम सब चल पङे हैं । माँ ने मुझे दुपट्टे में छिपा रखा है । ...Read Moreतरह तरह की आवाजें आ रही हैं और मैं इन्हें बिलकुल नहीं देख पा रही । यह अहसास मुझे उन दिनों की याद करवा रहा है ,जब मेरा जन्म नहीं हुआ था । माँ कहीं बाजार जाती , तब भी मैं सिर्फ सुन पाती थी । कुछ दिखाई नहीं देता था । तब मैं कितना डर जाती थी और पैर पटकती