Meet Didi and her young friends in this wonderful story that celebrates the joy of reading. दीदी और उनका रंग-बिरंगा खज़ाना लेखिका - रुकमिनी बॅनर्जी एक बड़े शहर के किनारे कुछ बच्चे रहते थे। एक कूड़े के ढेर के समीप वे रहते थे। कूड़े के ढेर का वह मैदान बहुत बड़ा था। जहाँ तक नज़र जाती वही फैला हुआ दिखायी देता। वे बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। सारा-सारा दिन वे कूड़े के मैदान में इधर से उधर भाग दौड़ किया करते। कुछ प्लास्टिक की बोतलें बटोरते। कुछ कपड़ों के टुकड़े चुनते। कूड़े-कचरे के बारे में वे बहुत कुछ जानते थे। एक दिन, दीदी कचरे के मैदान में आईं। लाल दुपट्टा ओढ़े हुए थीं। दीदी उन दौड़ते-भागते बच्चों को देखने लगीं। फिर उन्होंने बैठने के लिए एक जगह ढूँढी। अपने थैले को खोल कर उन्होंने उसमें से कुछ निकाला। बच्चे बड़े कुतूहली थे। वे उनके थोड़ा क़रीब आ गए। दीदी के पास खूब सारी रंग-बिरंगी किताबें थीं। किताबों में कहानियाँ थीं। बच्चे उनके पास, और पास आते गये। दीदी रोज़ आने लगीं। जब वे आतीं तो बच्चे कूड़े के मैदान में घूमना-फिरना बंद कर देतें। वे उनके पास बैठ कहानियाँ सुना करते। जल्द ही वे कुछ अक्षर और शब्द पढ़ने लगे। धीरे धीरे वे कहानियाँ भी पढ़ने लगे। बच्चों ने दीदी की जगह को खूबसूरत बनाने का निस्चय किया। कोई कूड़े के ढेर से एक कुर्सी ले आया। किसी को कालीन का एक टुकड़ा मिल गया। कोई ओर कुछ परदे ले आया। जल्दी ही दीदी की जगह सुन्दर दिखने लगी। एक दिन दीदी नहीं आईं। अगले दिन भी नहीं आईं। बच्चे इन्तज़ार करते रहे, करते रहे। उन्होंने ख़ुद ही किताबें पढ़ीं। और एक-दुसरे को पढ़ कर सुनायीं। एक दिन उन्हें दीदी का पता एक किताब में मिल गया। बच्चे तुरंत दीदी की खोज में निकल पड़े। साथ में उन्होंने किताबों का थैला भी उठा लिया। बच्चे बस का नम्बर पढ़ना जानते थे। उन्होंने उनकी सड़क का नम्बर खोजा। वे यह सब इसलिए कर पाये क्योंकि दीदी ने उन्हें सिखलाया था। बच्चे दीदी का घर खोजने लगे। उन्होंने हर गली में इधर से उधर देखा। लेकिन वे घर खोज ना पाये। वे वापस जा ही रहे थे की किसी ने एक लाल दुपट्टा देखा। वह एक खिड़की के पास एक खूँटी पर टँगा हुआ था। दीदी बिस्तर पर लैटी हुयी थीं। वे बहुत बीमार दिख रही थीं। उनकी आँखें उदास थीं और उनके चेहरे पर कोई मुस्कान ना थी। डॉक्टर ने उन्हें दवाइयाँ दी थीं। पर पता नहीं क्यों, दीदी बेहतर ही नहीं हो रही थीं। बच्चे दीदी के पास दौड़े गए। उन्होंन उन्हें गले लगाया और चुम्बनों से भर दिया। वे उनके लिए किताबें लाये थे। दीदी उठ कर बैठ गईं और बच्चों ने उन्हें पढ़ कर सुनाया। उनकी आँखें चमकने लगीं और उनकी हँसी वापस आ गयी। अब दीदी फिर से रोज़ आती हैं। और बच्चे भी इक्कठा होते हैं। आप रोज़ शाम उन्हें वहाँ देख सकते हैं। आप उन्हें हँसते हुए सुन सकते हैं। आप उन्हें किताबें पढ़ते हुए सुन सकते हैं। आप कह सकते हैं कि उन्हें कितना मज़ा आ रहा है। बच्चे, उनकी दीदी और किताबें! Story: Rukmini Banerji Illustrations: Kaveri Gopalakrishnan Narration: Neha Gargava Music: Rajesh Gilbert Animation: BookBox
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