मन्नू की वह एक रात - 7

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‘मगर दीदी तुम ने तो घर में भाइयों से भी ज़्यादा पढ़ाई की है। बहुत तेज होने के कारण ही बाबूजी तुम्हें हॉस्टल में रह कर पढ़ने देने के लिए लखनऊ भेजने को तैयार हुए थे। उनके इस निर्णय से चाचा-चाची यहां तक कि मां भी मुझे लगता है पूरी तरह सहमत नहीं थीं। मुहल्ले में लोगों ने जो तरह-तरह की बातें कीं वह अलग। और शादी के बाद जीजा ने रोका न होता तो तुम पी0एच0डी0 पूरी कर लेती। इतना कुछ तुमने पढ़ा फिर तुम से कैसे अनर्थ हो गया। मैं सोचती हूं कि बहुत ज़्यादा पढ़ाई भी हमें भटका देती है।’