Mori helps her parents in their activities so that they can live in harmony with nature. फुसफुसाते ताड़ लेखिकाएँ दीपा गंग्वानी और टीना सुहानेक मोरी भूरी आँखोंवाली एक छोटी-सी लड़की थी। वह अपने माता-पिता के साथ एक छोटे नीले तालाब के पास नारियल के सुन्दर वन में रहती थी। हर सुबह अपने सर पर एक बड़ी खाली टोकरी संभाले वह तालाब को जाती। उसकी माँ मैले कपड़े लिये और उसके पिता मछली का एक बड़ा जाल लिये उसके पीछे-पीछे चलते। जब तक उसके पिता मछली पकड़ते। उसकी माँ तालाब के पास रखे पत्थर पर कपड़े धोती, वे मछलियों से भरे जाल को घसीटते हुए तालाब के किनारे तक लाते और मछलियों को एक बड़ी टोकरी में रखते। कभी-कभी एक कछुआ जब जाल में फँस जाता तो मोरी हमेशा उसे जल्दी से निकालकर बचा लेती। एक सुहानी सुबह मोरी अपने पिता के साथ थी जब वे मछलियाँॅ पकड़ रहे थे मोरी ने कहा, \"अगर हम रोज़ इतनी सारी मछलियाँ पकड़ेंगे तो एक दिन तालाब में एक भी मछली नहीं बचेगी!\" उसकी माँ हँस दी और उसने मोरी को स्कूल भेज दिया। पेड़ों की छाँव में मोरी की माँ ठीक से नहीं सो पाई। उसे सपने में बिन मछली का तालाब दिखा और साथ ही हवाएँ ताड़ के पत्तों में फुसफुसाने लगीं, \"पानी और धरती ने हमेशा तुम्हारे परिवार का ख़याल रखा है, लेकिन अब तुम्हें बदले में उनकी देखभाल करनी है।\" भरी आँखों के साथ वह जागी, क्योंकि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि थोड़ी सी मछलियाँ बेचकर वह मोरी को कैसे पाल सकेगी। पूरी दोपहर वह बैठी चटाई बुनती रही और अपने सपने के बारे में सोचती रही। उस रात मोरी ने अपने माता-पिता की दबी-दबी आवाज़ें सुनीं। और देर रात तक दिया भी जलता रहा। अगली सुबह मोरी के पिता ने उसे एक दूसरी, मगर छोटी टोकरी दी। \"हम इस छोटी टोकरी में सारी मछलियाँ कैसे भर सकेंगे?\" मोरी ने पूछा। \"हम उतनी ही मछलियाँ पकड़ेंगें जितनी इस टोकरी में आएँगी।\" मोरी के पिता बोले। मोरी को हैरानी हुई। स्कूल से लौटने पर अपनी माँ को नारियल से तेल और साबुन बनाते देख मोरी बहुत ख़ुश हुई। मोरी तेज़ी से और नारियल लेने पेड़ पर चढ़ी कि उसकी माँ ने आवाज़ दी, \"उन्हें मत तोड़ो, हमें बस केवल उन्हीं चीज़ों को काम में लाना चाहिए जो पेड़ हमें देता है।\" मोरी के पिता बोले, \"हमने यह सब कुछ धरती पर गिरे हुए नारियल से बनाया है। यह देखो, चमेली के एक फूल को अन्दर रख कर हमने साबुन बनाया है!\" उस दिन से मोरी का परिवार ताड़ के पत्तों से झाड़ू बनाने लगा और नारियल के रेशों से चटाई बुनने लगा। वे बाज़ार में साबुन, तेल और बस थोड़ी ही मछलियाँ बेचने के लिए ले जाने लगे। मोरी कुछ और बड़ी हुई तो उसे नारियल के खोल से छोटे-छोटे कछुए बनाने का शौक़ चढ़ा और वह सजावटी कछुए बनाने लगी। वह हमेशा एक कछुआ गले में पहने रहती। Illustrations: Emanuele Scanziani Music & Art Direction: Holger Jetter Translation: Purnima Srivastava Narration: Vandana Maheshwari Animation: Alfrin Multimedia
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